एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल प्रदेश में 5 और 6 मार्च 2025 को वकीलों ने न्यायिक कार्यों का बहिष्कार किया है। यह निर्णय हिमाचल प्रदेश संयुक्त समन्वय संघर्ष समिति द्वारा सर्वसम्मति से लिया गया।
इस हड़ताल का कारण अधिवक्ता अधिनियम 1961 में प्रस्तावित संशोधन है, जिसे वकीलों ने अपने अधिकारों के खिलाफ बताया है।
हड़ताल का कारण: अधिवक्ता अधिनियम में संशोधन का विरोध
1. प्रस्तावित संशोधन क्यों विवादित है?
- केंद्र सरकार अधिवक्ता अधिनियम 1961 में कुछ संशोधन करने जा रही है, जिससे वकीलों का कहना है कि उनकी स्वतंत्रता और कार्यक्षेत्र प्रभावित होगा।
- वकीलों के अनुसार, सरकार उन्हें कोई विशेष सहायता नहीं देती, फिर भी अब उनके अधिकारों को सीमित किया जा रहा है।
- सबसे बड़ा विवाद:
- संशोधन के बाद विदेशी वकील भारत में कानूनी प्रैक्टिस कर सकते हैं।
- इससे भारतीय अधिवक्ताओं को रोजगार और पेशेवर अवसरों में सीधा नुकसान होगा।
- इसके अलावा, कुछ अन्य नियमों में भी बदलाव किए जा रहे हैं, जिनसे वकीलों को लगता है कि उनकी स्वतंत्रता बाधित होगी और उनका पेशा नियंत्रित किया जाएगा।

प्रदेशभर में हड़ताल का असर
2. न्यायालयों का कार्य पूरी तरह ठप
इस हड़ताल के कारण हिमाचल प्रदेश में सभी अदालतों में न्यायिक कार्य ठप रहा।
- हिमाचल हाईकोर्ट और जिला अदालतें बंद रहीं।
- शिमला, ठियोग, मंडी, कांगड़ा, नूरपूर, सोलन, बिलासपुर, हमीरपुर सहित कई जिलों में वकीलों ने अदालतों में काम नहीं किया।
- अदालतों में केवल आवश्यक और आपातकालीन मामलों की ही सुनवाई हुई।
अधिवक्ताओं की प्रमुख मांगें
3. वकीलों की प्रमुख आपत्तियां और मांगें
- अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन रद्द किया जाए।
- विदेशी वकीलों को भारतीय अदालतों में प्रैक्टिस करने की अनुमति न दी जाए।
- वकीलों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा की जाए।
- सरकार वकीलों के लिए कोई आर्थिक या सामाजिक सुरक्षा नीति बनाए।
आगे की रणनीति
4. संघर्ष समिति की बैठक और आगे की योजना
- 6 मार्च 2025 को अधिवक्ताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक होगी।
- इस बैठक में यह तय किया जाएगा कि क्या हड़ताल को आगे भी जारी रखा जाएगा या सरकार से बातचीत का कोई रास्ता निकाला जाएगा।
- अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानीं, तो संभव है कि वकील अनिश्चितकालीन हड़ताल का भी ऐलान कर सकते हैं।
इस हड़ताल से हिमाचल प्रदेश की न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हुई है, जिससे आम जनता को भी परेशानी हो रही है। वकीलों का कहना है कि अगर सरकार उनकी मांगें नहीं मानती तो वे देशव्यापी आंदोलन करने पर भी विचार कर सकते हैं।
अब सबकी निगाहें 6 मार्च की बैठक पर टिकी हैं, जहां आगे की रणनीति तय होगी।