एप्पल न्यूज, शिमला
20 अगस्त 1925 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने शिमला में इस भवन का उद्घाटन किया। यह भवन ब्रिटिश काल में भारत की केंद्रीय विधान सभा का केंद्र रहा। इसकी वास्तुकला ब्रिटिश औपनिवेशिक शैली की उत्कृष्ट मिसाल है।
इस भवन की दीवारों ने देश के कई महान नेताओं के विचारों को सुना। यहाँ विट्ठलभाई पटेल, मोतीलाल नेहरू सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानी बहसों और चर्चाओं में भाग ले चुके हैं। इस कारण यह भवन केवल पत्थर-गारे की संरचना नहीं, बल्कि भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा की ऐतिहासिक धरोहर है।

स्वतंत्रता के पश्चात यह भवन पहले पंजाब एवं हिमाचल सरकार के सचिवालय के रूप में प्रयोग हुआ। इसके अतिरिक्त, लंबे समय तक यहाँ से आकाशवाणी (All India Radio) का प्रसारण केंद्र भी संचालित होता रहा।
1 अक्तूबर 1963 को इसी भवन में हिमाचल प्रदेश विधानसभा का पहला सत्र आयोजित किया गया। यह क्षण राज्य की लोकतांत्रिक यात्रा का सुनहरा अध्याय था।
विशेष धरोहर – बर्मा की भेंट
आज भी विधानसभा में जो अध्यक्ष पीठ (Speaker’s Chair) प्रयोग में लाई जाती है, वह बर्मा सरकार द्वारा भेंट की गई थी। यह पीठ न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व रखती है बल्कि हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं की निरंतरता का प्रतीक भी है।
20 अगस्त 2025 को इस भवन ने अपने 100 वर्ष पूरे कर लिए। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने सभी सदस्यों और प्रदेशवासियों को बधाई दी और इसे लोकतंत्र का मंदिर बताया। उन्होंने कहा कि यह चैम्बर हिमाचल और पूरे देश की लोकतांत्रिक विरासत का जीता-जागता प्रतीक है
शिमला का यह कौंसिल चैम्बर केवल एक भवन नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का साक्षात इतिहास है। 1925 से लेकर 2025 तक इसने औपनिवेशिक शासन, स्वतंत्रता संग्राम, राज्य निर्माण और आज के लोकतांत्रिक भारत—सभी दौर देखे हैं। यह भवन आने वाली पीढ़ियों के लिए लोकतांत्रिक परंपराओं और संघर्षों की अमूल्य धरोहर बना रहेगा।







