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राजनाथ सिंह बोले- “शांतिप्रिय भारत को युद्ध से डरने वाला समझने की गलती न करें” बुरी नज़र रखने वालों को करारा जवाब देने में ‘नया भारत’ सक्षम

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हिमाचल प्रदेश के बाडोली में आयोजित कार्यक्रम में सशस्त्र बलों के शहीद नायकों के परिवारों को सम्मानित किया; उन्‍होंने कहा कि देश सदैव उनका ऋणी रहेगा
एप्पल न्यूज़, कांगड़ा

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्र की सेवा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले हिमाचल प्रदेश के सशस्त्र बलों के वीर जवानों के परिवारों को सम्मानित किया। हिमाचल के कांगड़ा जिले के बाडोली में इस सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।

रक्षा मंत्री ने पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा (1947); ब्रिगेडियर शेर जंग थापा, महावीर चक्र (1948); लेफ्टिनेंट कर्नल धन सिंह थापा, परमवीर चक्र (1962); कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र (1999) और सूबेदार मेजर संजय कुमार, परमवीर चक्र (1999) सहित उन सभी युद्ध नायकों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की जिनका नाम उनकी बेजोड़ बहादुरी और बलिदान के लिए हर भारतीय के दिलों में अंकित है।

राजनाथ सिंह ने युद्ध वीरों के परिवारों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए कहा कि देश वीर जवानों द्वारा दिए गए बलिदान का सदैव ऋणी रहेगा।

उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल हमेशा लोगों, विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेंगे, क्योंकि उनमें अनुशासन, कर्तव्य के प्रति समर्पण, देशभक्ति और बलिदान के गुण हैं और वे राष्ट्रीय गौरव और विश्वास के प्रतीक हैं।

उन्होंने कहा कि पृष्ठभूमि, धर्म और पंथ मायने नहीं रखते, बल्कि यह मायने रखता है कि हमारा प्रिय तिरंगा ऊंचा उड़ता रहे।

रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने पूरी दुनिया को शांति का संदेश दिया है और इसकी बहादुरी के लिए दुनिया भर में इसकी सेना का सम्मान किया जाता है।

उन्‍होंने यह कहते हुए कि भारत ने कभी भी किसी देश पर हमला नहीं किया है, न ही उसने एक इंच भी विदेशी भूमि पर कब्जा किया है, राष्ट्र को आश्वासन दिया कि यदि भारत में सद्भाव को बिगाड़ने का कोई प्रयास किया गया, तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

उन्‍होंने कहा कि भारत एक शांतिप्रिय देश है, लेकिन इसे कायर या युद्ध से डरने वाला समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। ऐसे समय में जब हम पूरी दुनिया के साथ मिलकर कोविड-19 से निपट रहे थे, हमें चीन के साथ उत्तरी सीमा पर तनाव का सामना करना पड़ा।

गलवान घटना के दौरान हमारे जवानों के साहस ने यह साबित कर दिया कि सत्ता कितनी भी बड़ी क्यों न हो; भारत कभी नहीं झुकेगा।

2016 सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 बालाकोट हवाई हमले पर राजनाथ सिंह ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नई रणनीति ने उन लोगों की कमर तोड़ दी है जो राष्ट्र की एकता और अखंडता को चोट पहुंचाने की कोशिश करते हैं।

एक सुविचारित नीति के तहत पाकिस्तान में सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियाँ की गईं। उरी और पुलवामा हमलों के बाद, हमारी सरकार और सशस्त्र बलों ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट हवाई हमले के माध्यम से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने के लिए भारत की अटूट प्रतिबद्धता को दुनिया के सामने प्रदर्शित किया।

हमने दिखाया कि हमारे बलों के पास इस तरफ और जरूरत पड़ने पर सीमा के दूसरी तरफ भी कार्रवाई करने की क्षमता है। भारत की छवि में बदलाव आया है। अब इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गंभीरता से सुना जाता है।’

रक्षा मंत्री ने देश को मजबूत और ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के सरकार के अटूट संकल्प और प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए किए गए उपायों के कारण हासिल प्रगति पर भी प्रकाश डाला।

उन्‍होंने कहा कि पहले भारत को एक रक्षा आयातक के रूप में जाना जाता था। आज, यह दुनिया के शीर्ष 25 रक्षा निर्यातकों में से एक है। आठ साल पहले लगभग 900 करोड़ रुपये से रक्षा निर्यात बढ़कर 13,000 करोड़ रुपये के स्‍तर को पार कर गया है।

