शिक्षा की नई नीति में गुणवत्ता पर जोर
एप्पल न्यूज़, शिमला
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई जिसे सभी के परामर्श से तैयार किया गया है। इसे लाने के साथ ही देश में शिक्षा के पर व्यापक चर्चा आरंभ हो गई है। शिक्षा के संबंध में गांधी जी का तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंर्तनिहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। इन्हीं सब चर्चाओं के मध्य हम देखेंगे कि 1986 की शिक्षा नीति में ऐसी क्या कमियाँ रह गई थीं जिन्हें दूर करने के लिये नई राष्ट्रीय शिक्षा नति को लाने की आवश्यकता पड़ी। साथ ही क्या यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति उन उद्देश्यों को पूरा करने में सक्षम होगी जिसका स्वप्न महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद ने देखा था?
सबसे पहले ‘शिक्षा’ क्या है इस पर गौर करना आवश्यक है। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसका कोई उद्देश्य होता है और जिससे मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत किया जाता है। शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है।
गौर हो कि नई शिक्षा नीति 2020 की घोषणा के साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इस नीति द्वारा देश में स्कूल एवं उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों की अपेक्षा की गई है। इसके उद्देश्यों के तहत वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100% GER के साथ-साथ पूर्व-विद्यालय से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का लक्ष्य रखा गया है।
वैश्वीकरण का दौर बाजार का दौर है। जो लाभ की दृष्टि से पूरी तरह आप्लावित है। जोड़-घटा का गणित ही मानवीय क्रिया-कलाप को संचालित कर रहा है। ऐसे वातावरण में संवेदना, रचनात्मकता, जिज्ञासा और जरुरत के लिए जगह ही नही बचती है। जबकि संवेदना तो समाज का आधार है। समाज की विविधताओं, आवश्यकताओं और इच्छाओं को संवेदना के साथ समझने की क्षमता शिक्षा की उदार ज्ञान धाराएं ही प्रदान करती है। आज जिस तरह से बदलावों की बयार है। मशीनीकरण का विस्तार, जलवायु परिवर्तन और कृत्रिम मेधा तथा अंधाधुंध उपभोग व पर्यारवरण क्षरण से समाज नए-नए तनावों का सामना कर रहा है। उसके लिए एक स्मार्ट मानव व्यवहार विकसित होना जरुरी है। आज वर्चुअल व्यवहार स्मार्टफोन और इंटरनेट जिन तनावों और जटिल समस्याओं के बीच मानव को फंसाये खड़ा है उनमें लिबरल आर्ट्स जैसे माध्यम उत्तर-आधुनिक दौर के मनुष्य का सशक्तीकरण करने में अहम् भूमिका निभायेगें। मौजूदा दौर में अलग ढ़ग के कौशलों और दृष्टिकोणों की जरूरत है। जिसके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आवश्यक शर्त है। समय की इसी आवश्यकता को समझते हुए नई राष्टृय शिक्षा नीति-2020 में मुख्य फोकस गुणवत्ता आधारित शिक्षा प्रदान करने पर है।
इस दिशा में नई शिक्षा नीति की यह प्रतिबद्धता कि शिक्षा बज़ट बढ़ाकर जी.डी.पी. का 6 प्रतिशत कर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है, एक सराहनीय पहल है। इससे शिक्षा क्षेत्र के संसाधनों का विकास संभव हो सकेगा। नई नियुक्तियां होगी जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात बेहतर बन सकेगा। प्राचीन भारतीय भाषाएं प्राकृत, पाली व पर्सियन के संरक्षण व संवर्द्धन के प्रति प्रतिबद्धता नीति का नया आयाम है। मल्टीपल एंट्री-एग्जिट के प्रावधानों से भी उच्च शिक्षा में स्वतंत्रता और समानता के मूल्य मजबूत होंगें। वहीं रुचि के विषयों के साथ अध्ययन करने से सृजनात्मक और रचनातमक वातावरण बनने की संभावनाएं प्रबल होंगी। ये नए प्रयोग शिक्षा की गुणवत्ता में गुणात्मक ढ़ंग से परिवर्तन लायेंगे। नई शिक्षा नीति के तहत वर्ष 2030 तक उच्च शिक्षा में नामांकन को 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एनरोलमेंट को 26.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके लिए अनुमानतः 3.3 करोड़ सीटें उच्च शिक्षा के लिए बढ़ानी होगीं। जिसका सकारात्मक प्रभाव यह होगा कि इससे रोजगार के नए अवसर भी बढ़ेंगें और विकास भी विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगा। प्रत्येक जनपद में एक उच्च शिक्षण संस्थान स्थापित करने का निर्णय भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा मे महत्वपूर्ण योगदान करने वाला सिद्ध होगा।
