एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल में आजकल जम कर चुनाव प्रचार हो रहा है | मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह ‘ सरकार और संगठन में सब कुछ ठीक है’ का आभास देते नजर आ रहे है।
यह लेख लिखे जाने के वक्त काँगड़ा और हमीरपुर लोकसभा सीट पर काफी माथापच्ची के बाद क्रमशः आनंद शर्मा और सतपाल रायजादा को लोकसभा का प्रत्याशी घोषित कर ही दिया है।
खैर, यह लेट लतीफी का कांग्रेसी कल्चर है जो ख़बरों में बना रहता है | सरकार को बने 15 महीने हो गए है | जमीनी हालात यह है कि जनता यह सब सोचने को मजबूर है कि विधान सभा के लिए क्या उप चुनाव राजनीतिक सूझबूझ से टाले नहीं जा सकते थे ?
सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को उपचुनाव के मुद्दे पर जनता को उत्तर देना होगा | सरकार का मुखिया होने के नाते सुखविंदर सिंह सुक्खू और उनकी टीम को अपने 15 महीने के शासन के रिकॉर्ड पर जनता के बीच उतरना होगा और अपनी सरकार कोबचाने व संभाले रखने के लिए यह उपचुनाव जीतना अत्यंत आवश्यक है।
भाजपा के विषय में तो यह प्रसिद्द है कि वह चुनावी मूड में रहने वाली पार्टी है और प्रधानमन्त्री मोदी को हर समय चुनावों में सबसे ज्यादा व्यस्त रहने वाले प्रधानमंत्री का तमगा प्राप्त है | प्रधानमंत्री के तौर पर वह कैसे हैं यह लेख का मंतव्य नहीं | उस पर फिर कभी ..
मुख्यमंत्री सुक्खू के सामने सबसे बड़ी चुनौती और प्राथमिकता विधान सभा उप चुनावों की छहों सीटों पर विजयी हासिल करना होगा | लोकसभा के चुनावों में चारों सीटें जीता कर हाई कमान की झोली में डाल कर वह उनके विशवास को पुख्ता कर सकेंगे |
उन के लिए यह एक अवसर आया है | इस जीत से वह हाई कमान के सामने और प्रदेश कांग्रेस संगठन में विरोधी होली लॉज कैंप के समक्ष नेतृत्व क्षमता साबित करेंगे | जनता का विश्वास और दिल जीतने में सफल हो सकते है |
दूसरे ,यह जीत इस बात की भी द्योतक होगी कि हाई कमान का सुक्खु को मुख्य मंत्री बनाना और प्रतिभा सिंह की सी.एम .पद की दावेदारी को नजर अंदाज करने का उनका निर्णय सही था |
ऐसे वो कौन से कारण रहे जिनके चलते भली चंगी सरकार पर संकट के बादल मंडराए और उपचुनावों की नौबत झेलनी पड गयी? याद करें तो एक राजनीतिक घटनाक्रम के चलते प्रदेश की एक मात्र राज्य सभा सीट के लिए चुनाव में भजपा के हाथों मानों छींका ही फूट पड़ा |
अल्पमत की भाजपा बहुमत की कांग्रेस की जमीन तले कालीन खिसका कर राज्य सभा सीट का निवाला छीन ले गयी | परिणाम यह रहा कि प्रख्यात वकील और कांग्रेस के प्रत्याशी मनु सिंघवी हर गए और कांग्रेस के पूर्व मंत्री रहे और भजपा के प्रत्याशी हर्ष महाजन जीत गए |
इस प्रकरण से सरकार विशेष कर मुख्यमंत्री के विरुद्ध सुलगते विरोध और आक्रोश से न केवल जनता अवाक रह गयी बल्कि सरकार. सुक्खू और उनके चुनावी व् संसदीय प्रबंधन को भी इस बात की भनक तक न लगी की उनके छह विधायक और तीन निर्दलीय वोटिंग के अवसर पर अपनी ही पार्टी के विरुद्ध जायेंगे | इस प्रकरण ने प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कार्य शैली और सरकार चलाने की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए |
