बहुमूल्य दवाईयां, कपड़े, जैकेट सहित कई उत्पाद किए जा सकते हैं निर्मित
एप्पल न्यूज़, शिमला
हिमाचल प्रदेश में भांग की खेती को लीगल करने की मांग लंबे अरसे से होती रही है। विपक्ष में रहते कुछ कांग्रेस विधायक समय समय पर इसकी मांग उठाते रहें हैं और हाई कोर्ट में भी पीआईएल के माध्यम इसको लीगल करने को लेकर मामला उठाया गया है।
कांग्रेस पार्टी अब सत्ता में आ चुकी है और भांग की खेती को लीगल करने के लिए पॉलिसी बनाने जा रही है।
कुल्लु से विधायक और सीपीएस सुन्दर सिंह ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब की तर्ज पर भांग की खेती के लिए पॉलिसी बनाएं जाने का दावा कर रहे हैं।
सीपीएस सुन्दर सिंह ठाकुर ने कहा है कि भांग की खेती को औधौगिक उद्देश्य से लीगल करने के लिए पॉलिसी बनाने के हाई कोर्ट दो बार पूर्व सरकार को अंतरिम आदेश भी दे चुकी है लेकिन पूर्व सरकार ने इसमें कोइ काम नहीं किया।
भांग का प्रयोग कई तरह की दवाइयों, कपड़ों, जैकेट, रेशा इत्यादि को बनाने के लिए किया जा सकता है। कैंसर, ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी की दवाईयां भाग से बनती है।
भांग के पौधे से नशे का एलिमेंट निकाल कर इसे औषधीय, हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट के उत्पादों को बनाया जा सकता है। भांग की खेती से लोगों की आय के साधन भी बनेंगे वहीं औषधीय प्रयोग में भी लाया जा सकेगा।
इजराइल ने भांग की औषधीय गुणों को साबित करते हुए कोविड की दवाईयां भी भांग से बनाई है। इसलिए हिमाचल सरकार इसके लिए पॉलिसी लेकर आएगी और अन्य राज्यों की तर्ज पर हिमाचल में भी भांग की खेती को लीगल किया जाएगा।
प्रदेश में बढ़ रहे कर्ज के बोझ को उतारने के लिए भांग की खेती से सालाना 18,000 करोड़ रुपये आ सकते हैं। हिमाचल प्रदेश में अनुमानित 2,400 एकड़ में भांग की संगठित अवैध खेती हो रही है।
राज्य से हर साल 960 करोड़ रुपये मूल्य की चरस की तस्करी की जाती है और इसे पश्चिमी यूरोपीय और स्कैंडिनेवियाई देशों में भेजा जाता है, जबकि इज़राइल में मलाणा क्रीम की मांग है।
परंपरागत रूप से, गांजा पुराने हिमाचल के कुछ हिस्सों में उगाया जाता था, जिसमें शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा और सिरमौर शामिल थे। इसके रेशे से टोकरियाँ, रस्सी और चप्पलें बनाई जाती थीं और इसके बीजों का उपयोग पारंपरिक खाना पकाने में किया जाता था।