एप्पल न्यूज़, शिमला
जानेमन नाटक का मंचन शिमला के एतिहासिक गेयटी थियेटर में हुआ। किन्नर समाज के उपर बना ये नाटक सच में मन को झकझोरने वाला है । किन्नर के जीवन में आने वाली चुनौतियों, समाज के प्रति उनका रवैया, और किस तरह जबरदस्ती लोगों को किन्नर बनाकर इस करोबार में धकेला जाता है। इसी पर यह नाटक था। वैसे तो ये नाटक मछेन्द्र मोरे ने लिखा है। लेकिन इसका निर्देशन किया है शिमला के रहने वाले Kapil Dev Sharma जी ने। पहले इस नाटक के बारे में ही बात कर लेते है फिर इसके पीछे के असली हीरो की चर्चा भी करेंगे।
नाटक मंचन नज्जो के अखाड़े से होता है। नज्जों नायक है जो कि किन्नरों का एक अखाड़ा चलाती है। इसके अखाड़े में कई किन्नर थे। लेकिन ये जबरदस्ती किन्नर किसी को नहीं बनाती थी। लेकिन इसी के अखाड़े में एक किन्नर पन्ना थी जो अपनी चेली किसी को बनाना चाहती थी और अखाड़े पर कब्जा करना चाहती थी । लेकिन पन्ना अखाड़ा की मुखिया बनना चाहती थी।
एक दिन उनकी किसी बात को लेकर बहस शुरू हुई। उसने नज्जो का हर कुछ सुनाया। नज्जो ने कहा किसी का बच्चा चुराकर किसी को किन्नर बनाया तो नरक में जाएगी। नज़्जो ने कहा “एक किन्नर में तो औरत का दिल होता है। वो बच्चा पैदा करने की सोचता है लेकिन कुदरत के आगे कहां चलती हैै।” एक दिन मुकेश अखाड़े में आता है। हालांकि वो पुरूष था। लेकिन उसे महिला के हावभाव पहनावा पंसद था। नज्जो ने उसे रख लिया और पन्ना की चेली बना दिया। पन्ना ने मुकेश को किन्नर समाज के बारे में सारा बता दिया कि आखिर समाज किस तरह किन्नरों को दुत्कारता है। लोगों को दुआएं, नाच गाना करके अपना पेट भरती है। फिर बंसती मुकेश को अखाड़े से निकालना चाहती थी क्योंकि यहां की गंदगी और नरक को वो अच्छे से जानती थी । उसने बड़ा समझाया लेकिन मुकेश समझा ही नहीं।
एक दिन गुलाबो जोकि दलाल का काम करती थी एक सेठ को अखाड़े में लेकर आई। सेठ ने नई लड़की को पेश करने की बात कही और मुंह बोली कीमत देने की बात की। नज्जो ने मुकेश से बनी बुलबुल को सेठ के सामने पेश कर दिया। सेठ मन बुलबुल पर आ गया और उसने दो लाख रूपए अदा करने की बात की और 50 हजार रूपए उसी वक्त दे दिए । सेठ ने बुलबुल से शादी करने की बात की और जाते जाते सेठ ने उसे जानेमन कह दिया।
नज्जो और पन्ना काफी खुश हुए क्योंकि बदले में लाखो रूपए मिल रहे थे। उन्होने बुलबुल को किन्नर बना दिया और फिर सेठ अखाड़े में आया और शादी रचा ली। सेठ ने एक ही रात बुलबुल के साथ गुजारी और चला गया। करीब छह महीने तक सेठ वापिस नहीं आया और बुलबुल इसी इंतजार में रही कि सेठ वापिस आएगा। लेकिन सेठ लोग तो अपनी भूख मिटाने आते है किसी को जिंदगी का हमसफ़र बनाने नहीं। लेकिन नज्जों को बुलबुल के अखाड़े में बैठा रहना खटक रहा था। क्योंकि अन्य किन्नर हर रोज नाच गाना करके पैसे कमाकर लाते थे। फिर नज्जो ने पन्ना और बुलबुल को भरा बुला सुना दिया और फैसला लिया कि बुलबुल भी नाच गाने जाएगी। लेकिन ये बात पन्ना और बुलबुल को पंसद नहीं आई। क्योकि वो बुलबुल को अपनी बेटी मानती थी। नज्जो ने अपने शार्गिद को भेज कर बुलबुल से शारीरिक संबध बनवा दिए। ये सदमा पन्ना सह नही पाई और पन्ना