एप्पल न्यूज़, शिमला
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला ने अपने पुस्तकालय हॉल में 57वां स्थापना दिवस समारोह मनाया। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थापना वर्ष 1860 के समिति पंजीकरण अधिनियम-21 (पंजाब संशोधित अधिनियम 1957) के अन्तर्गत 6 अक्तूबर 1964 को हुई थी और 20 अक्टूबर, 1965 को देश इस प्रतिष्ठित संस्थान ने काम करना प्रारंभ किया था।
संस्थान एक ऐतिहासिक भवन में विराजमान है जहां से ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान गर्मियों में सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप का शासन चलता था और यह भवन कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी भी रहा है।
स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर संस्थान की अध्यक्षा प्रो. शशिप्रभा कुमार, उपाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र राज मेहता, निदेशक प्रो. नागेश्वर राव, पुस्तकालयाध्यक्ष श्री प्रेमचंद, अध्येता, राष्ट्रीय अध्येता, टैगोर अध्येता, आईयूसी सह-अध्येता, अधिकारी/कर्मचारी और विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।
केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार, इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग/हाइब्रिड मोड के माध्यम से समारोह में शिरकत की।
मुख्य अतिथि के सम्बोधन से पूर्व संस्थान के अध्यक्षा प्रो. शशिप्रभा कुमार, उपाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र राज मेहता एवं प्रो. नागेश्वर राव, संस्थान के निदेशक द्वारा परंपरा के अनुसार दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया।
उसके उपरांत मुख्य अतिथि माननीय शिक्षा राज्य मंत्री, शिक्षा मंत्रालय डॉ. सुभाष सरकार का परिचय प्रस्तुत किया गया।
केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने अपने उद्बोधन में संस्थान के अध्येताओं, सह-अध्येताओं, अधिकारियों तथा कर्मचारियों को स्थापना दिवस की बधाई दी।
उन्होंने कहा कि अपनी स्थापना के इन 57 वर्षों में, संस्थान ने जो शैक्षिक अनुसंधान यात्रा तय की है, उसने कई उपलब्धियां हासिल की हैं जो हमारे लिए सदैव स्मरणीय और महत्वपूर्ण रहेंगी।
यह एक प्रसिद्ध दार्शनिक, विचारक, विद्वान और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की परिकल्पना थी कि उनके ग्रीष्मकालीन आवास को एक स्वतंत्र शोध केन्द्र में परिवर्तित किया जाए जो कि आज भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी संस्थान की पहचान न तो उसकी इमारत होती है और न ही उसकी दीवारों से होती है बल्कि उसकी वास्तविक पहचान उसके कार्यों से होती है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य अच्छा इंसान बनाना है जो हमारे शिक्षकों और शैक्षिक मूल्यों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। हमारे युग की सबसे बड़ी घटना विभिन्न संस्कृतियों, अस्मिताओं, विमर्शों और ज्ञान सम्मिश्रण है जो कि भारतीय ज्ञान प्रणाली की महानता है।
उन्होंने कहा कि 21वीं सदी ज्ञान और शिक्षा की सदी है और इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि नई शिक्षा नीति है जिसके अंतर्गत आर्थिक और सामाजिक रूप से अग्रणी बनने के लिए आईआईएएस जैसे उच्च शिक्षण संस्थान राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
आज हमें औद्योगिक, व्यावसायिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर आधारित अंतर-अनुशासनात्मक शोधकार्यों पर ध्यान देना होगा। शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन सबसे श्रेष्ठ संस्थानों में से एक है और इसने देश को हमेशा गौरवान्वित किया है।
यह संस्थान अनुसंधानरत विद्वानों को एक स्वतंत्र और चिंताओं से मुक्त मंच और वातावरण प्रदान करता है। संस्थान में एक बहुत समृद्ध पुस्तकालय है जिसमें विभिन्न विषयों की लगभग 2,25000 से अधिक पुस्तकें हैं।
यह एक ऐसा संस्थान है कि जहां न कोई शैक्षिक पाठ्यक्रम नहीं है; न कोई परीक्षा आयोजित की जाती है और न ही कोई संकाय है।
यहाँ शोधार्थी अपने ज्ञान और मस्तिष्क का स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर सकते हैं। उनके शोध के परिणाम का उपयोग समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए किया जा रहा है। संस्थान ने संस्कृति और सभ्यता के अध्ययन के लिए रवींद्रनाथ टैगोर केंद्र की स्थापना कर अपनी क्षमताओं का विस्तार किया है।
केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुभाष सरकार ने रबीन्द्रनाथ टैगोर की पक्तियों- ‘‘यदि आप इसलिए रोते हैं कि कोई सूरज आपके जीवन से बाहर चला गया है, तो आपके आँसू आपको सितारों को देखने से भी रोकेंगे’’ से अपने व्याख्यान को विराम दिया।
माननीय मंत्री के व्याख्यान के बाद संस्थान की अध्यक्षा प्रो. शशिप्रभा कुमार ने स्थापना दिवस के अवसर पर सभी को बधाई दी। उन्होंने जीवन में शिक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
उनके उद्बोधन के पश्चात छत्रपति शिवाजी महाराज और जयपुर के राजा महाराजा जयसिंह के बीच धर्म और कर्तव्य पर आधारित वार्तालाप पर एक लघु नाटक का भी मंचन किया गया।
नाटक का निर्देशन संस्थान के टैगोर अध्येता प्रोफेसर महेश चंपक लाल ने किया जबकि संस्थान के अध्येता डॉ. अज़ीज महदी और जनसंपर्क अधिकारी अखिलेश पाठक ने मुख्य किरदार निभाए।