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देवभूमि में गरमाया “जूते पहनकर हवन” करने का मामला, विद्वानों में रोष- बताया सनातन धर्म का ‘अपमान’

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एप्पल न्यूज़, शिमला

कोरोना महामारी को समाप्त करने के लिए हिमाचल प्रदेश में आला अधिकारियों द्वारा नियमों के विपरीत हवन करने का मामला सामने आने के बाद प्रदेश के विद्वान खासे नाराज हो गए हैं। विद्वानों ने इसे हिन्दू व सनातन धर्म संस्कृति के साथ एक भदद्दा मजाक करार दिया है। हो भी क्यों न जब देवभूमि हिमाचल प्रदेश में आला अधिकारी नियमों को दरकिनार कर डस्टबिन को हवन कुंड बनाकर चमड़े के जूते व बैल्ट पहनकर हवन करवाए तो नाराजगी होना लाजिमी भी है।


मामला बुुुधवार का है जब

कोरोना महामारी से मुक्ति और वातावरण शुद्धि के लिए आला अधिकारियों ने हवन किया। कार्यालय के बाहर कुछ अधिकारी एक्टर हुए और हवन किया। बुधवार को हुए इस हवन को लेकर बाकायदा फोटो सहित प्रेस नोट जारी किया गया था। आज खबर जैसे ही फोटो सहित लोगों तक पहुंची तो इसकी चर्चा होने लगी। लोग सराहना करनर लगे लेकिन ये क्या जैसे ही फोटो को देख तो सब ढंग रह गए और दबी जुबान में आला अधिकारियों को कोसने लगे।

वहीं विद्वानजनों ने जूतों के साथ हवन करने की नासमझी को हमारी समृद्ध संस्कृति के साथ एक भदद्दा मजाक बताया। इस मामले पर प्रदेश के विख्यात विद्वानों ने अपनी प्रतिक्रिया दी और ऐसे हवन की कड़ी निंदा करते हुए भविष्य में देवभूमि में कहीं भी ऐसी घटना को न दोहराये जाने की सरकार से अपील की।

ब्राह्मण समाज इस तरह की सनातन धर्म पर मनमर्जी से होने वाली कृतियों को सहन नहीं करेगा

बिलासपुर के विद्वान पंडित मदन लाल दुर्वासा ने कहा कि आला अधिकारियों द्वारा इस तरह से हवन करना बिल्कुल भी उचित नहीं है। ये हमारे हिंदू सनातन रीति के विरुद्ध है। समेत जूतों के खड़े-खड़े और एक डस्टबिन में हवन करना किसी भी तरह से तर्क संगत नही है। यह हमारी संस्कृति के साथ एक भदद्दा मजाक हैं जिसकी हम घोर निंदा करते हैं। एक आला अधिकारी द्वारा इस तरह से हवन करने की हम निंदा करते हैं। ब्राह्मण समाज इस तरह के सनातन धर्म पर मनमर्जी से होने वाली कृतियों को सहन नहीं करेगा। हवन करना कोई दिखावा नही है यह पूर्णतया एक सनातनी विधि है जिस से सारा वातावरण शुद्ध होता है। आज इस वैश्विक महामारी के समय मे सभी को विधि विधान से हवन करना चाहिए। जूतों के साथ केवल दिखावा करने के लिए इस तरह अपनी सनातन संस्कृति का अपमान नहीं होना चाहिए। इससे तो बेहतर होता हवन करते ही न। एक आला अधिकारी से ऐसी अपेक्षा नहीं कि जा सकती।
जैसे एक डॉक्टर किसी मरीज को दवाई देता है तो साथ मे परहेज व नियम भी बताता है। यदि उन नियमों के अनुरूप दवाई खाई जाए तभी उस दवाई का असर होता है अन्यथा उसका विपरीत असर भी पड़ता है। इसी तरह से हमारे शास्त्रों में हवन करने की जो विधि बताई है उसके अनुसार ही हवन करना चाहिए।
जिस तरह कोरोना नियमों का पालन कर हम कोरोना को हराने में कामयाब हो सकते हैं ठीक उसी तरह से हवन के भी नियम हैं यदि उन के अनुसार हवन किया जाएगा तो फलीभूत होगा अन्यथा कोई फायदा नही है।

