एप्पल न्यूज़, शिमला
हिमाचल प्रदेश राजकीय अध्यापक संघ के राज्य प्रधान वीरेंद्र सिंह चौहान ने प्रदेश के विद्यालयों को CBSE बोर्ड से जोड़ने का महत्वपूर्ण और दूरदर्शी निर्णय का अभिनंदन किया है। उन्होंने कहा कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में अवश्य सहायक होगा। परन्तु शिक्षकों की चयन परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव शिक्षक समुदाय में चिंता और असंतोष पैदा कर रहा है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षकों को ही उनके विद्यालयों में पढ़ने का अवसर दिया जाए और कोई चयन परीक्षा न करवाई जाए।
इससे यह गलत संदेश जाएगा कि विद्यालयों के वर्तमान शिक्षक कमतर हैं और CBSE के शिक्षक श्रेष्ठ हैं, जबकि दोनों ही बोर्डों में बिल्कुल एक सामान पाठ्यक्रम है, एक जैसी NCERT की किताबें पढ़ाई जाती हैं और नई शिक्षा नीति के अनुसार दोनों बोर्डों की परीक्षाएँ एक जैसे ढांचे पर आधारित ‘कॉम्पिटेंसी बेस्ड’ प्रश्न पत्र होते है।
हमारे शिक्षकों की नियुक्ति पहले ही सरकारी नियमों के अनुसार हुई है। उन्होंने स्नातक/स्नातकोत्तर के साथ B.Ed. किया है, TET उत्तीर्ण किया है और चयन आयोग की कठिन परीक्षा पास करके ही स्कूलों में नियुक्त हुए हैं। अब उनकी परीक्षा दोबारा लेना किसी तरह भी उचित नहीं है।
जिन स्कूलों को CBSE में बदला जा रहा है, वहाँ आज अच्छी छात्र संख्या और अच्छे परिणाम केवल इसलिए हैं क्योंकि वर्तमान शिक्षक लगातार कठिन मेहनत कर रहे हैं, अतिरिक्त कक्षाएँ ले रहे हैं, बच्चों की हर संभव सहायता कर रहे हैं और पूरे मन से पढ़ा रहे हैं। जिन शिक्षकों की मेहनत से ये स्कूल आगे बढ़े, उन्हीं को परीक्षा के माध्यम से परेशान करना उनके मनोबल को गिराने जैसा है।

इसके अलावा CBSE स्कूलों में केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि क्लर्क, लैब सहायक और चपरासी भी कार्यरत होंगे। यदि सरकार का मानना है कि दक्षता बढ़ानी है, तो फिर परीक्षा केवल शिक्षकों के लिए ही क्यों? यह स्पष्ट रूप से शिक्षक समुदाय के साथ भेदभाव है।
अपने चयन के 20 वर्ष बाद शायद एक IAS अधिकारी भी UPSC की परीक्षा फिर से पास ना कर पाए, एक न्यायाधीश वकील या डॉक्टर भी अपनी परीक्षाएं फिर से पास नहीं कर पाएंगे। तो फिर शिक्षकों से ऐसी उम्मीद क्यों की जा रही है।
शिक्षा एक ऐसा पेशा है जिसमें अनुभव से निखार आता है। इसलिए यदि चयन की कोई आवश्यकता महसूस होती है, तो पिछले 10–15 वर्षों के परिणामों को देखा जाना चाहिए। बच्चों के परिणाम ही शिक्षक की असली योग्यता का प्रमाण होते हैं
यह भी विडंबना है कि सरकार मानती है कि CBSE बोर्ड बेहतर है इसलिए हिमाचल बोर्ड के विद्यालयों को CBSE में बदला जा रहा है, जबकि प्रस्तावित चयन परीक्षा हिमाचल बोर्ड से ही करवाना स्वयं इस नीति का मज़ाक बना रहा है।
निजी CBSE स्कूल अपने शिक्षकों की क्षमता पर पूरा भरोसा करते हैं और अध्यापकों की कोई ऐसी परीक्षा नहीं करवाते। और अच्छे परिणाम भी देते हैं, परन्तु प्रदेश सरकार अपने ही अनुभवी शिक्षकों की योग्यता पर संदेह कर रही है। यह परीक्षा शिक्षकों की गरिमा के विरुद्ध है और उन्हें हतोत्साहित करेगी।
साथ ही, शिक्षक चाहे CBSE स्कूल में हों या राज्य बोर्ड के स्कूल में—दोनों ही स्थितियों में वे राज्य सरकार के ही कर्मचारी रहेंगे।
मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार अगले वर्षों में भी 100 से अधिक नए स्कूल CBSE में बदले जाएंगे—क्या हर बार नई परीक्षा आयोजित होगी? यह न तो व्यावहारिक है और न ही शिक्षक समुदाय व विद्यालयों के हित में है।
अगर चयन परीक्षा में चयनित होने के बावजूद नए CBSE स्कूल में कोई अध्यापक अच्छा परीक्षा परिणाम नहीं दे पाया तो नई व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है, अगर वर्तमान व्यवस्था को चलने दिया जाए और अध्यापकों में से अगर कोई cbse में अच्छा परिणाम नहीं दे पाया तो उसे हिमाचल बोर्ड में स्थानांतरित किया जा सकता है।
जो शिक्षक स्वेच्छा से cbse विद्यालयों से हटाना चाहते हैं, उनके स्थान पर सरकार नए शिक्षकों का चयन उनके परिणामों के आधार पर कर सकती है। शिक्षक वर्ग cbse में काम करने के लिए किसी अतिरिक्त भत्ते को भी नहीं लेना चाहता, और सरकार पर कोई अनावश्यक आर्थिक बोझ डाले बिना ही यह कार्य स्वेच्छा से करना चाहते हैं।
वीरेंद्र चौहान के साथ राज्य के मुख्य संरक्षक नागेश्वर पठानिया, वरिष्ठ उप प्रधान राजेश पराशर, नरवीर चंदेल संजीव ठाकुर, महासचिव तिलक नायक, जिला चंबा के प्रधान हरिप्रसाद, जिला कांगड़ा के प्रधान सचिन जसवाल, बिलासपुर के प्रधान राकेश संधू हमीरपुर के प्रधान राजेश गौतम, कल्लू के प्रधान यशपाल, शिमला के प्रधान ताराचंद शर्मा, सिरमौर के प्रधान वीरभद्र नेगी, लाहौल स्पीति के प्रधान पालम सिंह, राज्य कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य मनीष सूद वह समस्त राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों ने संयुक्त बयान में कहा है कि इस प्रस्तावित परीक्षा को तुरंत वापस लिया जाए।
अच्छे परिणाम देने वाले वर्तमान शिक्षकों को ही अपने पदों पर जारी रखा जाए, ताकि स्कूलों में अनावश्यक अव्यवस्था, शिक्षकों में असंतोष और बच्चों की पढ़ाई में बाधा न उत्पन्न हो।





