एप्पल न्यूज, शिमला/चंडीगढ़
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2017 में हुए गुड़िया दुष्कर्म और हत्या मामले ने पूरे राज्य को झकझोर दिया था। यह घटना शिमला जिले के कोटखाई क्षेत्र में घटी, जहां एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म और उसकी निर्मम हत्या ने लोगों के बीच आक्रोश और गहरी संवेदनाएं पैदा कीं।
इस बहुचर्चित मामले के साथ न्याय की मांग को लेकर जनता ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक विरोध प्रदर्शन किया। लेकिन इस पूरे मामले में न्याय प्रक्रिया पर सवाल तब उठे जब पुलिस हिरासत में गिरफ्तार एक आरोपी सूरज की लॉकअप में हत्या हो गई।
सीबीआई द्वारा की गई जांच में यह सामने आया कि आरोपी सूरज की हत्या उन्हीं पुलिसकर्मियों ने की थी जो इस मामले की जांच कर रहे थे। इसके बाद जांच एजेंसी ने सूरज की लॉकअप में हुई हत्या के लिए हिमाचल प्रदेश पुलिस की विशेष जांच टीम (SIT) के कुछ सदस्यों को आरोपी माना।

इस मामले में चंडीगढ़ की सीबीआई अदालत ने 18 जनवरी 2025 को हिमाचल के पूर्व आईजी जहूर हैदर जैदी समेत आठ पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को दोषी ठहराया।
27 जनवरी 2025 को अदालत ने सभी दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई और प्रत्येक पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
यह पहली बार है जब हिमाचल प्रदेश में किसी मामले की जांच करने वाली एसआईटी को खुद ही अपराधी पाया गया और सजा सुनाई गई।
दोषियों में पूर्व आईजी जहूर जैदी के अलावा डीएसपी, एसएचओ और अन्य पुलिसकर्मी शामिल हैं। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि कानून सभी के लिए समान है और कोई भी, चाहे वह कितने भी उच्च पद पर क्यों न हो, कानून की पकड़ से बच नहीं सकता। यह फैसला न्याय और जवाबदेही के लिहाज से एक ऐतिहासिक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।
गुड़िया दुष्कर्म और हत्या मामले की शुरुआत उस समय हुई जब जुलाई 2017 में एक नाबालिग लड़की का शव शिमला के कोटखाई क्षेत्र में जंगल से बरामद हुआ। इस घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया और जनता के आक्रोश ने राज्य प्रशासन और पुलिस पर दबाव बढ़ा दिया।
पुलिस ने मामले में सूरज समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया। लेकिन कुछ ही समय बाद पुलिस हिरासत में सूरज की मौत हो गई, जिसे बाद में हत्या बताया गया।
सीबीआई जांच में यह सामने आया कि सूरज की हत्या पुलिस हिरासत में मौजूद अधिकारियों द्वारा की गई थी। सूरज पर “दबाव डालने” और मामले को “जल्दी निपटाने” के लिए अधिकारियों ने उसे पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। इस कृत्य ने न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, बल्कि न्याय प्रक्रिया को भी धूमिल किया।
चंडीगढ़ की सीबीआई अदालत ने इस मामले में 18 जनवरी 2025 को पूर्व आईजी जहूर हैदर जैदी, डीएसपी मनोज जोशी, एसएचओ राजेंद्र सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी ठहराया। इन सभी पर सूरज की हिरासत में मौत का जिम्मेदार माना गया।
अदालत ने इसे एक गंभीर अपराध बताते हुए कहा कि पुलिस, जो नागरिकों की सुरक्षा के लिए होती है, यदि वह खुद ही अपराध में लिप्त हो जाए, तो यह न्याय प्रणाली और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है।
अदालत ने दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए यह भी कहा कि यह मामला केवल हत्या का नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था की छवि को धूमिल करने का भी है। इस मामले में पुलिस ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया और निर्दोष को न्याय मिलने से वंचित कर दिया।
इस फैसले का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह हिमाचल प्रदेश के इतिहास का संभवतः पहला मामला है, जिसमें किसी मामले की जांच कर रही एसआईटी के सदस्यों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई गई।
यह घटना न केवल पुलिस प्रशासन की खामियों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि न्यायपालिका हर स्थिति में निष्पक्ष और सख्त है।
यह मामला हमें यह याद दिलाता है कि कानून का काम न्याय सुनिश्चित करना है और इस प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, जवाबदेही से बच नहीं सकता।
न्यायपालिका के इस फैसले ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि कानून के समक्ष सभी समान हैं। यह घटना एक चेतावनी भी है कि शक्ति का दुरुपयोग करने वालों को अपने कृत्यों का गंभीर परिणाम भुगतना होगा।
इस फैसले से न केवल पीड़ित परिवार को न्याय की उम्मीद जगी है, बल्कि यह घटना पूरे देश के लिए एक सीख भी है कि न्यायपालिका और सीबीआई जैसी संस्थाएं जनता के भरोसे को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।