की सदमे से मौत हो गई। लेकिन बुलबुल काफी गुस्से में हो गई। क्योंकि अपनी अम्मा पन्ना की मौत वो देख नहीं पाई उसने नज्जो को बहुत कुछ सुनाया और अखाड़े से जाने को कह दिया। नज्जो ने उसे जाने दिया लेकिन ये बात अन्य किन्नरों का पंसद ही नहीं आई और उन्होंने नज्जो से गददी छीन ली। अंत में नज्जो प्रण देती है कि बुंलबुल किसी को भी अखाड़े तक मत पहुंचने देना। नज्जो बहुत मार्मिक तरीके से एक किन्नर को समाज की ओर से मिलने वालें तानों का वर्णन करती है। औरत का पहनावा लेकर आवाज से मर्द के बीच के संघर्ष में अपने अस्तित्व को लेकर किन्नर किस तरह हर पल जूझता है।
नाटक का मंचन आंखों को नम कर देता है। 80 फीसदी पात्र पुरूष ही थे। लेकिन अभिनय के माध्यम से किन्नर का पात्र निभाकर उसे जीवित कर दिया। फेस एक्सप्रेशन से लेकर चाल ढाल, भाषा शैली
अब बात करते है इस मंचन के पीछे के हीरो की। थियेटर की दुनिया में Kedar Thakur जी का नाम सभी जानते है। केदार ठाकुर भाई
को करीब एक दशक पहले से जानता हूं। इनकी मेहनत और लग्न थिएटर के प्रति अद्भुत है। कई रंगकर्मियों के आर्दश है। जानेमन नाटक के मंचन में जो रंगकर्मी अभिनय कर रहे थे । उन्हें पिछले कई वर्षों से केदार ठाकुर तराश रहे है। नाटक का निर्देशन कपिल देव शर्मा ने किया । उन्हें निखारने में भी केदार ठाकुर की अहम भूमिका है। आज कपिल देव शर्मा के सफल होते उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता होगा। शिमला में थियेटर अब काफी विकसित हो गया है। युवा पीढ़ी थियेटर से जुड़ कर अभिनय की बारिकियों को सीख रहे हैं। गेयटी ड्रामेटिक सोसाईटी अब युवा रंगकर्मियों को मंच मुहैया करवाती है। रंगकर्मी पैसे की कमी के कारण नाटक से दूर नहीं जा रहे है क्योंकि सोसाईटी उनके लिए मददगार साबित हो रही है। थियेटर को मजबूत करने के लिए हम सभी को भी जब मौका मिले तो नाटकों को देखने के लिए टिकट लेकर जाना चाहिए।
नाटक के समापन पर उपायुक्त अनुपम कश्यप ने कहा कि सभी पात्रों को अभिनय बेहतरीन था। किन्नर समाज के जीवन पर आधारित ये नाटक झकझोरने वाला था। नाटक में सभी पात्रों के अभिनय से ये जीवंत हो गया है। हर पात्र ने कुदरत से मिलने वाले एहसास को मंच पर दिखाया है। करीब एक घंटे 40 मिनट के इस नाटक ने सभी दर्शकों को बांध कर रखा है। गेयटी थियेटर प्रदेश के कलाकारों के लिए बहुत बड़ा मंच है। इस तरह के मंच से हमारी प्रतिभाओं को निखार मिलता है। उन्होंने कलाकारों को भविष्य में भी इसी प्रकार सामाजिक मुददों पर नाटकों के मंचन करने की अपील की।
नाटक के लेखक मछेन्द्र मोरे और निर्देशन कपिल देव शर्मा ने किया है।
इसमें सौरभ अग्निहोत्री ने नज्जो, योगीराज शर्मा ने पन्ना, नीरज पराशर ने रेखा, सोहन कपूर ने मुकेश, कृतिका शर्मा ने बसंती, रोहित कौशल ने शकीला, पलक शर्मा ने जूली,, लक्की राजपूत ने माया, वैष्णवी हरदेव ठाकुर ने सल्मा, तनू भारद्वाज ने गुलाबो, अशोक मेहता ने सेठ, अराध्या ठाकुर, मोहित ठाकुर ने अभिनय किया। लाईट डिजाईन पर केदार ठाकुर, सेट डिजाईन ललित शर्मा और कपिल देव शर्मा, संगीत प्रेम कपूर और सोहन कपूर, वेशभूषा वैष्णवी अंकिता, प्रॉप मोहित ठाकुर, बैक स्टेज लोकश कुमार, अंकिता, श्रुति रोहटा और पुनीत ने कार्य किया।