देवभूमि में धर्म का अपमान करना शर्मनाक, इससे तो बेहतर है ऐसा हवन हो ही न

हिमाचल प्रदेश संस्कृत अकादमी के पूर्व सचिव एवं ज्योतिषाचार्य पंडित डॉ मस्त राम शर्मा ने कहा कि हिमाचल देवभूमि कहलाती है लेकिन इसी देवभूमि में अधिकारियों द्वारा इस तरह धर्म का अपमान करना शर्मनाक है। हमारे ऋषि मुनियों ने सैकड़ों बर्षो तक खोज करने के पश्चात जो हवन करने के नियम बताए है उन के अनुसार यदि हम हवन करते है तो उसका सम्पूर्ण फल मिलता है।
विधान कभी ये नहीं सिखाता कि नियमों के विपरित हवन पूजन करे इससे तो बेहतर है ऐसा हवन हो ही न। हवन पूजन के नियम हैं जिसके अनुसार हाथ पैर धोकर शांतिपूर्वक धरती पर आसन लगाकर वैदिक विधि विधान से ही हवन होना चाहिए। आज कोरोना जैसी महामारी में हाथ धोना व एक दूसरे को दूर से नमस्कार करना यह सब नियम जो कोरोना काल में बताए जा रहे हैं, सब हमारे वेद शास्त्र पुराणों में वर्णित थे लेकिन हम अपनी इन सारी संस्कृति व मर्यादाओं को भूल चुके थे। आज मजबूरी में दोबारा से हम इनको अपना रहे हैं। इसी तरह से हवन एक चिकित्सकीय विधि है। वातावरण में जितने भी कीटाणु हैं वह सब हवन करने से मर जाते हैं और वातावरण शुद्ध होता है। वातावरण जब शुद्ध होगा पवित्र होगा तो किसी भी तरह की बीमारी नहीं आती है लेकिन उस कार्य को भी शुद्धि के अनुसार किया जाना चाहिए। जब चमड़े के जूते पहन कर हम हवन करेंगे तो उन में न जाने कितने कीटाणु पहले से ही होंगे। हाथ पैर धो कर हम शुद्ध अवस्था में बैठकर हवन करेंगे तो उसी से वातावरण शुद्ध होगा जिसका हमें 100% सकारात्मक परिणाम भी मिलेगा। केवल दिखावे के लिए ऐसा नहीं करना चाहिए।

विधि के विरुद्ध किए गए ऐसे हवन से देवताओं को नहीं राक्षसों को लाभ होगा

विशिष्ट ज्योतिष सदन के अध्यक्ष पंडित शशिपाल डोगरा ने कहा कि हवन करना हमारी सनातन संस्कृति है। हवन देवताओं का भोजन है जो शुचिता और विधि विधान से करवाया जाना चाहिए। हवन हमेशा धोती पहनकर नियमानुसार किया जाता है। चमड़े के जूते व बैल्ट किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में निषेध है। हवन अग्नि में स्वाहा कर दिया जाता है। स्वाहा अग्नि की पत्नी है और उन्हीं के माध्यम से ही देवताओं को जाता है। जिस तरह से हम बढ़िया पनीर जैसे भोजन में भी 2 चमच्च नमक ज्यादा डालने पर खा नहीं सकते ठीक उसी तरह विधि के विपरीत हवन देवताओं को नहीं लगता बल्कि इसका नकारात्मक असर होता है और देवताओं को लाभ के बजाय राक्षसों को लगता है। ऐसे में इसका देवता और मानव दोनों पर विपरीत असर होता है जिस कारण रोग, व्याधियां और महामारियां फैलती है। मानव कल्याण के बजाय उनके नाश का कारण बनता है। जिस तरह से सिरमौर में जूतों के साथ हवन किया गया है ये सनातन संस्कृति के बिल्कुल खिलाफ है। इससे बेहतर है कि इस तरह हवन के नाम पर धर्म का मजाक न बनने दिया जाए।
हवन हमेशा सदियों से पवित्रता के साथ विधि अनुरूप किया जाता है जिससे महामारियां भी समाप्त होती है। हवन में हर तरह की नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने की शक्तियां हैं और इस तरह करने से शक्तियों का भी ह्रास होता है और समाज पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।

जूतों के साथ हवन करना सर्वथा अनुचित, सनातन का अपमान

निखिल ज्योतिष कर्यालय

निखिल ज्योतिष कर्यालय कैथू शिमला के ज्योतिषाचार्य पंडित रामेश्वर शर्मा ने कहा कि ये जानकर हर्ष हो रहा था कि वातावरण शुद्धि के लिए वैदिक रीति से हवन किया जा रहा था लेकिन क्या हमारे सनातन धर्म का स्तर ये है कि हमें समेत जूतों के हवन करना पड़े, ये तो सर्वथा अनुचित दिख रहा है। इससे बेहतर तो न करते। सनातन का अपमान तो असहनीय व पीड़ादायक है। चमड़े की पेटी चमड़े के जूते पहनकर खड़े-खड़े हवन करना, ये तरीका अशोभनीय सर्वथा असहनीय है। मुझे तो यज्ञ कुंड भी ठीक नहीं लग रहा है। शर्मसार कर रहा है। यज्ञ करें, अवश्य करें, पर सही यम नियम विधि विधान को मध्य नजर रखते हुए। संस्कृति का मजाक न बने यही प्रार्थना है।

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