एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने लूहरी प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों को मुआवजा राशि के वितरण में अनियमितताओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएनएल) द्वारा प्रभावितों के लिए जारी की गई 76 लाख रुपये की राहत राशि के उपयोग पर कोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है।
यह मामला राज्य में विकास परियोजनाओं के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों के साथ-साथ प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है।
मुआवजा राशि पर सवाल
एसजेवीएनएल ने हाईकोर्ट को बताया कि प्रभावित लोगों के घरों में आई दरारों की मरम्मत के लिए 76 लाख रुपये की राशि जमा की गई थी। कोर्ट ने इस राशि के वितरण और खर्च की पूरी जानकारी मांगी है। हालांकि, सरकार और प्रशासन की ओर से दाखिल हलफनामे में गोलमोल जवाब दिए गए, जिससे अदालत संतुष्ट नहीं है। इस पर कोर्ट ने न्यायमित्र को मामले की गहराई से जांच कर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।
ब्लास्टिंग और पर्यावरणीय प्रभाव
लूहरी प्रोजेक्ट के निर्माण में अवैज्ञानिक और अंधाधुंध ब्लास्टिंग ने नरोला गांव और आसपास के इलाकों में गंभीर नुकसान पहुंचाया है। घरों में दरारें पड़ने के साथ-साथ भारी चट्टानों और ढांक के खिसकने से जान-माल का खतरा बना हुआ है। आईआईटी रुड़की द्वारा की गई जांच में यह साबित हुआ कि घरों में दरारें ब्लास्टिंग के कारण ही आई हैं। इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट के कारण प्रदूषण का स्तर भी बढ़ गया है, जिससे गांववासियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है। फेफड़े, लीवर और शुगर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, जबकि कृषि पर भी गंभीर प्रभाव पड़ा है। बादाम और सेब जैसे प्रमुख फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
प्रशासनिक लापरवाही
प्रभावित परिवारों को दरारों की मरम्मत के लिए केवल 15,000 से 20,000 रुपये तक दिए गए, जो कि नुकसान के हिसाब से बेहद कम हैं। इसके अलावा, गांववासियों का आरोप है कि रात के अंधेरे में ब्लास्टिंग की जाती है, और सुबह तक मलबा सतलुज नदी में बहा दिया जाता है। यह न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है बल्कि यह प्रशासन की लापरवाही और जवाबदेही की कमी को भी दर्शाता है।
न्यायिक हस्तक्षेप
हाईकोर्ट ने इस मामले में कई पक्षों को पार्टी बनाया है, जिनमें राज्य सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, एसजेवीएनएल और ग्राम पंचायत शामिल हैं। कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट के कारण हो रहे नुकसान पर राज्य सरकार को स्पष्ट रुख अपनाने का निर्देश दिया है। यह मामला 2021 में ग्रामीणों द्वारा अदालत को लिखे गए पत्र के आधार पर शुरू हुआ था। कोर्ट ने आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट के आधार पर पहले भी दरारों को भरने के निर्देश दिए थे, लेकिन प्रशासन की कार्रवाई संतोषजनक नहीं रही।
स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव
लूहरी प्रोजेक्ट का असर केवल संरचनात्मक क्षति तक सीमित नहीं है। लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण लोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। साथ ही, फसलों और बगीचों की बर्बादी ने गांव के लोगों की आजीविका को भी खतरे में डाल दिया है। इससे साफ है कि इस प्रोजेक्ट का संचालन पूरी तरह से पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से असंतुलित है।
निष्कर्ष
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप प्रशासनिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने और प्रभावित लोगों को न्याय दिलाने की दिशा में एक अहम कदम है। इस मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च 2025 को होगी, और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकार और अन्य संबंधित पक्ष कितनी जिम्मेदारी से अदालत के निर्देशों का पालन करते हैं।