एप्पल न्यूज, शिमला
कोटखाई गुड़िया बलात्कार और हत्याकांड हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा मामला है, जिसने न केवल राज्य बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
यह मामला 4 जुलाई 2017 को 16 वर्षीय छात्रा के लापता होने और कुछ दिनों बाद उसके शव के जंगल में निर्वस्त्र अवस्था में मिलने से शुरू हुआ। बलात्कार और हत्या की इस घटना ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए।
मामले की जांच के दौरान, पुलिस हिरासत में एक आरोपी की मौत ने इसे और जटिल बना दिया, जिससे व्यापक जनाक्रोश और सीबीआई जांच का मार्ग प्रशस्त हुआ।
घटना का विवरण
शिमला जिले के कोटखाई क्षेत्र में 16 वर्षीय छात्रा के लापता होने के कुछ दिन बाद उसका शव तांदी के जंगल में पाया गया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई।
इस घटना ने पूरे क्षेत्र में गुस्से का माहौल पैदा कर दिया। शुरुआती जांच के तहत, पुलिस ने सात लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें नेपाल का एक नागरिक सूरज भी शामिल था।

पुलिस हिरासत में मौत
गिरफ्तारी के कुछ दिनों बाद, सूरज की पुलिस हिरासत में मौत हो गई। प्रारंभ में पुलिस ने दावा किया कि सूरज की मौत अन्य आरोपियों के साथ झगड़े में हुई, लेकिन जल्द ही सवाल उठने लगे।
जनता के बढ़ते विरोध और पुलिस पर लगे आरोपों के कारण मामला सीबीआई को सौंपा गया। जांच में सामने आया कि सूरज की मौत पुलिस द्वारा दी गई प्रताड़ना के कारण हुई थी।
सीबीआई की जांच और अदालत का फैसला
सीबीआई ने गहन जांच के बाद नौ पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों पर हत्या (IPC की धारा 302), सबूत नष्ट करने (धारा 201), आपराधिक साजिश (धारा 120बी), और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
18 जनवरी 2025 को चंडीगढ़ की सीबीआई अदालत ने आईपीएस अधिकारी
जहूर हैदर जैदी
डीएसपी मनोज जोशी
एसएचओ रजिंदर सिंह
एएसआई दीप चंद शर्मा
हेड कांस्टेबल मोहन लाल
कांस्टेबल सूरत सिंह
रफी मोहम्मद
रंजीत स्टेटा को दोषी ठहराया।
इन पर पुलिस हिरासत में प्रताड़ना के कारण सूरज की हत्या और सबूतों के साथ छेड़छाड़ का आरोप साबित हुआ।
हालांकि, सबूतों के अभाव में शिमला के तत्कालीन एसपी डंडूब वांगियाल नेगी को बरी कर दिया गया। दोषियों को 27 जनवरी 2025 को सजा सुनाई जाएगी।
प्रभाव और महत्व
यह मामला न केवल एक निर्दोष किशोरी के साथ हुए अपराध की दुखद कहानी है, बल्कि यह पुलिस की कार्यप्रणाली और मानवाधिकारों की रक्षा की आवश्यकता को उजागर करता है।
पुलिस हिरासत में मौत के मामलों ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कैसे जवाबदेह बनाया जाए।
इस मामले में अदालत का फैसला पुलिस अधिकारियों और अन्य सरकारी एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। दोषी पुलिस अधिकारियों को सजा मिलने से जनता में न्यायपालिका के प्रति विश्वास मजबूत हुआ है।
यह फैसला एक मिसाल बन सकता है कि कानून और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वालों को किसी भी स्थिति में माफ नहीं किया जाएगा।
निष्कर्ष
कोटखाई गुड़िया हत्याकांड केवल एक किशोरी के साथ हुई बर्बरता की कहानी नहीं है, बल्कि यह न्याय और मानवाधिकारों के लिए लड़ाई का प्रतीक बन गया है।
इस मामले ने न केवल पीड़िता के लिए न्याय सुनिश्चित किया बल्कि यह भी दिखाया कि यदि पुलिस प्रशासन कानून का पालन नहीं करता, तो उन्हें भी जवाबदेह ठहराया जाएगा।
यह घटना समाज और व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है, जो कानून के शासन की शक्ति और इसकी निष्पक्षता को स्थापित करता है।