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विशेष- कोविड की आड़ में- अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला कहीं अन्त की ओर तो नहीं..!

एप्पल न्यूज़, रामपुर बुशहर

स्कूल कॉलेज खुल गए हैं, सरकारी अर्धसरकारी गैर सरकारी कार्यालयों में सभी कार्य होने लगे हैं, यातायात सुचारू है, राज्य की सीमाओं पर अब आने जाने वालों पर कोई रोक टोक नहीं। सरकार कोविड टीकाकरण अभियान को युद्धस्तर पर पूरा करने में जुटी है। और सरकारी आंकड़े बताते है कि हिमाचल प्रदेश कॉविड वैक्सिनेशन की पहली डोज को 100% पूरा करने वाला पहला राज्य बना है। दूसरी डोज का कार्य भी लगभग सम्पन होने को है। ऐसे में कॉरोना से भयमुक्त वातावरण तैयार हो रहा है।
इसी बीच इस वर्ष कुल्लू का दशहरा बड़े भव्य ढंग से मनाया गया। पिछले ही दिन माता रेणुका माई को स्मर्पित रेणुका मेले का शुभारम्भ हुआ। इस मेले में माननीय मुख्यमंत्री श्री जय राम ठाकुर जी ने भी शिरकत की और ईष्ट की शोभनीय पालकी को अपने कन्धे पर उठाया।


अच्छी बात है! मेले तीज त्यौहार ही तो हमारी सभ्यता संस्कृति की रीढ़ की हड्डी है । इन्हें सिंचित संरक्षित करने वाले लोग ही सही अर्थों में संस्कृति पालक एवम् राष्ट्र भक्त कहलाने योग्य है। इन्हीं तीज त्यौहारों मेलों से ही तो आपसी मेल मिलाप भाईचारा व्यवहार व्यापार की अलख जीवंत हो उठती है। धन्य हैं वे लोग जिन्होंने महामारी की गंभीरता को समझते हुए अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के मेलों का आयोजन किया।
लेकिन! बुशहरी लोगों को यहां के जन प्रतिनिधियों को क्या हो गया है! क्यों सभी कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं। क्या किसी को भी बुशहरि संस्कृति पर लटकती तलवार दिखाई नहीं दे रही? यहां नेतागण बड़ी बड़ी रैलियां कर सकते हैं, लोग शादी ब्याह भोज भंडारे जैसे बड़े बड़े कार्यक्रम कर सकते हैं। तीज त्यौहार के अवसर पर बाज़ार में भीड़ का हिस्सा बन सकते हैं तो फिर लवी मेला क्यों नहीं मना सकते?


क्या इसलिए कि यहां के किसानों बागवानों के उत्पाद को एक बेहतर मार्किट की उपलब्धता होती है?
✓क्या इसलिए कि यहां के कारीगरों को अपनी कारीगरी प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होता है?
✓क्या इसलिए कि सामान्य व गरीब लोगों को सही और सस्ते दामों में ज़रूरत की वस्तुएं मिलती है?
✓क्या इसलिए कि ज़रूरतमंद मुफलिस रेड़ी ठेले वाले व्यापारी मेले में व्यापार से चंद पैसे कमाते हैं?
✓क्या इसलिए कि घुड़पालको को सम्मानजनक मंच प्राप्त होता है?
✓क्या इसलिए कि बुशाहरी व गैर बुशहरी बुनकरों जो टोपी पट्टू दोहडू बुनते बनाते हैं उन्हें स्वरोजगार से आजीविका प्राप्त होती है?
✓क्या इसलिए कि मेले में लगने वाली विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनी से लोगों को कुछ नया देखने नया सीखने नया करने की प्रेरणा मिलती है?
✓क्या इसलिए कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों की संध्या पर लोग बड़े बड़े गीतकार, संगीतकार, कलमकार और राजनीतिज्ञों से अवगत होते हैं?
✓क्या इसलिए कि सांस्कृतिक संध्या में स्थानीय कलाकारों फनकारों को भी अपनी कला निखारने का सुअवसर प्राप्त होता है?
✓क्या इसलिए कि लोगों को आपसी मेल मिलाप भाईचारे को बढ़ावा देने और अपनी संस्कृति से मुखातिब होने का मौका मिलता है?
✓क्या इसलिए कि तनावमुक्त माहौल, लुत्फ उठाते बच्चे, गले मिलती माताएं बहनें, मेहमान नवाजी करते और मिठाइयां बांटते लोग अच्छे लगते हैं?


अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले को व्यापक स्तर पर न मना कर; आंशिक रूप से मनाने का पुरज़ोर विरोध किया जाना चाहिए। यदि यह मेला राजनीतिक षड्यंत्रों की भेंट चढ़ा है तो इसका दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसे पुनः बेहतर ढंग से मनाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए। सत्ता पक्ष के लोग हों, प्रतिनिधि हों या विपक्ष के; सभ्यता संस्कृति हम सबकी एक है इसलिए एकजुट हो जाएं।


याद रहे:–👇
राजनीति से सिर्फ सत्ता पर काबिज़ हुआ जा सकता है। दिलों पर तो केवल सभ्यता संस्कृति ही राज करती है।

लेख साभार– *एस पी *”हुड्डन”*🙏

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