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कोरोना काल में भी मनरेगा मजबूर, अब तक 22% परिवारों को मिला महज 17 दिनों का काम-भूपेंद्र सिंह

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एप्पल न्यूज़, शिमला

हिमाचल प्रदेश निर्माण मज़दूर फेडेरेशन का कहना है कि कोरोना के चलते शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर उद्योग धन्दे बन्द हो गए हैं और बेरोज़गारी बढ़ रही है बहुत से ग्रामीण इलाकों के लोग जो इन उद्योगों में काम करते थे वे भी पिछले तीन महीने से घरों में बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।

इस संकट के समय में ग्रामीण इलाकों में आमदनी का मनरेगा में रोज़गार एक मुख्य सहारा हो सकता है। निर्माण मज़दूर फेडेरेशन ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार और ग्रामीण विकास विभाग मनरेगा में लाखों मज़दूरों को रोज़गार देने के लिए गम्भीर नहीं है।

फेडेरेशन के राज्य महासचिव व ज़िला पार्षद भूपेंद्र सिंह द्धारा जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश में इस वित्त वर्ष की प्रथम तिमाही में कुल पंजीकृत परिवारों में से 22 प्रतिशत को औसतन 17 दिन का ही काम मिला है और 78 प्रतिशत परिवारों को काम नहीं मिल रहा है जो सरकार की नाकामी का प्रमाण है।

भूपेंद्र सिंह ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में कुल 13.02 लाख परिवारों के कार्ड बने हैं जिनमें से विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 7.52लाख परिवार ही एक्टिव जॉब कार्ड की श्रेणी में हैं। जो अपने आप मे सवाल खड़े करता है कि कुल परिवारों में से 42 प्रतिशत परिवारों को मनरेगा में काम क्यों नहीं दिया जा रहा हैं?

कुल एक्टिव जॉब कार्डों के तहत 10.69 लाख मज़दूर काम करते हैं लेकिन उनमें से केवल 44 प्रतिशत को ही काम मिल रहा है और 66प्रतिशत को काम नहीं मिल रहा है। राज्य महासचिव ने बताया कि गत वित्त वर्ष में भी पूरे प्रदेश में मात्र 49 दिनों का औसत रोजगार ही प्रदेश में मिला है और कुल साढ़े सात लाख मज़दूरों में से साढ़े पांच लाख परिवारों को ही काम मिला था अर्थात दो लाख परिवारों के साढ़े तीन लाख एक्टिव मज़दूरों को भी काम नहीं दिया गया था।

जिससे साफ़ है कि प्रदेश सरकार हर गरीब परिवार को मनरेगा क़ानून के तहत भी रोज़गार उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। जिसके लिए केंद्र सरकार भी बराबर की जिम्मेवार है जो जरूरत के अनुसार फण्ड जारी नहीं कर रही है और प्रचार प्रसार ज्यादा करती है।

गत वर्ष हिमाचल प्रदेश में 61532 लाख रुपये का बजट जारी किया गया है जबकि खर्चा 70898 लाख रुपये हुआ था जो पंजीकृत मज़दूरों के हिसाब से पचास प्रतिशत ही प्राप्त हुआ है।गत वर्ष केवल 61192 परिवारों को ही सौ दिनों का काम मिला है जो कुल मिला कर छह प्रतिशत परिवारों को ही पूरा निर्धारित समय का रोज़गार मिला है।

वर्तमान वर्ष में कुल 7.52 लाख परिवारों में से अभी तक केवल 1.68 लाख परिवारों को 17 दिनों का ही काम दिया गया है। जबकि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और रोज़गार मुहैया कराने के लिए केंद्र व राज्य सरकार ने अप्रैल माह से ही काम शुरू करने को अनुमति दे दी थी।लेकिन अभी तक पूरे प्रदेश में 22प्रतिशत को ही काम मिलना बहुत ही चिन्तनीय बात है।

इस संकट के दौर में भी सरकारी विभागों व पंचायतों की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा करती है। इसलिए निर्माण मज़दूर फेडेरेशन की मांग है कि जल्दी से जल्दी सभी जॉब कार्ड धारकों को रोज़गार सुनिशित किया जाये और उसके लिए ग्रामीण विकास विभाग के मन्त्री और मुख्यमंत्री को सप्ताहिक आधार पर रिपोर्टिंग लेकर कार्यों की रफ़्तार बढ़ाने की योजना बनानी चाहिए।

इसके अलावा वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर कार्यदिवसों को बढ़ाकर 250 रु वार्षिक किया जाये और मज़दूरी 350 रु दैनिक की जाये। कार्य करने के लिए औजार दिए जाएं साप्ताहिक अवकाश दिया जाए और कार्यों की पैमाइस करने के लिए लोकनिर्माण विभाग के शेडयूल के बजाये मनरेगा के लिए अलग शेड्यूल बनाया जाये।

राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड से पंजीकृत मज़दूरों को दी जा रही चार हज़ार रु की कोरोना राहत राशि को बढ़ाकर साढ़े सात हज़ार रुपये किया जाये।

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