(करोना से लड़ रहे डाक्टरों एवं सहायकों पर हेलिकोपटर से की गई फूल वर्षा के संदर्भ में)
‘मौन’
आकाश से
नीचे गिर रहीं
फूलों की रंग बिरंगी पंखुडियाँ
लग रहीं थीं कुछ
परेशान सी।
शायद
ये
सोच रहीं थीं
कि
जो नीचे ज़मीन पर
हैं खड़े योद्धा
लड़ रहे करोना से,
क्या
ये लड़ पाएँगे
बिना सुरक्षा वस्त्रों
बिना ‘फ़ेस मास्क’
बिना वेंटिलेटर
बिना सहायकों
बग़ैर सामाजिक
आर्थिक सुरक्षा के,
क्या
इन्हें हमारी वर्षा से
मिल जायेंगे
ये सभी आवश्यक
हथियार
क्या
यूँ जीत पाएँगे
वे
ये जंग?
शायद
ये आकाश से नीचे आती पुष्प पंखुड़ियां
सोच ये भी रहीं होंगी
कि
ये वर्षा
यथार्थ में तो है
उन लोगों के जनाजों पर
जो
हैं देख रहे
ये सब तमाशा
एक टक
खड़े निशब्द
मौन
… सतीश ‘रत्न’ शिमला