प्रबंधन और पर्यावरण अध्ययन का संबंध बहुविषयक शिक्षा से है। इनके दायरे में वह सब आता है जिससे मानव सभ्यता विकसित हुई है। लिबरल आर्टस की यह शिक्षा ही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को व्यापकता प्रदान करती है। जिसके जरिए मनुष्य अपने अतीत से जुड़कर अपनी मौजूदा संमस्याओं को संबोधित करता हुआ अपने भविष्य को संवारने-समझने में सफल ढ़ंग से आगे बढ़ता है। इसीलिए नई शिक्षा नीति इन उदार विद्याओं को शिक्षा प्रणाली में विशेष स्थान देने की हिमायती है। नई शिक्षा नीति में पर्यावरणीय जागरूकता, जल व संसाधन संरक्षण और स्वच्छता व प्रबंधन शामिल हैं। यह वास्तव में स्थायी भविष्य के लिए अनिवार्य हैं और तेजी से वैश्वीकृत होती अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक भी। सतत विकास की दृष्टि से भी यह जरुरी है। यह संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष एजेंडे का भी हिस्सा है और हमारी नई शिक्षा नीति का भी।
नयी राष्टृय शिक्षा नीति में 21वीं सदी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रणाली को लचीली, बहु-विषयक और बहु-वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर तैयार किया गया है। जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की स्थापना की जा सके। प्रत्येक शिक्षार्थी की विशेष क्षमता का सदुपयोग समाज व राष्टृ के विकास में सुनिश्चित किया जा सके। साथ ही भारतीय परंपराओं और मूल्यों का संरक्षण व संवर्द्धन नयी शिक्षा नीति के माध्यम से संभव हो सके। नई राष्टृय शिक्षा नीति एक समावेशी और उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रणाली के प्रति प्रतिबद्ध है। जिससे ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में मदद मिल सके और भारत 21वीं सदी में दुनिया का एक सुपरपावर राष्टृ बन सके। इस दिशा में आवश्यक पहल करने का दायित्व ’राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा समिति’ कौ सौंपा गया है। जो यह सुनिश्चित करने का काम करेगी कि पाठ्यक्रम में भारतीयता का पुट पूरी तरह शामिल रहे। लोक जनमानस में बसा परम्परागत ज्ञान कैसे देश के विकास की मुख्यधारा में अपना योगदान दे सके। समाज के परम्परागत ज्ञान को ऐसे तरीकों में ढ़ालकर वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जायेगा। जिसमें भारतीय परंपराओं, मान्यताओं और स्थानीयता विशेषताओं की उपस्थिति दर्ज हो सके। इसमें भाषा, संस्कृति, सभ्यता और विरासत तथा मनोविज्ञान के प्राचीन ज्ञान भंडार को समाहित रखा जाएगा। पाठ्यक्रम में कहानियां, कला, खेल, संवाद, योग, ध्यान, परम्परागत और मौलिक हुनर को शामिल कर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाया जायेगा। आदिवासी समुदायों की चिकित्सा पद्धति, वन संरक्षण, पारंपरिक व प्राकृतिक खेती के तौर-तरीके और जीवनानुभव व अनुसंधान पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेंगे। नई शिक्षा नीति प्रत्येक भाषा, कला और संस्कृति को समान रूप से संरक्षित और सवंर्द्धित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को नया आयाम प्रदान करेगा।
शिक्षा में टेक्नोलॉजी का सदुपयोग कर योजनाबद्ध ढ़ंग से शैक्षिक प्रशासन और प्रबंधन को प्रभावी बनाने तथा वंचित समूहों तक शिक्षा की पहुंच को सुगम बनाने के लिए एक स्वायत्त निकाय ’राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ बनेगा। जिसके माध्यम से शिक्षा प्रणाली को टैक्नो-फ्रेंडली बनाने की दिशा में काम किया जायेगा। इसी तरह ’नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ परम्परागत ज्ञान संरचनाओं की खोजबीन में विशेष योगदान करेगा। फलस्वरुप शिक्षा में गुणवत्ता मौलिकता और रचनात्मकता के साथ स्थापित हो सकेगी। नई शिक्षा नीति क्लास रूम से बाहर शिक्षा को ले जाने की दिशा में नए प्रयोगों को प्रेरित करने वाली है। शिक्षा को रोज़गार से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। वोकेशनल एजुकेशन को प्रभावी रुप में शिक्षा का हिस्सा बनाया जायेगा।
निष्कर्षतः नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 सहभागिता आधारित, बहुआयामी, भारतीयता केन्द्रित और समावेशी प्रक्रिया के तहत राष्टृय आकांक्षाओं और उददेश्यों को पूरा करने की मंशा से भारत को एक ज्ञानमय समाज में रुपांतरित करने की दिशा में अहम् कदम है। नई शिक्षा नीति देश के युवा-वर्ग को नए कौशलों और नये ज्ञान से लैस करेगी। देश को सुपरपावर बनाने के इस महान उददेश्य को पाने में मददगार बनेगी। विज्ञान, तकनीक और अकादमिक क्षेत्रों में नवाचार और अनुसंधान की संस्कृति विकसित कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का आधार तैयार करने में नयी शिक्षा नीति आशा की बड़ी की किरण है। जिसमें गुणवत्ता शिक्षा की दिशा में विज्ञान, भाषा और गणित पर विशेष जोर है। बच्चों में लेखन कौशल बढाने वाले नवाचार जिसके लिए सप्ताहन्त, मेले, प्रदर्शनी, दिवार-अखबार, चर्चाएं और शिक्षण की कहानी पद्धति के साथ कहानी सुनाना, नाटक खेलना और चित्रों का डिसप्ले बोर्ड, अध्ययन और संवाद की नयी संस्कृति का विस्तार नई शिक्षा नीति को वाकई नया बनाता है।
डॉ मामराज पुंडीर
राजनितिक शास्त्र प्रवक्ता
9418890000
mamraj.pundir@rediffmail.com