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एक गुमनाम हीरो \”डोरा\” का यूं चला जाना छोड़ता है कई सवाल…!

शर्मा जी, एप्पल न्यूज़, शिमला
वो तब चंद महीने की नन्ही सी जान थी। अपनी मां के साथ खेलते मस्ती में एक परिवार के बीच आनंद से बड़ी हो रही थी कि तभी एक दिन उसे परिवार से जुदा होना पड़ा। ट्रेनिंग के लिए पंचकूला भेजा गया। लंबे प्रशिक्षण के बाद पुलिस में भर्ती किया गया। जहां भी जरूरत होती तुरंत अपने काम मे जुट जाती। पुलिस प्रशासन की वाहवाही होती और डोरा चुपचाप एक अनुशासित सिपाही की तरह ही कार्य करती रहती। कई मैडल, पुरस्कर और प्रशस्ति पत्र दिलवाए लेकिन एक दिन अचानक थोड़ी सी तबियत क्या बिगड़ी उसे रिटायर कर दिया गया। अभी 4 माह ही बीते थे कि एक दिन उसकी पीड़ादायी मौत की खबर आई। ऐसी मौत कि हर किसी को दर्द दे गई और छोड़ गई अपने पीछे कई बड़े सवाल।

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टीम के साथ काले व सफेद रंग की डोरा


हम बात कर रहे हैं \”डोरा\” की जो हिमाचल प्रदेश पुलिस डॉग स्क्वैड में पहली कॉकर स्पेनियल नस्ल की डॉग शामिल की गई थी। जिसकी गत दिनों महज 6 वर्ष की आयु में दर्दनाक मौत हो गई।
एनिमल राइट्स फाउंडेशन की संस्थापक तरुणा मिश्रा ने साल 2014 में कॉकर स्पेनियल नस्ल की डोरा सहित टायरा, क्रिस्टल और जुली को एक साथ पुलिस डॉग स्क्वायड में शामिल करने के लिए गिफ्ट किया था। इनमें से डोरा को नशीले पदार्थों को खोजने में ट्रेंड किया गया जबकि अन्य 3 को एक्सप्लोसिव खोजने में। करीब 7 महीने तक पंचकूला स्थित ITBP ट्रेनिंग केंद्र में इन सभी का प्रशिक्षण हुआ और फिर चारों को प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में तैनात किया गया।

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डोरा डॉग शो में प्रदर्शन करते हुए

करीब साढ़े पांच वर्षों तक लगातार बिना वेतन और अवकाश के रात दिन जब भी जरूरत पड़ी डोरा ने बिना थके बिना हारे सेवाएं दी। इस दौरान कई मैडल और हिमाचल पुलिस को दिलाए। अनगिनत मामलों को सुलझाया और नशे के कई तस्करों को पकड़वाया। लेकिन विडम्बना ये रही कि इस वर्ष जनवरी माह में डोरा को मोतिया बिंद हो गया और उसकी दृष्टि धीरे धीरे कम होती गई। इसी बीच डोरा के मास्टर की भी मौत हो गई।

पुलिस विभाग को अब डोरा की सेवाओं की जरूरत महसूस नहीं हुई और बेकार समझकर उसे जबरन रिटायरमेंट दे दी गई। ठीक वैसे ही जैसे दूध न देने वाली गाय को आवारा और बेसहारा छोड़ दिया जाता है।
डोरा की ऐसी हालत देख तरुणा मिश्रा ने उसे वापस देने की गुहार लगाई और उसकी देखभाल करने लगी। इसी बीच मई माह में डोरा की तबियत बिगड़ने लगी। उसका उपचार शिमला में ही पशुपालन विभाग के अस्पताल में किया जाने लगा लेकिन उचित उपचार व्यवस्था न होने के चलते बीते दिनों तड़प तड़प कर डोरा ने प्राण त्याग दिए।