हमें उम्मीद है कि 2025 तक रक्षा निर्यात 35,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा और 2047 के लिए निर्धारित 2.7 लाख करोड़ रुपये के रक्षा निर्यात के लक्ष्य को पूरा कर लिया जाएगा।

राजनाथ सिंह ने कहा कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का गठन और सैन्य मामलों के विभाग की स्थापना राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए किए गए कुछ प्रमुख सुधार हैं।

“राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के दरवाजे लड़कियों के लिए भी खोल दिए गए हैं, सशस्त्र बलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया जा रहा है। हमने युद्धपोतों पर महिलाओं की तैनाती का रास्ता खोल दिया है।”

उन्होंने कहा कि सरकार एक ‘नए भारत’ का निर्माण कर रही है जो हमारे सभी शांतिप्रिय मित्र देशों को सुरक्षा और विश्वास की भावना प्रदान करेगा। तथा गलत इरादे वाले लोगों को धूल के सिवा कुछ भी नहीं मिलेगा।

रक्षा मंत्री का विचार था कि सशस्त्र बलों के नायकों से ली गई प्रेरणा ही भारत के विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ने का मुख्‍य कारण है। उन्‍होंने कहा कि जब युद्ध के काले बादल दिखाई देते हैं और राष्ट्रीय हितों पर हमला होता है, तो यह सैनिक ही होता है जो उस हमले को सहन करता है और देश की रक्षा करता है। यह शहीद हुए नायकों का सर्वोच्च बलिदान ही है जो लोगों को जीवित रखता है।

राजनाथ सिंह ने हिमाचल प्रदेश को भारत और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीमावर्ती राज्य बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लोगों के जीवन को बेहतर बनाना हर सरकार की जिम्मेदारी है।

उन्होंने कहा कि सीमा के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के साथ-साथ देश की खुफिया और संचार क्षमता को प्रधान मंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

उन्होंने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सैकड़ों किलोमीटर लंबी सड़कों, पुलों और सुरंगों का निर्माण किया गया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश में बनी अटल सुरंग ऐसी ही बड़ी परियोजनाओं में से एक है।

रक्षा मंत्रालय ने पूर्व सैनिकों को देश की संपत्ति बताते हुए कहा कि मातृभूमि की सेवा में उनके बलिदान की कोई कीमत तय नहीं की जा सकती। उन्होंने पूर्व सैनिकों की भलाई और कल्याण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता और कर्तव्य को दोहराया।

उन्होंने ‘डिजिटल इंडिया’ के तहत ऑनलाइन सेवाओं सहित रक्षा मंत्रालय द्वारा उनके जीवनयापन को आसान बनाने के लिए उठाए गए उन कदमों को सूचीबद्ध किया, जिनमें स्मार्ट कैंटीन कार्ड, भूतपूर्व सैनिक पहचान पत्र; केन्द्रीय सैनिक बोर्ड और पुनर्वास सेवा महानिदेशालय तक ऑनलाइन पहुंच और पेंशन प्रशासन प्रणाली (रक्षा) (स्पर्श) पहल के लिए प्रणाली की शुरुआत शामिल हैं।

राजनाथ सिंह ने 1971 के युद्ध में भारत की जीत का भी उल्लेख करते हुए कहा कि इसे इतिहास में किसी भी प्रकार की संपत्ति, अधिकार या शक्ति के बजाय मानवता के लिए लड़े गए युद्ध के रूप में याद किया जाएगा।

उन्‍होंने कहा कि जनरल सैम मानेकशॉ, जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, जनरल जैकब, जनरल सुजान सिंह उबान और जनरल ऑफिसर इन कमांड एयर मार्शल लतीफ के नाम, जिन्होंने भारत को शानदार जीत दिलाई, कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।

युद्ध में भारतीय सैनिकों में हिंदू, मुस्लिम, पारसी, सिख और यहूदी शामिल थे। यह सर्वधर्म समभाव (सभी धर्मों के लिए सम्मान) के प्रति भारत के विश्वास का प्रमाण है। ये सभी वीर सैनिक अलग-अलग मातृभाषा वाले अलग-अलग राज्यों के थे, लेकिन वे भारतीयता के एक मजबूत और साझा धागे से बंधे हुए थे।

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