एप्पल न्यूज़, शिमला
कोरोना महामारी से प्रभावित हुए कृषि क्षेत्र को संकट की घड़ी में मोदी सरकार से नक़द राहत राशि की आस थी लेकिन सरकार ने किसानों के हाथ में झुँनझुना थमा दिया। यह बात जुब्बल नावर कोटखाई के पूर्व विधायक व पूर्व मुख्य संसदीय सचिव (कृषि) रोहित ठाकुर ने प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कही। कृषि क्षेत्र का देश की GDP में 18% योगदान हैं और साथ ही देश की 50% जनसंख्या को इस क्षेत्र में रोज़गार मिलता हैं।
कृषि विकास दर जो 5% हुआ करती थी कोरोना महामारी से पहले ही सबसे न्यूनतम स्तर 2% पर आ गई । उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में किसानों के लिए एकमात्र प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना चुनाव में लाभ लेने के उद्देश्य से वर्ष 2019 में शुरू की थी। चुनाव से एक माह पूर्व शुरू हुई योजना एक वर्ष बाद हांफने लगी हैं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार सम्मान निधि पाने वालों की संख्या घटकर 50% रह गई हैं। इसी तरह पिछले वर्ष ही मोदी सरकार ने मंदी के दौर में सभी क्षेत्रों के लिए घोषणा की थी जबकि कृषि क्षेत्र को वंचित रखा गया। किसानों को राहत देने के नाम पर आत्मनिर्भर रहने को कहा जा रहा हैं जबकि औद्योगिक घरानों से ऋण वसूलने की बजाय उन्हें रियायतें दी जा रही हैं, मोदी सरकार ने पिछले 5 वर्षों में औद्योगिक घरानों के लगभग 5.5 लाख करोड़ रुपये बट्टा खाते (Bad debt.) में डाले हैं इसके साथ ही लगभग 16.88 लाख करोड़न रुपये को एनपीए (NPA) घोषित किया हैं। कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने 90 के दशक में 4% ब्याज दर पर ₹3 लाख रुपये किसान क्रेडिट कार्ड योजना किसानों के लिए लाई गई थी उसकी सीमा बढ़ाकर ₹6 लाख की जाए ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके। कांग्रेस शासित प्रदेशों में किसानों के ₹2 लाख रुपये तक के ऋण माफ किए गए उसी तरह केंद्र सरकार भी लघु एवम् सीमांत किसानों के लोन माफ़ी को पूरे देश मे लागू करें। भाजपा के 2014 के संकल्प पत्र में किए गए वायदे के अनुरूप कृषि उत्पादों पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में मात्र 2% कृषि उत्पादों का भंडारण किया जाता हैं और 4% खाद्य प्रसंस्करण होता हैं। प्रति वर्ष 25% फल व सब्जियां भंडारण व प्रसंस्करण के अभाव के चलते नष्ट हो जाती हैं, ऐसे में भंडारण व प्रसंस्करण की क्षमता को बढ़ाए जाने की आवश्यकता हैं। यूपीए सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय लोगों व मज़दूरों को रोज़गार उपलब्ध करवाने वाली महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा को भाजपा नेता दुत्कारते थे , आज यह योजना संकट के समय में लोगों के लिए संजीवनी बनी है। संकट के समय में मनरेगा का बजट बढ़ाए जाने की आवश्यकता हैं* * प्रर्याप्त खाद्य सुरक्षा के साथ ही कोरोना महामारी पर जीत सम्भव हैं ऐसे में कृषि क्षेत्र को पूरी प्राथमिकता मिलें और कोई समझौता न हो। देश की प्रगति और अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से गतिशील बनाये रखने में मज़दूरो का महत्वपूर्ण योगदान हैं, देशभर में 12 करोड़ से अधिक मज़दूर हैं । संकट के समय में देशभर में मज़दूरो को लावारिस छोड़ दिया गया। मूलभूत सुविधाओं के अभावः से सैकड़ो मजदूरों की मौतें हो चुकी हैं जबकि लाखों मज़दूर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि जीवन यापन करने के लिए लघु एवम् सीमांत किसानों , मजदूरों व सभी गरीब ब असहाय परिवारों के लिए कोरोना के कहर समाप्त होने तक न्यूनतम ₹6000 रुपये प्रतिमाह आय योजना शुरू की जाए ताकि उनका जीवन यापन हो सके व उनकी क्रय शक्ति भी बढ़े। क्रय शक्ति बढ़ने से बाज़ार में निवेश होगा जिससे अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिलेगी। मंदी और वैश्विक कोरोना महामारी के चलते समाज में आर्थिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है, पूर्व में हुए एक आँकलन के अनुसार 1% जनता के पास देश की कुल संपत्ति का 73% भाग है। समाज में बढ़ते आर्थिक भेदभाव को कम करने के लिए समाज के ग़रीब व मध्यम वर्गों की कल्याणकारी योजनाओं में निवेश करने की आवश्यकता हैं। पैकेज के काफ़ी हिस्से की घोषणा आरबीआई ने पहले ही कर दी थी तथा कुछ घोषणाएं वही ही हैं जिसका वर्णन बजट 2020-21 में किया गया हैं। पैकेज में कृषि क्षेत्र को लेकर कोई जरूरी कदम नही उठाया गया बल्कि मोदी सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की तरह ही जुमला साबित होने की शंका बनी हुई हैं।