एप्पल न्यूज, शिमला
बहुचर्चित गुड़िया रेप और मर्डर केस और इससे जुड़े सूरज कस्टोडियल डेथ केस ने हिमाचल प्रदेश के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा है।
यह मामला न केवल पुलिस की लापरवाही और अत्याचार को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जनदबाव और निष्पक्ष जांच के माध्यम से न्याय कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।
18 जनवरी, 2025 को सीबीआई कोर्ट द्वारा आईजी जहूर एच. जैदी और अन्य पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराना इस लंबे और कठिन न्यायिक प्रक्रिया का परिणाम है।
यह घटना 4 जुलाई, 2017 को शुरू हुई, जब कोटखाई के हलाइला क्षेत्र में स्कूल गई एक छात्रा (जिसे गुड़िया के नाम से संदर्भित किया गया) लापता हो गई। दो दिन बाद, उसका अर्धनग्न शव दांदी जंगल में मिला।
पोस्टमार्टम से यह साबित हुआ कि उसके साथ बलात्कार और क्रूर हत्या हुई थी। इस अमानवीय घटना ने पूरे हिमाचल प्रदेश में आक्रोश फैला दिया और न्याय की मांग के लिए व्यापक प्रदर्शन शुरू हो गए।
जनदबाव के चलते सरकार ने आईजी जहूर जैदी के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया।
13 जुलाई, 2017 को जैदी और तत्कालीन डीजीपी सोमेश गोयल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पांच संदिग्धों की गिरफ्तारी का दावा किया, जिनमें सूरज (नेपाली मूल का मजदूर) और राजेंद्र उर्फ राजू भी शामिल थे।

हालांकि, जल्द ही इन गिरफ्तारियों पर सवाल उठने लगे, क्योंकि इनमें ठोस सबूतों की कमी और जबरन कबूलनामे के आरोप सामने आए।
18 जुलाई, 2017 की रात को, कोटखाई थाने में सूरज की हिरासत में मौत हो गई। पुलिस ने इसे सूरज और राजू के बीच झगड़े का परिणाम बताया। लेकिन संतरी कांस्टेबल दिनेश, जो घटना का प्रत्यक्षदर्शी था, ने बताया कि यह मौत पुलिस टॉर्चर के कारण हुई।
केस में मुख्य घटनाक्रम
सूरज की हिरासत में मौत के बाद जनआक्रोश और तेज हो गया। कोटखाई और ठियोग में व्यापक प्रदर्शन हुए, जिससे सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।
सीबीआई ने गुड़िया रेप और मर्डर केस और सूरज कस्टोडियल डेथ केस के लिए दो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की।
आईजी जहूर जैदी की भूमिका
आईजी जैदी, जो एसआईटी का नेतृत्व कर रहे थे, की भूमिका इस मामले में संदिग्ध पाई गई। जांच के दौरान यह सामने आया कि उन्होंने सूरज की मौत से संबंधित एक महत्वपूर्ण वीडियो अपने फोन में रिकॉर्ड किया था।
यह वीडियो संतरी दिनेश के बयान का था, जो इस घटना का इकलौता चश्मदीद गवाह था। लेकिन जैदी ने इस रिकॉर्डिंग को आधिकारिक रिपोर्ट का हिस्सा नहीं बनाया और दिनेश को एक झूठे बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया।
जब दिनेश पर दबाव बढ़ा, तो उसने अपने परिवार के माध्यम से भाजपा विधायक बलबीर वर्मा से संपर्क किया। वर्मा ने दिनेश को सीबीआई से संपर्क करने की सलाह दी।
सीबीआई ने दिनेश के फोन में एक कॉल रिकॉर्डिंग ऐप एक्टिवेट किया, जिसमें जैदी द्वारा उसे चुप रहने और “मामला संभालने” की हिदायत देते हुए रिकॉर्डिंग सामने आई। यही रिकॉर्डिंग सीबीआई की जांच में जैदी के खिलाफ सबसे बड़ा सबूत बनी।
सबूतों के साथ छेड़छाड़
जांच में यह भी सामने आया कि तत्कालीन डीएसपी मनोज जोशी ने सूरज की मौत के बाद कोटखाई थाने में सबूतों को नष्ट करने और छेड़छाड़ करने की कोशिश की। यहां तक कि मजिस्ट्रेट के दौरे से पहले थाने की पूरी “सेटिंग” बदल दी गई।
पहले किए गए पोस्टमार्टम और सीबीआई द्वारा दोबारा कराए गए पोस्टमार्टम के बीच कई असंगतियां पाई गईं। नई पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सूरज के शरीर पर चोटों का जिक्र था, जो पहले की रिपोर्ट में नहीं था।
सीबीआई की गिरफ्तारी
29 अगस्त, 2017 को सीबीआई ने आईजी जहूर जैदी, डीएसपी मनोज जोशी और अन्य छह पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया। बाद में, शिमला के तत्कालीन एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी को भी मामले में सबूतों को दबाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
गुड़िया रेप और मर्डर केस की अलग जांच में सीबीआई ने डीएनए साक्ष्यों के आधार पर अनिल कुमार उर्फ नीलू चरानी को दोषी पाया। 2021 में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
न्यायिक प्रक्रिया और फैसले
18 जनवरी, 2025 को सीबीआई कोर्ट ने आईजी जैदी, डीएसपी मनोज जोशी और छह अन्य पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया। हालांकि, पूर्व एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी को पर्याप्त सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। इन दोषियों को 27 जनवरी, 2025 को सजा सुनाई जाएगी।
केस के सबक
यह मामला हिमाचल प्रदेश के कानून व्यवस्था और न्यायिक प्रणाली के लिए कई महत्वपूर्ण सबक लेकर आया:
- पुलिस सुधार की आवश्यकता: यह घटना पुलिस तंत्र में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुधारों की मांग करती है।
- निष्पक्ष जांच का महत्व: स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच से ही सत्य को उजागर किया जा सकता है।
- जनता की भूमिका: कोटखाई और ठियोग के आंदोलनों ने दिखाया कि जनता की एकजुटता अन्याय के खिलाफ लड़ाई में कितनी प्रभावी हो सकती है।
निष्कर्ष
गुड़िया रेप और मर्डर केस और सूरज कस्टोडियल डेथ केस ने हिमाचल प्रदेश में न्याय के लिए एक मिसाल कायम की है। आईजी जैदी और अन्य दोषियों की सजा यह साबित करती है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है।
इस मामले ने न केवल दोषियों को दंडित किया बल्कि सिस्टम की खामियों को उजागर करते हुए सुधार की दिशा में एक कदम बढ़ाया। उम्मीद है कि यह फैसला भविष्य में पुलिस अत्याचार और भ्रष्टाचार को रोकने में सहायक सिद्ध होगा।