एप्पल न्यूज़, रामपुर बुशहर
सीटू, खेत मजदूर यूनियन व अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय आह्वान पर श्रम कानूनों में बदलाव, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने व किसान विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ आज रामपुर और निरमण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में रामपुर, झाकड़ी, निरमण्ड, ज्यूरी, बायल, नाथपा, कोटागाड़, बिथल, दत्तनगर, कोटला आदि अनेक स्थानों में \”मजदूर किसान प्रतिरोध दिवस\” मनाया गया। आज क्षेत्र के सैंकड़ों मजदूर व किसान अपने कार्यस्थल व सड़कों पर उतरकर केंद्र व राज्य सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।
इन विरोध प्रदर्शनों को सम्बोधित करते हुए सीटू के जिलाध्यक्ष कुलदीप सिंह, सीटू राज्य उपाध्यक्ष बिहारी सेवगी, नरेंद्र देष्टा, नीलदत्त, रिंकू राम, मोहित किसान सभा जिला सचिव देवकी नंद, पूरण, दिनेश मेहता आदि वक्ताओं ने केंद्र व प्रदेश सरकारों को चेताया है कि वह मजदूर व किसान विरोधी कदमों से हाथ पीछे खींचें अन्यथा मजदूर व किसान आंदोलन तेज होगा। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी शासक वर्ग व सरकारें मजदूरों व किसानों का खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश,मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। केंद्र सरकार द्वारा 3 जून 2020 को कृषि उपज,वाणिज्य एवम व्यापार(संवर्धन एवम सुविधा) अध्यादेश 2020,मूल्य आश्वासन(बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश 2020 व आवश्यक वस्तु अधिनियम(संशोधन) 2020 आदि तीन किसान विरोधी अध्यादेश जारी करके किसानों का गला घोंटने का कार्य किया गया है। यह सरकार देश की जनता के संघर्ष के परिणाम स्वरूप वर्ष 1947 में हासिल की गई आज़ादी के बाद जनता के खून-पसीने से बनाए गए बैंक,बीमा,बीएसएनएल,पोस्टल,स्वास्थ्य सेवाओं,रेलवे,कोयला,जल,थल व वायु परिवहन सेवाओं,रक्षा क्षेत्र,बिजली,पानी व लोक निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव पर बेचने पर उतारू है। ऐसा करके यह सरकार पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए पूरे देश के संसाधनों को बेचना चाहती है। ऐसा करके यह सरकार देश की आत्मनिर्भरता को खत्म करना चाहती है।
हिमाचल प्रदेश सरकार भी इन्हीं नीतियों का अनुसरण कर रही है। कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके हिमाचल प्रदेश में काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया है। इस से एक तरफ एक-तिहाई मजदूरों की भारी छंटनी होगी वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को चौदह श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। ठेका मजदूर अधिनियम 1970 में बदलाव से हजारों ठेका मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मजदूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर मजदूरों की छंटनी की पक्रिया आसान हो जाएगी व उन्हें छंटनी भत्ता से भी वंचित होना पड़ेगा। तालाबंदी,छंटनी व ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएगी। मॉडल स्टेंडिंग ऑर्डरज़ में तब्दीली करके फिक्स टर्म रोज़गार को लागू करने व मेंटेनेंस ऑफ रिकोर्डज़ को कमज़ोर करने से श्रमिकों की पूरी सामाजिक सुरक्षा खत्म हो जाएगी। उन्होंने मजदूर व किसान विरोधी कदमों व श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलावों पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने सरकार को चेताया है कि अगर पूंजीपतियों,नैेगमिक घरानों व उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाकर मजदूरों-किसानों के शोषण को रोका न गया तो मजदूर-किसान सड़कों पर उतरकर सरकार का प्रतिरोध करेंगे।
श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगायी जाए, मजदूरों का वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने, समान काम का समान वेतन दिया जाए, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने पर रोक लगाने,किसान विरोधी अध्यादेशों को वापिस लेने,मजदूरों को कोरोना काल के पांच महीनों का वेतन देने,उनकी छंटनी पर रोक लगाने,किसानों की फसलों का उचित दाम देने,कर्ज़ा मुक्ति,मनरेगा के तहत दो सौ दिन का रोज़गार,कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाने, आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित करने,फिक्स टर्म रोज़गार पर रोक लगाने,हर व्यक्ति को महीने का दस किलो मुफ्त राशन देने व 7500 रुपये की आर्थिक मदद देने , बिजली के बिलों में कटौती, बस किराये को कम करने की मांगें इस आंदोलन की प्रमुख मांगें हैं।
उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में सभी किसानों का रबी फसल का कर्ज माफ करे व खरीफ फसल के लिए केसीसी जारी करे। किसानों की पूर्ण कर्ज़ माफी की जाए। किसानों को फसल का सी-2 लागत से 50 फीसद अधिक दाम दिया जाए। किसानों के लिए \”वन नेशन-वन मार्किट\” नहीं बल्कि\”वन नेशन-वन एमएसपी\” की नीति लागू की जाए। किसानों व आदिवासियों की खेती की ज़मीन कम्पनियों को देने व कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाई जाए।
इस धरने मैं संदीप, रमन शर्मा, राज, सतीश, निशा, विद्या, सरोज, श्यामा, श्याम लाल बुशेहरी, खुशी राम, मंजू , सुशीला, रजनी, राधा, चंद्र शर्मा, जसबीर, हरीश, प्रेम सिंघानिया, राकेश, जितेंद्र,सुरेंदर , प्रदीप, मोहन,विकेश, कैलाश, कुलदीप, कबीर, मंगत राम, पोविन्दर शर्मा, देवेंद्र, मंजू, मनीता, सुमारी,राम दास, जगदीश, अशोक,कपिल, दुर्गा सिंह, ललिता आदि उपस्थित रहे।