उन्होंने कहा कि अस्पताल के पशु चिकित्सकों का रवैया ठीक नहीं था और डोरा को सही उपचार नहीं दिया गया। चिकित्सक उन्हें ठीक करने के बजाय बार बार उसे जाने देने की बात करते रहे, जो सरासर लापरवाही दर्शाता है। उन्होंने कहा कि शिमला पशु अस्पताल में न तो डॉग्स के उपचार के लिए ICU की व्यवस्था है न ही सर्जन है। शाम 4 बजे के बाद कोई भी उपलब्ध नहीं होता। रेडियोलॉजिस्ट भी उपलब्ध नहीं और ब्लड टेस्ट के लिए भी भटकना पड़ता है। यहां पर विशेषज्ञ पशु चिकित्सक भी नहीं है। पशुओं को भी इंसानों की भांति ही बीमारियां होती हैं। ऐसे में पशु अस्पताल शिमला में भी पालमपुर अस्पताल की तर्ज पर सुविधाएं उपलब्ध करवाई जानी चाहिए ताकि फिर कभी डोरा की तरह तड़प कर किसी और का जीवन तबाह न हो।
आंखों में आंसू और दिल में तड़प लिए तरुणा मिश्रा ने अपने परिवार के लोगों के साथ डोरा को अंतिम विदाई दी।
तरुणा मिश्रा का कहना है कि जब एक पुलिस जवान की तरह ही डोरा ने काम किया। एक अनुशासित सिपाही की तरह हर आदेश माना, जोखिम उठाकर बिना वेतन के काम किया। विदेशों में तो प्रमोशन और वेतन भी दिया जाता है पेंशन भी दी जाती है और अंतिम विदाई भी सम्मान के साथ होती है तो फिर डोरा को वो सम्मान क्यों नही दिया गया जिसकी वो हकदार थी। ऐसे कई अनसुलझे सवाल डोरा अपने पीछे छोड़ गई है। क्योंकि अभी भी उसके सहयोगी डॉग स्क्वायड में सेवाएं दे रहे हैं तो क्या भविष्य में इन्हें भी गलियों के आवारा कुत्तों की श्रेणी में ही रखा जाएगा या फिर एक सैनिक की भांति उन्हें सम्मानित किया जाएगा, इस पर पुलिस विभाग और सरकार को विचार करना होगा अन्यथा इस तरह के कृत्य को पशु उत्पीड़न माना जाए और बेजुबान जानवरों पर अत्याचार माना जाना चाहिए। किसी को भी जानवरों के साथ इस तरह के खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हिमाचल पुलिस के आईजी हिमांशु मिश्रा ने डोरा की मौत की पुष्टि करते हुए कहा कि डोरा हिमाचल पुलिस में कॉकर स्पेनियल नस्ल की पहली डॉग थी। डोरा बेहद चुस्त, चालाक और अपने कार्य मे निपुण थी। उसकी बदौलत पुलिस टीम को कई मामलों को सुलझाने में मदद मिली और कई मैडल पुरस्कार भी जीते। उन्हें डोरा की मौत पर बेहद अफसोस है कि महज 6 साल सेवाएं देने के बाद 7 साल की उम्र में उसकी पीड़ादायी मौत हो गई। मिश्रा ने कहा कि कॉकर स्पेनियल नस्ल के डॉग विस्फोटक सामग्री और नशीले पदार्थों को खोजने में दुनियां भर में सबसे तेज माने जाते हैं। ये स्निफर डॉग्स आकर में छोटे होते हैं और छोटी छोटी जगहों में जाने के साथ ही हाई एनर्जी लेवल पर जाने की क्षमता रखते हैं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में डॉग्स को मृत्यु पर सम्मान देने के नियम नहीं हैं। हालांकि कई देशों में इस तरह के नियम हैं और उन्हें एक जवान की तर्ज पर ही वेतन, प्रमोशन सेवानिवृति के बाद पेंशन जैसी सुविधाएं दी जाती हैं। उन्होंने कहा कि डोरा के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। हिमाचल पुलिस उसे हमेशा याद रखेगी।

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IG पुलिस हिमांशु मिश्रा द्वारा \”डोरा\” को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित कविता
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कोविड महामारी के बाद की दुनियां में आई हरित ऊर्जा में तेजी