जानेमन की पूरी टीम को हार्दिक शुभकामनाएं
ShRuti RoHta
सौरभ अग्निहोत्री से नजर हटे तो किसी के बारे में कुछ लिखा जाए .. जानेमन
Oदिन रविवार गयेटी सभागार में नाटक जान-ए- मन का मंचन सबसे पहले तो लड़का (कपिल देव शर्मा) जो की इस नाटक का निर्देशक है उसके गट्स( साहस ) को सलाम । सब्जेक्ट इतना सेंसटिव की हल्की सी गैरजिम्मेदाराना हरकत और संजीदा नाटक का मटिया मेट ।
निर्देशक को यदि ऐसे सब्जेक्ट में जिम्मेदार अभिनेता मिल जाये तो 90 प्रतिशत काम पूरा । ऐसे में सही कास्ट ढूंढ कर कपिल ने पहला काम तो कर दिया था अब बारी थी सौरभ सरीखे बड़े नाम को ये साबित करनें की कि “हमनें फिल्में करनी शुरू की है थियटर नही भूले” पहले सीन से अंतिम सीन तक सौरभ ने ये साबित किया की क्यों उनके समय के कलाकार ये कहते नही थकते की यार सौरभ में बात है । नज़ों नायक करैक्टर ऐसा पकड़ा की नाटक की समाप्ति के बाद मंच पर जब उसे गले लगाया ऐसा लगा कि महाभारत की किन्नर (बृहन्नला) से गले मिल रहा हूँ। उफ्फ पूरे नाटक में नज़ों नायक से नजर हटी नही कभी लगता था ये मरहूम इरफान खान साहब हैं कभी नवाजुदीन सिद्दीकी शायद पर, अभिनय ऐसा की स्पीच लेस शब्द शायद इसके लिए ही बना हो । इर्द गिर्द सब अपने-अपने किरदार में थे बढ़िया अभिनय भी कर रहे थे पर सच तो यही है सौरभ ने जैसे सबकी एनर्जी को चूस लिया हो सब फीके .. पन्ना नायक (अधिराज) बराबर कोशिश कर रहा था बढ़िया जोरदार अभिनय किया , रेखा (नीरज पराशर) ने अपने किन्नर किरदार को पूरी तरह से जस्टिफाइड किया । बुलबुल( प्रेम कपूर) बहुत ही क्यूट परफॉर्मर है जितना भी किया बढ़िया किया । अशोक मेहता हमेशा की तरह चाहे छोटा सा किरदार ही करे पर अपना असर छोड़ जाता है वही किया भी। शालिक (रोहित ) ने एक दो जगह अपने अभिनय से पूरा समां बांधा । गुलाबो ( तनु भारद्वाज ) ने अपना ग्लैमर बरकरार रखा छोटा पर बढ़िया किरदार निभाया ।
कुछ आर्टिस्ट के नाम नही पता पर काम अच्छा कर रहे थे ।
अब बात करें एक आलोचक की तो एक बात बहुत ज्यादा खली .. बसंती का किरदार .. लड़की ने बहुत बढ़िया कोशिश की पर मेरा निजी मत है की वह किसी लड़के से करवाना चाहिए था । एक ऑडियंस के नाते एक लड़की को लकड़े के रूप में इमेजन करना थोड़ा ज्यादा दिमाग लगाने का काम है जो शायद कोई करे भी न । “मै अंदर से लड़का हूं मुझे लड़की या हिजड़ा बना दिया गया है” वो शायद कनेक्ट नही हो रहा था।
स्टेज बहुत अच्छा बनाया गया था म्यूजिक बढ़िया था थोड़ा एक सीन से दूसरे में शिफ्ट जल्दी होता तो जिस ट्रांस में अभिनेता दर्शकों को ले जा रहे थे वो ज्यादा अच्छे से मेंटेन रहता ।
ये कहनें में अतिशयोक्ति नही होगी एक बोल्ड सब्जेक्ट का बढ़िया ट्रीटमेंट किया गया। अगर थोड़ा इधर उधर हो जाता तो संजीदा विषय कॉमेडी बन जाता पर इसका श्रय यक़ीनन निर्देशक और अभिनेताओं को जाता है । सौरभ ने जिस बड्डपन से नाटक को बांधा है वो सच में काबिल-ऐ- तारीफ रहा ।
ऐसे नाटक बेंचमार्क सेट करते हैं और मेरे जैसे दर्शकों को सब एक्सक्यूज छोड़ गेयटी की तरफ दौड़ लगाने को मजबूर करते है ।
वेल डन #Janeman #जानेमन