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कलम की ‘ नवजात ‘से मुलाकात

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एप्पल न्यूज़, शिमला

अरसे के बाद मेरी कलम की मुलाकात देवधरा के एक ऐतिहासिक नवजात से होने जा रही है । हिमाचल के अस्तित्व के 50 वर्ष के मौके पर पहली मर्तबा ऐसा होगा ,जब इस छोटे से पहाड़ी राज्य में पांच में से चार नगर निगम पर चुनाव होने जा रहा है । ऐतिहासिक इसलिए कि स्वर्णिम वर्ष के मौके पर अभी-अभी जन्म लिए तीन निगम सीधे ही पार्टी सिंबल पर अपने अस्तित्व की अग्नि परीक्षा देंगे। महत्वपूर्ण इसलिए कि चावल के यही चार दाने यह बताएंगे कि किस दल का ‘ भात ‘कितना पका है ? दिलचस्प रहेगा !!

फ़ाइल फोटो


बंगाल – असम के चुनावी महाकुंभ के शोर-शराबे के बीच पहाड़ों की गोद में चुनावी सरगर्मियां सरपट दौड़ती चुनावी बयार सभी राजनीतिक दलों को बड़े रण के लिए तैयार कर रही हैं ।अखबारों के पन्नों पर नजर घुमा देती हूं या फिर सोशल मीडिया के झरोखों से अलग-अलग लोगों की क़स्बों नुक्कड़ों , या गलियो की सभाएँ दिखती हो या फिर पर्चा भरते उम्मीदवार हो या फिर गले में पार्टियों के पट्टे बांधी कार्यकर्ताओं की दावेदारी ….यह सब आज कोविड के दौर में समय बिताने के लिए या घर बैठे लोगों के लिए बढ़िया मनोरंजन सा लगता है ।
दरअसल हिमाचल बनने के बाद पहली बार इससरकार ने तीन नए नगर निगम बनाए गए ।कांगड़ा जिला में पालमपुर ,मंडी जिला में मंडी ,शहर सोलन जिला में सोलन । यह तीनों वर्तमान में भाजपा की सरकार ने बनाए ।जबकि कुछ वर्ष पूर्व ही कांग्रेस सरकार ने धर्मशाला को निगम कांगड़ा जिला में बनाया था ।
शिमला हिमाचल प्रदेश का एकमात्र नगर निगम हुआ करता था । अब पंचायतों के क्षेत्र को नगर निगम में मिलाकर नए प्रारूप को इसलिए भी दिया गया ,ताकि नियमों के तहत शहर काम करें और अबाधित विकास हो ।सड़क ,बिजली ,पानी ,नक्शे इत्यादि के लिए टैक्स की अदायगी की जाए और बदले में निगम एक बेहतर व्यवस्था उपभोक्ता को प्रदान करें । इसे कायदे कानून को व्यवस्था की तुलना में भारी माना गया ।तभी राजनीतिक तौर पर नए नियमों को जन्म देने का जोखिम किसी ने नहीं लिया था ।अभी निगम में मिली पंचायतों के विरोध मुखर हैं और ऊँट अपनी करवट नहीं तय नहीं कर पा रहा ।
मेरी कलम का तजुर्बा कहता है कि सियासत के कई मायने होते हैं ।लेकिन फिलहाल तो यह निगम चुनाव मेन इग्ज़ैमिनेशन का फ़ीवर भर ही है । धर्मशाला ,सोलन ,पालमपुर और मंडी में हिमाचल की राजनीति उलझी हुई है । टारगेट और अचीवमेंट पर निगाहें इसलिए लगी हैं क्योंकि नेताओं का अक्सर भविष्य उनकी ऐसी ही क़िस्म की परीक्षाए तय करती है । जैसे किसको किस काम का ज़िम्मा दिया है …. आदि आदि ।

भाजपा और कांग्रेस मुख्य दो दल पार्टी सिंबल पर भले ही आमने सामने हो लेकिन आम आदमी पार्टी भी हिमाचल में घर बसाने की सोच रही है ,ऐसा उतरे उम्मीदवारों के लहजे से झलक भी रहा है ।
निगम चुनावों का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि पार्टी सिंबल पर लड़ना कोई पत्थर की लकीर भी तो नहीं ! शिमला केअकेले नगर निगम में कई बार तो बिना सिंबल के चुनाव लड़े गए और कई बार सिंबल पर चुनाव हुए । तो मेयर और डिप्टी मेयर पद लेफ़्ट के हवाले भी हो गए ।यह जोखिम भरा फ़ैसला था।उसके बाद अधिसूचना भी उलट-पुलट हो गई । अब लेफ़्ट का तो यह डर नहीं है । इसलिए विधानसभा चुनाव के इस ‘करटन रेज़र ‘पर नज़र लगी हुई है ।पार्टी सिंबल ना होता तो प्प्रत्यक्ष चुनावी जंग ना दिखती ना ही पार्टियों को आत्मविश्लेषण कामौका मिलता !
हम कलम के चुनावी कसीदे कितने ही गढ़ ले लेकिन यह दिख रहा है कि छोटे से चुनाव में कई कीं सांसे थम सी गई है । कांगड़ा की परीक्षा धर्मशाला व पालमपुर में है ।धर्मशाला में 17 व पालमपुर में 15 वार्ड है ।
हालाँकि मुक़ाबला दो ही दलों में है लेकिन निर्दलीय या नाराज़ में भी काँटे की टक्कर हैं ।बाग़ियों की बगिया भी महक रही है । यह संकेत राजनीति के विश्लेषक समझते हैं ।
कुछ वोट काटू हुए तो जीतने के मजे के बजाय हराने में जीत का जश्न मनाऐंगे । सोलन में 17 वार्डों में तीन चार जगह विचित्र स्थिति है जो बड़े दलों की सिर दर्द ही कही जा सकती है ।वहीं मंडी के 15 वार्डों की गति अपवाद क्यों कही जाए ?? 34 हज़ार वोटर मंडी की ऊखड़ी राजनीति को मुहाने लगाने की कसरत में हैं । धुरंधर कांग्रेस के भी यहां है और भाजपा के भी …बहरहाल कदमताल जारी है ।नतीजे भाजपा या कॉग्रेस के जो भी हों – यहाँ दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों से भी ज़्यादा जंग हो तेज होती जा रही है । जीत — इधर हो या उधर , आधा हो या पूरा या पौना ,
आने वाले समय में राजनीति की दशा तय होगी ही ।जहां एक ओर नवजात निगम 2021 में देवधरा का इतिहास भी दर्ज करेंगा वहीं दलों के लिए आत्ममंथन भी ।जनम देने के निर्णय की कसौटी भी !

साभार

डॉ रचना गुप्ता, सदस्य राज्य लोक सेवा आयोग व पूर्व सम्पादक के ब्लॉग से

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