एप्पल न्यूज़, शिमला
अवार्डी शिक्षक मंच हिमाचल प्रदेश ने सरकार से माँग की है कि राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार के बदले पुरस्कृत शिक्षकों को प्रदान किए जाने वाले वित्तीय लाभ संबंधी अधिसूचना तुरंत वापस ली जाए। यदि ऐसा नहीं होता तो यह वर्तमान सरकार द्वारा किया जाने वाला सबसे बड़ा निंदनीय कार्य होगा।
सरकार शायद ही इस बात से वाक़िफ़ हो कि ये पुरस्कार अत्यंत विशिष्ठ शिक्षकों को प्रदान किए जाते हैं जिन्होंने अपने सेवाकाल में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों को अंजाम दिया है।
यह हमारी समझ से परे की बात है कि सरकार को आख़िर इस नीति को बदलने कि आवश्यकता क्यों पड़ी। चलो हम मान लेते हैं की सरकार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, तो क्या आने वाले पाँच वर्षों में 20 शिक्षकों को सेवा विस्तार न देने से यह स्थिति सुधर जाएगी ?
हर पुरस्कृत शिक्षक एक दिन का वेतन मुख्यमन्त्री राहत कोष में दान देने के बाद एक मास का सारा वेतन देने के लिए भी तैयार है क्योंकि आपदाओं से जूझना केवल सरकार का ही काम नहीं बल्कि समाज को दिशा प्रदान करने वाले बुद्धिजीवी शिक्षकों का भी दायित्व है।
अत: सरकार को ऐसी छोटी-छोटी मुश्किलों से घबरा कर ऐसे अपमानजनक फ़ैसले लेने की आवश्यकता नहीं है।यह अत्यंत दु:खद है कि सरकार राष्ट्रीय एवम् राज्य स्तर पर सर्वोच्च शिक्षक पुरस्कार हासिल करने वाले शिक्षकों को अपमानित कर रही है।
सरकार को तो ये भी मालूम नहीं कि राज्य और राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार में कोई अंतर होता है ! जहां राज्य शिक्षक पुरस्कार पाने वाला शिक्षक 70 हज़ार शिक्षकों में से चुनकर आता है वहीं राष्ट्रीय स्तर पर एक शिक्षक 97 लाख शिक्षकों में से चुना जाता है।
अचरज की बात है कि सरकार इस प्रक्रिया को दोषी ठहरा रही है जो मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संचालित है ! यहाँ मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ की बेशक पिछली सरकार ने 3 विशेष राज्य शिक्षक पुरस्कार प्रदान करने की नई परिपाटी चलाई थी जिसकी चयन प्रक्रिया में सुधार कि गुंजाइश है।
अन्यथा वर्तमान में राज्य पुरस्कार के लिए अपनाई जा रही चयन प्रक्रिया एकदम पारदर्शी और चयनबद्ध तरीक़े से तैयार की गई है। और यही करण है की प्रतिवर्ष 24 में से 12 या 15 शिक्षक ही इस चयन प्रणाली को उत्तीर्ण कर पाते हैं ।
मेरा माननीय मुख्यमंत्री व शिक्षामन्त्री जी से निवेदन है कि दो दिन पहले जारी की गई अवार्डी शिक्षकों को मिलने वाले वित्तीय लाभ संबंधी अधिसूचना रद्द कर 2015 की अधिसूचना को लगातार किया जाए।
पुरस्कृत शिक्षकों का ऐसा घोर अपमान वर्तमान सरकार को शोभा नहीं देता क्योंकि मरहूम राजा वीरभद्र सिंह जी ने उत्कृष्ट अध्यापकों की महता को समझते हुए वर्ष 2015 में शिक्षकों को यह सौग़ात दी थी जिसे पूर्व सरकार ने शिक्षकों के मान-सम्मान में लगातार बनाए रखा।
कोरोना काल जैसी विकट स्थिति में भी सरकार ने किसी पुरस्कृत शिक्षक का सेवाविस्तार नहीं छीना !
प्रदेश के तमाम् पुरस्कृत शिक्षकों की ओर से मैं सरकार को आगाह कर देना चाहता हूँ, यदि सरकार अपना यह फ़ैसला नहीं बदलना चाहती तो इस शिक्षक सम्मान प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाए ताकि महामहिम राष्ट्रपति व राज्यपाल द्वारा प्रदत शिक्षक पुरस्कार को दिन-प्रतिदिन अपमानित ना होना पड़े।
मेरा सरकार से यह भी निवेदन है की नई नीति के तहत तय की गई सम्मान राशि को सरकारी कोष में ही रहने दिया जाए क्योंकि पुरस्कृत शिक्षक मानदेय के लिए नहीं बल्कि लाखों शिक्षकों में अव्वल आने पर मिलने वाले सम्मान को बनाए रखने के लिए जीता है जिसकी क़ीमत वर्तमान सरकार ने 20, 25 और 30 हज़ार लगाई है।
यदि सरकार आर्थिक स्थिति ख़राब होना सेवाविस्तार ना देने के लिए कारण बताती है तो सभी शिक्षक अपने राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार सरकार को सौंपकर उसके बदले में मिलने वाली पुरस्कार राशि को अनुदान में देकर स्वयं को अनुगृहीत महसूस करेंगे।
अध्यक्ष
पुरस्कृत शिक्षक मंच
हिमाचल प्रदेश
7018803325