वशिष्ठ ज्योतिष सदन मुख्यालय में पं. अक्षत पाल डोगरा ने किया यज्ञ
एप्पल न्यूज़, शिमला
यज्ञ एक विशिष्ट वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है। यज्ञ के जरिये आध्यात्मिक संपदा की भी प्राप्ति होती है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यज्ञ करने वालों को परमगति की प्राप्ति की बात की है। बुद्ध पूर्णिमा पर कई स्थानों पर यज्ञ का आयोजन किया गया।
बुध पूर्णिमा के मौके पर वशिष्ठ ज्योतिष सदन के मुख्यालय में भी यज्ञ का आयोजन किया गया। इस दौरान कोरोना महामारी को देखते हुए कोरोना नियमों का पूरा पालन किया गया। इस दौरान पं. अक्षत पाल डोगरा ने कोरोना वायरस से बचाव और देश व प्रदेश की सुख-समृद्धि के लिए वशिष्ठ ज्योतिष सदन में यज्ञ किया।
उधर, वशिष्ठ ज्योतिष सदन के अध्यक्ष पं. शशिपाल डोगरा ने यज्ञ का महत्व बताते हुए कहा कि यज्ञ एक अत्यंत ही प्राचीन पद्धति है, जिसे देश के सिद्ध-साधक संतों और ऋषि-मुनियों ने समय-समय पर लोक कल्याण के लिए करवाया।
यज्ञ में मुख्यत: अग्निदेव की पूजा की जाती है। भगवान अग्नि प्रमुख देव हैं। हमारे द्वारा दी जाने वाली आहुति को अग्निदेव अन्य देवताओं के पास ले जाते हैं। फिर वे ही देव प्रसन्न होकर उन छवियों के बदले कई गुना सुख, समृद्धि और अन्न-धन देते हैं। पं. डोगरा कहते हैं कि यज्ञ मानव जीवन को सफल बनाने के लिए एक आधारशिला है। इसके कुछ भाग विशुद्ध आध्यात्मिक हैं।
अग्नि पवित्र है और जहां यज्ञ होता है, वहां संपूर्ण वातावरण, पवित्र और देवमय बन जाता है। यज्ञवेदी में ‘स्वाहा’ कहकर देवताओं को भोजन परोसने से मनुष्य को दुख-दारिद्रय और कष्टों से छुटकारा मिलता है। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। अग्निदेव से प्रार्थना की गई है कि हे अग्निदेव! तुम हमें अच्छे मार्ग पर ले चलो, हमेशा हमारी रक्षा करो।
अंक ज्योतिष के विशेषज्ञ पं. डोगरा ने कहा कि यज्ञ को शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ कर्म कहा गया है। इसकी सुगंध समाज को संगठित कर एक सुव्यवस्था देती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यज्ञ करने वाले अपने आप में दिव्यात्मा होते हैं। यज्ञों के माध्यम से अनेक ऋद्धियां-सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।
यज्ञ मनोकामनाओं को सिद्ध करने वाला होता है। विशेष आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, विशेष संकट निवारण के लिए और विशेष शक्तियां अर्जित करने के लिए विशिष्ट विधि-विधान भी भिन्न-भिन्न हैं। यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है। इसे भुवन का नाभिकेंद्र कहा गया है। याज्ञिकों के लिए आहार-विहार और गुणकर्म को ढालने के लिए विशेष प्रावधान बताया गया है।
यज्ञ से ब्रह्म की प्राप्ति होती है। यह इंसान की पाप से रक्षा करता है, प्रभु के सामीप्य की अनुभूति कराता है। मनुष्य में दूसरे की पीड़ा को समझने की समझ आ जाए, अच्छे-बुरे का फर्क महसूस होने लगे तो समझें यज्ञ सफल है।
यज्ञ करने वाले आपसी प्रेम और भाईचारे की सुवास हर दिशा में फैलाते हैं। पं. शशि पाल डोगरा ने कहा कि आम जन मानस को संक्रांति या फिर पूर्णिमा पर अपने घरों में हवन करना चाहिए। इससे समाज में सात्विक माहौल बनता है।