Fri May 29 , 2020
एप्पल न्यूज़ ब्यूरो यह 1962 का साल था, जब बेल लैब्स ने पहला दूरसंचार उपग्रह लॉन्च किया था। टेलस्टार के नाम से कई ‘सबसे पहले हासिल की गई उपलब्‍धियां’ जुड़ी हुई थीं, और इन उपलब्‍धियों में ही, टेलस्टार की सतह का सौर कोशिकाओं से ढका हुआ होना शामिल था, जो 14 वाट विद्युत शक्ति का उत्पादन करती थीं। इसका श्रेय जेम्स एम. अर्ली को गया। श्री अर्ली वास्तव में ‘अर्ली’ यानी बहुत पहले बता चुके थे! लगभग छह दशक बाद, हाल ही में एमआईटी के एक शोध पत्र में बताया गया है कि सोलर मॉड्यूल की कीमत पिछले 40 वर्षों में 99% कम हुई है। और जो मैं देख रहा हूं, उसके अनुसार मुझे अगले 40 वर्षों में कीमतों में 99% की और कमी आने की उम्मीद है, जो संभवत: बिजली की सीमांत लागत को शून्य कर देगा। इस तरह की कमी का मतलब है दो व्यावसायिक मॉडल के सह-अस्तित्व का होना – एक जीवाश्म ईंधन पर आधारित मॉडल और दूसरा नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित मॉडल। ये दोनों मॉडल निकट भविष्य में एक-दूसरे के पूरक बनेंगे, लेकिन लंबी अवधि में देखें तो नवीकरणीय ऊर्जा का ही भविष्‍य बेहतर दिखता है। कोविड–19 ने हमें सच्‍चाई का अहसास कराया आज जब कोविड-19 हमारे जीवन की मूलभूत धारणाओं को चुनौती दे रही है, तो ऊर्जा क्षेत्र में हरित क्रांति की जरूरत को अधिक महत्व मिलता दिख रहा है। हालांकि तत्कालिक आर्थिक प्रभाव हमारी गति को धीमा कर सकता है,  लेकिन हमारे सामने कम कार्बन वाले भविष्य में तेजी से रूपांतरित होने के लिए ठहर कर विचार करते हुए डिजाइन करने का अवसर है। इसके अलावा, यूरोप में कई सिस्टम ऑपरेटर, जो गिरती मांग के साथ इसका सामना कर रहे हैं, एनर्जी मिक्‍स में जो अक्सर 70% तक रहता है, नवीकरणीय ऊर्जा के उल्‍लेखनीय उच्च स्तर पर ग्रिड का प्रबंधन करना सीख रहे हैं। यह सीखना अनमोल है क्योंकि इस तरह का परिदृश्य कुछ महीने पहले ही संभव नहीं था। हालांकि उत्‍पादन संतुलन मांग बढ़ने पर वापस लौट सकता है, लेकिन इस संकट ने ऑपरेटरों को नवीकरणीय उर्जा के मामले में उच्च स्तर के साथ ग्रिड को स्थिर रखने के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान की है। कोविड-19 महामारी के बाद के दौर में, यह नया मानदंड हो सकता है। जब अर्थशास्त्र और उद्देश्य मिलकर काम करते हैं जब अर्थशास्त्र और उद्देश्य मिलते हैं, तो नतीजे विघटनकारी हो सकते हैं। कहावत है कि नवीकरणीय ऊर्जा पर्यावरण के लिए तो अच्छी है, लेकिन व्यापार के लिए काफी हद तक बीते दिनों की बात है। आज, इसमें हम तेजी की प्रवृत्ति देख रहे हैं, जहां जलवायु परिवर्तन पर सरकारों की नीतियां, जन जागरूकता और कार्रवाई के लिए जन समर्थन, और बड़ी अर्थव्यवस्थाएं नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से बड़े पैमाने पर बाजार में मांग और रोजगार सृजन कर को बनाये रख रही हैं। इसके साथ ही, ऊर्जा आयात पर निर्भर देशों के लिए ऊर्जा सुरक्षा को संबोधित करती है। संभावित गेम चेंजर के रूप में हाइड्रोजन सिर्फ सौर ही नहीं, मुझे यह भी उम्मीद है कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इनोवेशन के कारण और ऑन-शोर एवं ऑफ–शोर नई पवन परियोजनाओं के लागू होने के कारण, पवन ऊर्जा की इकाई लागत में कमी आयेगी। सौर और पवन ऊर्जा में निवेशकों के बढ़ते भरोसे के साथ, विभिन्न भंडारण प्रौद्योगिकियों के साथ उनका एकीकरण ऊर्जा में परिवर्तन की गति को और तेज करेगा। हाइड्रोजन आने वाली प्रमुख भंडारण प्रौद्योगिकी प्रतीत होती है। मैं अंतत: हाइड्रोजन को लेकर व्यक्तिगत रूप से आशान्वित हूं। हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए पानी के अणु का अपघटन हमेशा एक ईंधन के रूप में सपना रहा है जो ऊर्जा भंडारण का दोहरा लाभ देता है। औद्योगिक दुनिया हाइड्रोजन से परिचित है, और 90% से अधिक