एप्पल न्यूज, बद्दी/शिमला
हिमाचल प्रदेश, जो देश का प्रमुख फार्मा हब माना जाता है, इस समय दवा उद्योग में निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर विवादों में घिरा हुआ है।
नवंबर 2024 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा जारी ड्रग अलर्ट ने राज्य में फार्मास्युटिकल कंपनियों के सामने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के दवा उद्योगों में निर्मित 29 दवाएं गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतरीं। इनमें से अधिकांश दवाओं का उत्पादन बद्दी, बरोटीवाला, और कालाअंब जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में हुआ है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें
CDSCO की जांच में कुल 111 दवाओं के सैंपल देशभर में फेल पाए गए, जिनमें से 27 दवाएं हिमाचल प्रदेश की हैं। इन दवाओं में मुख्य रूप से हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, दर्द, एंटीबायोटिक, और एलर्जी जैसी बीमारियों के उपचार में उपयोग होने वाली दवाएं शामिल हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि CDSCO की लैब में 41 दवाएं सब-स्टैंडर्ड पाई गईं, जिनमें 16 दवाएं हिमाचल में निर्मित थीं।
इसके अलावा, राज्य की लैब में जांच के दौरान 70 दवाओं के सैंपल गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे, जिनमें 13 हिमाचल में बनी थीं।
इस ड्रग अलर्ट में बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ के दवा उद्योगों का विशेष उल्लेख किया गया है, जहां दवाओं की गुणवत्ता सबसे अधिक प्रभावित पाई गई है।
बद्दी स्थित एक उद्योग के तीन सैंपल फेल पाए गए हैं, जबकि इसी कंपनी के पहले भी चार सैंपल फेल हुए थे।
फार्मा उद्योग की विश्वसनीयता पर असर
हिमाचल प्रदेश को फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिए एक भरोसेमंद हब माना जाता है। देश के लगभग 35% फार्मा उत्पाद यहीं से निर्मित होते हैं।
लेकिन इस ड्रग अलर्ट ने उद्योग की साख पर गहरा प्रभाव डाला है। इन रिपोर्ट्स से यह स्पष्ट होता है कि फार्मा उद्योग में गुणवत्ता मानकों को बनाए रखने में गंभीर खामियां हैं।
यह स्थिति न केवल उद्योग की विश्वसनीयता को कमजोर करती है, बल्कि दवाओं के उपयोगकर्ताओं के स्वास्थ्य पर भी बड़ा खतरा पैदा करती है। जिन दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं, वे जीवनरक्षक श्रेणी में आती हैं। इससे मरीजों का स्वास्थ्य और जान दोनों जोखिम में पड़ सकती हैं।
राज्य सरकार और औषधि नियामकों की कार्रवाई
हिमाचल प्रदेश के औषधि नियंत्रक मनीष कपूर ने बताया कि जिन उद्योगों की दवाएं जांच में फेल पाई गई हैं, उन्हें नोटिस जारी कर दिया गया है। इन दवाओं को बाजार से तुरंत हटाने का निर्देश दिया गया है। साथ ही, संबंधित कंपनियों से जवाब मांगा गया है।
भविष्य की चुनौतियां और समाधान
यह प्रकरण हिमाचल प्रदेश के फार्मा उद्योग के लिए एक चेतावनी है। औद्योगिक क्षेत्रों में बनाए जाने वाले उत्पादों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।
गुणवत्ता नियंत्रण: दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल और उत्पादन प्रक्रियाओं की नियमित और कठोर निगरानी की जानी चाहिए।
सख्त नियम: औषधि गुणवत्ता के मानकों पर खरे न उतरने वाले उद्योगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
स्वतंत्र जांच: नियमित अंतराल पर स्वतंत्र जांच के जरिए इन उद्योगों के उत्पादों की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
हिमाचल प्रदेश का दवा उद्योग राज्य और देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन बार-बार घटती गुणवत्ता मानकों की घटनाएं इसे नुकसान पहुंचा रही हैं।
इस संकट से उबरने के लिए न केवल उद्योगों को अपनी प्रक्रियाओं में सुधार करना होगा, बल्कि राज्य और केंद्रीय नियामकों को भी कड़ी निगरानी और नियमन सुनिश्चित करना होगा।