सेली हाइड्रो इलेक्ट्रिक बिजली कंपनी को हिमाचल भवन को नीलाम कर अपनी रकम वसूलने की अनुमति, विपक्ष ने साधा निशाना कहा हिमाचल की सरकार हर मोर्चे पर फैल
एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल प्रदेश सरकार को हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने दिल्ली स्थित हिमाचल भवन को नीलाम करने के आदेश दिए हैं। मामला एक बिजली कंपनी और सरकार के बीच का है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेशन अवार्ड की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए हिमाचल भवन, 27-सिकंदरा रोड, मंडी हाउस, नई दिल्ली को कुर्क करने के आदेश जारी किए हैं।
हाई कोर्ट के न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने सेली हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी लिमिटेड द्वारा ऊर्जा विभाग के खिलाफ दायर अनुपालना याचिका पर सुनवाई के पश्चात यह आदेश दिए।
कोर्ट ने एमपीपी और पावर विभाग के प्रमुख सचिव को इस बात की तथ्यात्मक जांच करने के आदेश भी दिए कि किस विशेष अधिकारी अथवा अधिकारियों की चूक के कारण 64 करोड़ रुपए की सात फीसदी ब्याज सहित अवार्ड राशि कोर्ट में जमा नहीं की गई है।
कोर्ट ने कहा कि दोषियों का पता लगाना इसलिए जरूरी है क्योंकि ब्याज को दोषी अधिकारी अधिकारियों-कर्मचारियों से व्यक्तिगत रूप से वसूलने का आदेश दिया जाएगा।
कोर्ट ने 15 दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करने और जांच की रिपोर्ट को अगली तारीख को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत के आदेश भी दिए। मामले पर सुनवाई 6 दिसंबर को होगी।
इसके बाद प्रदेश भाजपा सरकार पर फिर हमलावर हो गई है। विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर ने कहा कि हिमाचल के सम्मान का प्रतीक कहे जाने वाला हिमाचल भवन आज कुर्क करने का आदेश हो गया है ।इससे शर्म की बात प्रदेश के लिए और क्या हो सकती है।
प्रदेश की इज्जत मुख्यमंत्री और उनकी सरकार ने तार तार कर दी है हिमाचल आज नीलामी के दहलीज पर खड़ा है।
वहीं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार पर प्रश्न चिन्ह लगाया है। सरकार हर जगह नाकाम रही है। अपना पक्ष कोर्ट में नहीं रख पा रही है। यही वजह है कि हिमाचल भवन को दिल्ली को अटैच करने के आदेश दिए गए हैं।
वहीं आदेशों को लेकर सीएम सुक्खू ने कहा कि फिलहाल उन्होंने आदेशों को पढ़ा नहीं है। सरकार हाई कोर्ट का अध्ययन करेगी।
2006 की ऊर्जा नीति के तहत अपफ्रंट प्रीमियम तय किया जाता है।आर्बिट्रेशन का फैसला चिंताजनक ,सरकार मामले का अध्ययन कर आगामी निर्णय लेगी।
बता दें कि वर्ष 2009 में सरकार ने कंपनी को 320 मेगावाट का बिजली प्रोजेक्ट आवंटित किया था। यह प्रोजेक्ट लाहौल स्पीति में लगाया जाना था। सरकार ने उस समय प्रोजेक्ट लगाने के लिए बीआरओ को सड़क निर्माण का कार्य दिया था।
समझौते के अनुसार सरकार ने कंपनी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवानी थीं, ताकि कंपनी समय पर प्रोजेक्ट का काम शुरू कर सके। कंपनी ने वर्ष 2017 में हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।
कंपनी के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि प्रोजेक्ट लगाने के लिए मूलभूत सुविधाएं न मिलने के कारण प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा और वापस सरकार को दे दिया। इस पर सरकार ने अपफ्रंट प्रीमियम जब्त कर लिया।
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सरकार को सेली कंपनी को 64 करोड़ अपफ्रंट प्रीमियम वापस लौटाने के आदेश दिए। सरकार ने अदालत के फैसले के खिलाफ एलपीए दायर कर दी है।