भाप सुधार से पैदा होता है, जो एक अंतर्निहित कार्बन-गहन प्रक्रिया होती है। हालांकि, अक्षय ऊर्जा के भविष्य की सीमांत लागत में तेजी से कमी आने की संभावना के कारण, विभाजित पानी द्वारा उत्पादित ग्रीन हाइड्रोजन गेम-चेंजर हो सकता है। यह हाइड्रोजन वितरण के लिए मौजूदा गैस पाइपलाइन नेटवर्क का अधिक उपयोग कर सकता है, प्राकृतिक गैस के साथ मिश्रित हो सकता है और रासायनिक उद्योग के लिए एक ग्रीन फीडस्टॉक हो सकता है। इसके अलावा, एक किलोग्राम हाइड्रोजन की ऊर्जा घनत्व गैसोलीन की तुलना में लगभग तीन गुना है, और आपके पास एक गति है जिसे रोकना असंभव होगा क्योंकि हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन की कीमतें नीचे आती हैं। हो सकता है कि हाइड्रोजन काउंसिल भविष्यवाणी कर दे कि ग्रीन हाइड्रोजन अगले दशक में 70 अरब डॉलर के निवेश को आकर्षित कर सकता है। इस पैमाने पर होने वाला व्यय कई उद्योगों को बाधित कर सकता है और साथ ही उन्‍हें बना भी सकता है, जिसके के बारे में कुछ कहना मुश्‍किल है। नौकरियों के बारे में आज की राजनीति और अर्थशास्त्र आवश्यक रूप से रोजगार सृजन के संबंधित है, यहां तक कि कोविड-19 से रिकवरी के दौर में भी यही सच है। इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) का अनुमान है कि स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार, जो फिलहाल 2020 में 12 मिलियन है, 2050 तक चौगुना हो सकता है, जबकि ऊर्जा दक्षता और सिस्टम फ्लेक्‍सिबिलिटी में नौकरियां 40 मिलियन तक और बढ़ सकती हैं। हाल ही में आईआरईएनए की रिपोर्ट में बताया गया है कि यह परिवर्तन 2050 तक सौर, पवन, बैटरी भंडारण, ग्रीन हाइड्रोजन, कार्बन प्रबंधन और ऊर्जा दक्षता में 19 ट्रिलियन डॉलर के निवेश के अवसर पैदा कर सकता है, जो इसे सबसे बड़े वैश्विक उद्योगों में से एक बनाता है। भारत के लिए लाभ का अच्‍छा अवसर भारत के लिए लाभ का अच्‍छा अवसर है। हमारा देश स्वाभाविक रूप से बहुत उच्च स्तर के सौर संसाधनों से संपन्न है, और लंबा तटीय क्षेत्र पवन ऊर्जा के लिए एक आकर्षक संभावना है। स्थापित क्षमता के मामले में, भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग पहले से ही दुनिया भर में चौथे स्थान पर है, और अनुकूल भूगोल, उपकरणों की गिरती कीमतों, बढ़ती मांग और विश्वस्तरीय ट्रांसमिशन नेटवर्क का संयोजन का मतलब एक ऐसे उद्योग का होना है जिसके अगले दो दशकों तक बढ़ते रहने की उम्मीद है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस क्षेत्र में पिछले एक दशक में 10 बिलियन डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ है। तथ्य यह है कि नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने पहले ही नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य पेरिस में स्थापित 175 GW के 2015 के प्रारंभिक लक्ष्य से 2022 तक 225 GW का लक्ष्‍य रखा है और उसके बाद 2030 तक लक्ष्य को बढ़ाकर 500 GW कर दिया है, जो भारत को वैश्विक ऊर्जा के क्षेत्र में प्रवेश करने में मदद करने के लिए सरकार की गंभीरता के साथ-साथ उसकी क्षमता का संकेत है। यद्यपि महामारी की तुलना में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव धीमा है, लेकिन मानवता के लिए इसका खतरा अधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए, एक स्वच्छ ऊर्जा भविष्य को अपनाने का मामला न केवल सरकारों द्वारा बल्कि उद्योग द्वारा भी लिया जाना चाहिए। भारत धीरे-धीरे और मजबूती से आगे बढ़ रहा है। कोविड-19 एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है, जहां समाज एक स्वच्छ भविष्य के लिए गति में तेजी लाते हुए आर्थिक पुनर्निर्माण के प्रयासों का लाभ उठाये। लेखक–  गौतम अदाणी चेयरमैन, अदाणी ग्रुप 

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