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सीटू ने शिमला में मनाया स्थापना दिवस, कोरोना नियमों का पालन करते हुए दर्ज करवाई भागीदारी

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एप्पल न्यूज़, शिमला

सीटू के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन सीटू द्वारा हिमाचल प्रदेश के जिला, ब्लॉक मुख्यालयों, कार्यस्थलों, गांव तथा घर द्वार पर सीटू कार्यकर्ताओं द्वारा स्थापना दिवस मनाया गया। इस दौरान प्रदेश भर में हज़ारों मजदूरों ने अलग-अलग जगह कोविड नियमों का पालन करते हुए अपनी भागीदारी की और ध्वजारोहण किया। 
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा और महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि इस बार का सीटू स्थापना दिवस कोरोना योद्धाओं को समर्पित किया गया। कार्यक्रमों में कोरोना से जान गंवाने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। उन्होंने कोरोना से जान गंवाने वालों को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशनुसार आपदा राहत कोष से तुरन्त 4 लाख रुपये जारी करने की मांग की है।


उन्होंने 23 साल की आयु के बाद कोरोना से मौत का शिकार हुए लोगों के बच्चों को दस लाख की आर्थिक मदद को देर से मदद देने का कदम बताया। दस लाख की यह मदद मिलने में बच्चों को कई साल का वक्त लगेगा इसलिए इस मदद से पहले इन बच्चों को तुरन्त चार लाख की मदद दी जाए ताकि वे जिंदा रह पाएं और उन्हें 23 वर्ष की उम्र में दस लाख रुपये की आर्थिक मदद भी दी जाए।
उन्होंने सभी आयकर मुक्त परिवारों को 7500 रुपये की आर्थिक मदद और परतीं व्यक्ति दस किलो राशन की व्यवस्था करने की मांग की है ताकि कोरोना महामारी से बेरोजगार हुए लोगों का जीवन यापन सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने कोरोना वैक्सीन का सार्वभौमिकरण करने की मांग की है। कोरोना काल में केंद्र और प्रदेश सरकारें मजदूरों,किसानों,खेतिहर मजदूरों व तमाम मेहनतकश जनता की रक्षा करने में पूर्णतः विफल रही हैं और उन्होंने केवल पूंजीपतियों की धन दौलत सम्पदा को बढ़ाने के लिए ही काम किया है। कोविड महामारी को केंद्र की मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए लूट के अवसर में तब्दील कर दिया है। 
यह सरकार महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने में पूर्णतः विफल रही है। कोरोना महामारी की आपदा में भी केंद्र सरकार ने केवल पूंजीपतियों के हितों की रखवाली की है। सरकार का रवैया इतना संवेदनहीन रहा है कि यह सरकार सबको अनिवार्य रूप से मुफ्त वैक्सीन तक उपलब्ध नहीं करवा पाई है। कोरोना काल में लगभग चौदह करोड़ मजदूर अपनी नौकरियों से वंचित हो चुके हैं लेकिन सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद नहीं मिली। इसके विपरीत मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बना दिये गए।
हिमाचल प्रदेश में पांच हज़ार से ज़्यादा कारखानों में कार्यरत लगभग साढ़े तीन लाख मजदूरों के काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया। किसानों के खिलाफ तीन काले कृषि कानून बना दिये गए। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, पैरामेडिकल, सभी स्वास्थ्य कर्मियों, आशा, आंगनबाड़ी, सफाई,सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट कर्मियों,आउटसोर्स कर्मियों जैसे कोरोना योद्धाओं की रक्षा करने में यह सरकार पूर्णतः असफल रही है। इन्हें बीमा सुविधा तक देने में यह सरकार विफ़ल हुयी है।
लाखों लोग महामारी की चपेट में अपनी जान गंवा चुके हैं लेकिन उनके परिवार को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। इसके बजाय खाद्य वस्तुओं,सब्जियों व फलों के दाम में कई गुणा वृद्धि करके जनता से जीने का अधिकार भी छीना जा रहा है। पेट्रोल-डीजल की बेलगाम कीमतों से जनता का जीना दूभर हो गया है। कोरोना काल में सरकारों की नाकामी के कारण देशभर में सैंकड़ों मेहनतकश लोगों को आत्महत्या तक करनी पड़ी है।

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