प्रदेश की जनता यह भली भांति जानती है कि सुक्खू को संगठन का आदमी कहा जाता है और संगठन के वह अच्छे जानकार है | जब तक वीरभद्र मुख्य मंत्री रहे उन्होंने उन्हें दो बार विधयक होने के बावजूद मंत्री या संसदीय सचिव या सरकार में किसी पद से नहीं नवाजा।
1983 में जब वीरभद्र मुख्यमंत्री बने तब सुक्खू कालेज सी आर के चुनाव लड़ रहे थे | कालेज विश्वविद्यालय की राजनीति करते करते विभिन्न पदों पर रहते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष पद तक जा पहुचे |
पंडित सुखराम ,विद्यास्टोक्स , आनंद शर्मा ,कुलदीप राठौर और शिमला के पूर्व विधयक हरभजन सिंह भज्जी आदि से सुक्खू की करीबियां जग जाहिर थी | यही बात वीरभद्र को नागवार थीं | अंत समय तक इन दोनों में 36 का आंकड़ा रहा | कहते है संस्कृति की सत्ता होती है और सत्ता की संस्कृति भी जग जाहिर है |
सत्ता की संस्कृति आपको चाटुकारों से घिरा हुआ, अपनों को पुरस्कार पद चैरमैन अध्यक्ष पद से नवाजती है | लेकिन सत्ता की श्रेष्ठता इस बात में है कि वह पार्टी के सक्रिय सदस्यों कार्य कर्ताओं शुभचिंतकों को सत्ता शासन में भागीदार बनाती है और सरकार कि नीतियों स्कीमों कार्यकर्मों को बनाने में सहयोग लेती है |
अब चूँकि बारी सुक्खू की आई तो सत्ता का संतुलन बनाने की जगह उन्होंने उन लोगो को पद नवाजे जो जनता का मत ले कर नहीं आये थे |और वीरभद्र गुट की अघोषित अनदेखी कर दी | काँगड़ा, मंडी , बिलासपुर आदि महत्वपूर्ण जिलों को मंत्री परिषद् में जगह नही मिली |
प्रदेश के कई वर्ग, जातियां,समूह शासन की हिस्सेदारी से वंचित कर दिए गए | काँगड़ा से सुधीर शर्मा,हमीरपुर से राजेन्द्र राना इस बगावत के सरगना हुए और यह सब भाजपा के खुले समर्थन से हुआ | जय राम ठाकुर पूर्व मुख्यमंत्री सुक्खू सरकार को ‘मित्रों की सरकार’ कह कर संबोधित करते है |
यह दीगर है की वह भी पदों की रेवड़ियां बाँटने में मशगूल रहे | उनका स्वयं का काल विसंगतियों और विरोधाभास का रहा | आजकल विपक्ष में उन की सक्रियता को देख कर भाजपा के लोग भी यह स्वीकार करते है कि इतनी सक्रियता के साथ उन्होंने भाजपा की सरकर चलाई होती तो 2022 में कांग्रेस सरकार न बनती |
और अब बात करते हैं सुक्खू शासन के व्यवस्था परिवर्तन की बड़ी भूल की | वह है नौकरशाही पर ढीली पकड़ | व्यवस्था में परिवर्तन एक बड़ा साहसिक कदम और क्रांतिकारी कदम होता है |आपने निर्णय लिया की सरकार बनते ही आप सरकारी बाबूओं को नहीं बदलेंगे | लेकिन वह समय चला गया जब नौकरशाह निर्भीक हो कर राय देते थे |
आज समय है कमिटिड ब्य्रोक्रेसी अर्थात समर्पित नौकरशाहों का | आलम यह है कि नौकरशाह भी अब तटस्थ न हो कर भाजपा-कांग्रेस के हो कर रह गए है | ऐसी प्रशासनिक संस्कृति तैयार हो रही है जो स्टील फ्रेम न हो कर रीढविहीन हो गयी है |
हमने लम्बे प्रशासनिक अनुभव में देखा है कि सरकार बदलने के साथ ही जिलों, उपमंडलों और सचिवालय स्तर पर अफसर बदल लिए जाते हैं | तो क्या भाजपा के समय के डी.सी, एस डी एम ,सचिवों, विभागाध्यक्षों को तुरंत नहीं बदला जाना चाहिए था ?
