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अफगानी समाज में सिख और हिन्दू

एप्पल न्यूज़, शिमला

सारी दुनिया में इस्लाम के विस्तार के साथ गैर-इस्लामिक समाज की मुश्किलें लगातार बढ़ती गईं। सह-अस्तित्व और अन्य धर्मों की नकारात्मक प्रतिक्रिया इस्लामिक समाज में अक्सर देखने मिलती है। चाहे पाकिस्तान में बलात हिन्दू और अन्य गैर-मुस्लिम लड़कियां उठा ली जाती हैं, उन्हें इस्लाम कबूल कराया जाता है। माता-पिता चीखते-चिल्लाते न्याय की दुहाई मांगते रह जाते हैं। अफगानिस्तान में भी हिन्दुओं और सिखों को सतत प्रताडि़त करने का सिलसिला जारी है। हाल ही में पाकिस्तान में सिख समुदाय के ग्रंथी की बेटी को मुसलमान जबरन उठा ले गए और उसे इस्लाम में शामिल कर लिया। इस कृत्य की भत्र्सना विश्व में, जहां भी सिख हैं, हिन्दू हैं, तीखे तौर पर की गई और पाकिस्तानी सरकार को तगड़ा विरोध दर्ज कराया गया। अभी हाल ही में निदान सिंह सचदेवा भारत सरकार के सहयोग से अफगानिस्तान से वापस लौट सके। उन्होंने बताया, कि कट्टरपंथियों ने उनका अपहरण किया और उनपर इस्लाम धर्म स्वीकार करने का दबाव बनाते रहे। भारत सरकार की पहल से उनकी मुक्ति हुई।

अफगानिस्तान में सतत जंग चलती रही। इसका खामियाजा वहां रह रहे सिख हिन्दू समुदाय को बड़े पैमाने पर उठाना पड़ा। जंग शुरू होने से पहले काबुल के अलावा कंधार, गजनी, नगर हार, खोस्त, पख्तिया जैसे प्रांतों में सिखों के कारोबार थे, जंग शुरू होने के बाद सैकड़ों सिख दूसरे देश जाने को मजबूर हो गए। तीस-चालीस साल पहले अफगानिस्तान में ढाई लाख सिख थे, जो सरकारी नौकरी, राजनीति और सेना में भी थे। सिख सदियों से अफगानी समाज का हिस्सा रहे हैं। वहां के व्यापारिक जगत में उनका मजबूत दखल रहा है। तीन साल पहले वहां की संसद ने ये तय किया, कि संसद में एक सीट सिखों के लिए रिजर्व रहेगी। वहां पहली बार एक सिख सांसद बना है। उनका नाम नरिंदर सिंह खालसा है।

अफगानिस्तान में हिन्दू और सिख पूरे देश में केवल एक ही सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि, अफगान सरकार ने सिखों पर हो रही प्रताडऩा को लेकर कुछ कड़े कदम उठाए हैं। जिन सिखों का पूरा खानदान यहां से चला गया है, उनकी जमीन और घरों पर कट्टरपंथी लोगों ने कब्जा कर लिया। पाकिस्तान में हिनदू अल्पसंख्यक समुदाय का जबरन धर्म-परिवर्तन कराने का मुद््दा अक्सर सुर्खियों में भी रहता है। दिसंबर में भारत की संसद ने नागरिकता संशोधन पारित किया था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए गैर-मुसलमान, अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है। अफगानिस्तान के दूसरे लाखों नौजवानों की तरह अल्पसंख्यक समुदाय के युवा भी पिछले 40 सालों से चल रहे हिंसा के शिकार हैं। इन अल्पसंख्यकों की केवल यही समस्या नहीं है। 40 सालों में सिखों और हिन्दुओं की जमीन और दूसरी संपत्तियां हड़प ली गई हैं। अफगानिस्तान की अंदरुनी लड़ाई में हिन्दू और सिख समुदाय की कोई भागीदारी नहीं है। इसके बावजूद ये बड़ी संख्या में मारे गए हैं।

अफगनिस्तान में अमेरिकी समर्थित सेना के खिलाफ तालीबान और अन्य चरमपंथी समूहों के संघर्ष की खबर आती रहती हैं और इसमें बड़ी संख्या में लोग मारे भी जाते हैं। हेलमंद और कंधार प्रांत के बड़े हिस्से पर तालीबान का नियंत्रण है। तालाीबानी अपनी कट्टर इस्लामिक कानूनों को थोपे जाने के लिए दुनियाभर में बदनाम हैं। तालीबान की फैलती हिंसा का सामना करने में अफगानी सुरक्षा बल कई मामलों में नाकामयाब रहे हैं।

आए दिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की खबरें आती रहती हैं। दिल झकझोर देने वाली इन घटनाओं पर धर्म-निरपेक्षता की दुहाई देने वाले जुबान पर ताला लगा हुआ है। अल्पसंख्यकों के लिए पाकिस्तान जहन्नुम साबित हो रहा है, जहां हिन्दू नाबालिक लड़कियों के अपहरणों की संख्या बढ़ी है, वहीं सिखों की आस्था से जुड़े जमीनों पर कब्जा करने के मामले भी बढ़ें हैं। सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानकदेव का जन्म स्थान ननकाना साहेब पर कट्टरपंथियों ने हमला किया, जिसको लेकर भारत सहित सारे विश्व ने भत्र्सना की।

पाकिस्तान हाईकोर्ट के एक जज ने चिन्ता जाहिर करते हुए कहा था, आखिर क्या कारण है कि 18 साल से 24 साल के बीच की अल्पसंख्यक लड़कियों का ही अपहरण होता है ? इसके बाद उस जज की हत्या ही कर दी गई। 

-अनुराधा त्रिवेदी
*वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल

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