एप्पल न्यूज, धर्मशाला
विधानसभा सत्र के तीसरे दिन तपोवन परिसर के भीतर और बाहर जबरदस्त हंगामा देखने को मिला। सदन के भीतर सत्ता और विपक्ष एक-दूसरे पर हमलावर रहे, तो बाहर जनता के हक की लड़ाई पूरे उफ़ान पर दिखी।
सुबह कांग्रेस विधायकों ने केंद्र के खिलाफ प्रदर्शन किया और दूसरी तरफ बीजेपी कर्मचारियों व पेंशनरों के मुद्दों पर धरने पर बैठी। लेकिन सबसे बड़ा दृश्य जोरावर स्टेडियम के बाहर दिखाई दिया — जहां प्रदेशभर से आए सैकड़ों बुज़ुर्ग पेंशनर्स अपने अधिकारों के लिए सड़क पर उतर आए।
सर्द हवाओं के बीच डटे इन बुज़ुर्गों के चेहरे पर गुज़रे वर्षों की सेवा और आज की मजबूरी साफ झलक रही थी। “हमने ज़िंदगी भर प्रदेश के लिए काम किया, आज हमारी सुनवाई कौन करेगा”—ये पुकार बार-बार उठ रही थी।

पेंशनर शांतिपूर्ण रैली निकालते हुए पुलिस ग्राउंड से जोरावर स्टेडियम पहुंचे, लेकिन जैसे ही बैरिकेड के पास पहुंचे, तनाव अचानक बढ़ गया।
पेंशनरों ने बैरिकेड हटाने की कोशिश की, जबकि पुलिस उन्हें आगे बढ़ने नहीं दे रही थी। स्थिति कुछ मिनटों के लिए इतनी गर्म हो गई कि धक्का-मुक्की तक हो गई।
पेंशनरों का एक ही उद्देश्य था—मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू से मिलकर अपने मुद्दे रखना। लेकिन सुरक्षा व्यवस्था के कारण किसी को भी बैरिकेड से आगे नहीं आने दिया गया। नाराज़गी बढ़ी तो पेंशनरों ने कड़ा कदम उठाते हुए जोरावर स्टेडियम के पास चक्का जाम कर दिया।
इसी बीच संयोग से नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का काफिला वहां से गुजर रहा था। पेंशनरों ने रास्ता रोक लिया, गाड़ी आगे नहीं बढ़ने दी। कई मिनट के तनाव के बाद जयराम ठाकुर ने खुद गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर भीड़ में उतरकर पेंशनरों से बात की।
उन्होंने कहा—“आपकी मांगें विधानसभा में ज़रूर उठाई जाएंगी।” लेकिन भीड़ का गुस्सा इतना तीखा था कि गाड़ी को वहां से निकलने में भी समय लग गया। यह विरोध नहीं, बल्कि वर्षों की पीड़ा का विस्फोट था — डीए रोक दिए, पेंशन रोकी, मेडिकल बिल अटके — गुज़ारा कैसे हो?
धीरे-धीरे हालात शांत हुए और कई घंटे की नारेबाज़ी व इंतज़ार के बाद पेंशनर संघ के दो-तीन प्रतिनिधियों को विधानसभा परिसर में मुख्यमंत्री से मिलने भेजा गया।
मुलाकात में पेंशनरों ने DA बहाल करने, मेडिकल बिल रिलीज़ करने और पेंशन संबंधित लंबित मामलों के निपटान की मांग रखी।
मुख्यमंत्री ने सभी मुद्दों को गंभीरता से सुनते हुए समाधान का आश्वासन दिया और कहा कि “सरकार बुज़ुर्गों के अधिकार और सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।”
जोरावर स्टेडियम के बाहर आज सिर्फ विरोध नहीं हुआ; बुज़ुर्गों का दर्द सड़क पर बह गया। वह दर्द जो नौकरी के दौरान कभी जताया नहीं गया, वे कदम जो जीवनभर प्रदेश की सेवा के लिए नहीं डगमगाए — आज उन्हें अपने हक और सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
हिमाचल के पेंशनरों का यह आंदोलन सिर्फ पैसों का मामला नहीं —
यह सम्मान, गुज़ारे और अपने अधिकार की लड़ाई है।
अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद क्या यह जद्दोजहद अपने परिणाम तक पहुंच पाएगी — क्या बात अब वाकई बन पाएगी?