व्यावहारिकता का तकाजा है कि पुराने चले आ रहे अफसर फील्ड में आपके कार्यकर्ताओं को नहीं जानते पहचानते इसीलिए आपके कार्यकर्ताओं में आक्रोश बढ़ता गया | यह बात रुष्ट , बागी कांग्रेसी विधायकों ने मीडिया में अपने वक्तव्यों में भी दी | और विपक्ष जो चंद दिन पहले सत्ता में था वह इन नौकरशाहों से मनमाफिक काम कराने में सफल रहते है और जो सत्ता परिवर्तन में सक्रिय कांग्रेस कार्यकर्त्ता थे वह ठगा सा महसूस करते रहे |
यह बात बहुत देर में व्यवस्था परिवर्तन के नियामको को समझ में आई | नौकरशाह बदले भी गए तब जब बड़ी देर हो चुकी थी | चुने हुए विधायकों को इस बात की शिकायत है की हमारे कार्य नहीं होते परन्तु गैर प्रतिनिधियों ,कबिनेट रैंक वाले नेताओं को मुख्यमंत्री और प्रशासन अधिमान देते हैं |
राज्य सभा वोटिंग प्रकरण से उपजे हालात पर येन केन प्रकारेण राजनीतिक हालात पर रणनीति बना कर काबू पाने का प्रयास दीखता है | नौकरशाहों पर लगाम कसने से क्या अब नुक्सान की भरपाई हो सकेगी ? जनता पर थोपे गए चुनावों पर आपको जनता के दरबार में बताना पड़ेगा कि सत्ता सँभालने के बाद जनता की स्थिति में सुधार लाने व जन कल्याण के लिए जो घोषणा पत्र तैयार किया ,जिसमें गारंटियों के उल्लेख था उन पर कितनी प्रगति हुई है |
गिरती माली हालत ,कर्जे का बोझ ,सरकारी व्यर्थ के खर्चे ,ओ. पी. एस लागू करने ,पेंशनरों के मुद्दे यथा पे एरियर ,डी. ए. एरियर, ग्रेचुटी आदि के भुगतान की समस्या ,महिलाओं को टुकड़ों में 1500 देना, सब महिलाओं को न देकर पात्र महिलाओं को देना आदि व प्राकृतिक आपदा के फलस्वरूप पुनर्वास और सरकारी मदद का नाकाफी होना आदि ऐसे मुद्दे है जिन पर सरकार अपनी साख नहीं बचा पाई |
सबसे बड़ी बात है सुक्खू प्रदेश की आर्थिकी को सुद्र्ड करने का क्या विजन रखते है, विकास का क्या रोडमैप होगा…यह सोच वह जनमानस तक नहीं पहुँचा पाये है |
मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि, विनम्रता और आम जनता के बीच घुलना मिलना एक राजनेता की अच्छी निशानी है पर प्रशासनिक अनुभव की कमी और अपरिपक्वता के साथ सरकार और पार्टी के बीच तालमेल की कमी, आये दिन एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के चलते 15 महीने का महत्व पूर्ण समय नष्ट कर दिया गया | जिसका खमियाजा अन्ततोगत्वा जनता को झेलना पड़ा है और सरकार की स्थिरता पर प्रश्नचिंह लगा गया है |
लोकसभा चुनाव के भी अनेक ऐसे मुद्दे है जिन पर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेत्रत्व और प्रदेश की कांग्रेस पार्टी को मुखर होना होगा |बेरोजगारी, भ्रष्टाचार.बढती कीमतें , सनातन का मुद्दा, राममंदिर, देश की सुरक्षा आदि मुद्दों पर कांग्रेस जाहिर है भाजपा को कटघरे में खड़ा करना चाहेगी |
फ़ौज में टेम्पररी भर्ती अर्थात अग्निवीर योजना ,आपदा में विशेष राहत या पॅकेज ,रेलवे लाइन ओद्योगिकरण, पर्यटन आदि पर केन्द्रीय सहायता की कमी आदि मुद्दों पर सुक्खू यदि केन्द्रीय सरकार को घेरने में सफल रहते है तो निश्चय ही मंडी, शिमला सीट आसानी से निकाल ले जा सकते है |
जैसी चुनौती अब मंडी सीट पर भजपा उम्मीदवार कंगना रानौत को जिताने की जयराम ठाकुर पर है वैसी ही जिम्मेदारी अब मंडी सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार पी. डब्लू. डी. मंत्री विक्रमादित्य सिंह को जीताने की मुख्यमंत्री पर आन पड़ी है |
आनंद शर्मा को काँगड़ा से प्रत्याशी बना कर हाई कमान ने सुक्खू पर जैसे उन को जितने की नातिक जिम्मेदारी सौंप दी है | मंदी हारते है तो विरोधी भीतरी घात का आरोप उनके हाली लॉज के प्रति विशेष स्नेह को देख कर लगा सकते है |
सुक्खू के गृह क्षेत्र हमीरपुर और काँगड़ा जिला में बागी विधायकों को भजपा ने टिकट दिया है | ऐसा करके उपचुनावों में कडे मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है |काँगड़ा में ससुराल और हमीरपुर मेरा घर बताने वाले मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू को अपनो से ही वोट समेटने में कड़ी चुनौति मिलेगी |
दबे स्वरों में ही सही, हमीरपुर के कांग्रेसी शिमला जिला के प्रति सुक्खू की विशेष इनायतों को नजर अंदाज नहीं कर पा रहे | इन उपचुनावों पर राजनितिक पर्यवेक्षकों और राष्ट्रीय मीडिया, सोशल मीडिया की पैनी नजर है |
चुनावी नतीजों के बाद अगर कांग्रेस सरकार रहती है तो क्या राजनीतिक उथल पुथल में सुक्खू की सरदारी बनी रहेगी या नया मुख्यमंत्री देखने को मिलेगा ? 4 जून और बाद के राजनीतिक घटना क्रम पर उत्सुकता बनी रहेगी।
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डा देवेंद्र गुप्ता ,सम्पादक ‘सेतु’
आश्रय ,खलीनी अप्पर चौक , खलीनी –शिमला-2
हिमाचल प्रदेश 171002 , मोबएल 94184 73675