IMG_20241205_075052
WEBISTE 6TH DEC 2024
previous arrow
next arrow

प्राकृतिक खेती से 10 तरह की फसलें उगा रहे चौपाल के मनोज

फलों के साथ हिमाचल और उत्तराखंड की विभिन्न फसलों पर कर रहे प्रयोग

शर्मा जी, एप्पल न्यूज़ शिमला

आमतौर पर एक बागवान फलोत्पादन पर ही ध्यान केंद्रित करता है और खाद्यान्न की ओर इतनी तवज्जो नहीं देता। मगर चौपाल विकास खंड का एक बागवान खेती पर भी बराबर ध्यान दे रहा है। ठलोग गांव से संबंध रखने वाले इस बागवान का नाम है मनोज शर्मा। प्राकितिक विधि से मनोज न केवल सेब का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि अपने खेतों से 10 तरह की फसलें भी एक साथ ले रहे हैं।

\"\"

 मनोज ने बताया कि पहले वह रसायनिक तरीके से खेती-बागवानी करते थे। नकदी फसल होने के चलते वह सेब पर ही ध्यान देते थे और खेती में बमुश्किल 2 से 3 फसलें ही सालान लेते थे। प्राकृतिक खेती की अवधारणा के बारे में जानने और कुफरी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद खेती-बागवानी के प्रति उनकी समझ बढ़ी है। इसके चलते वह पहले से ज्यादा गंभीर होकर खेती-बागवानी को समय दे रहे हैं।

वकालत की डिग्री रखने वाले मनोज शर्मा पिछले 3 दशक से खेती से जुड़े हैं। बीते सालों में खेती-बागवानी में उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। साथ ही रसायनिक और जैविक खेती विधियों से भी उन्होंने उत्पादन हासिल किया है। मनोज ने बताया कि सब तरह की खेती तकनीकों में केवल प्राकृतिक खेती ही किसान के लिए सबसे मुफीद है। इस विधि में खर्च न के बराबर और सह-फसल से अतिरिक्त आय मिलती है जो किसान के लिए फायदे का सौदा है।

\"\"

मनोज ने बताया कि वह सेब के 1200 पौधों पर प्राकृतिक खेती आदानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती से बागवानी खर्च में कमी आई है। जहां रसायनिक में बागवानी लागत 60 हजार थी वह प्राकृतिक खेती में अब घटकर आधी रह गई है। बराबर उपज मिलने से और सहफसलों की अच्छी पैदावार मिलने से आय में इजाफा हुआ है। मनोज ने प्राकृतिक खेती से अब तक सेब, मक्की, गेहूं, मूंगफली, कोदा, सोयाबीन, मटर, लाल धान, सफेद धान और मौसमी सब्जियों की सफलतापूर्वक उपज ली है।   

मनोज ने बताया कि प्राकृतिक खेती विधि से सब्जियों की फसलों में सालों से चले आ रहे झुलसा रोग से निजात मिली है। सेब में भी स्कैब और पतझड़ का कोई प्रकोप देखने को नहीं मिला है। प्राकृतिक खेती के परिणामों से प्रभावित होकर वह हिमाचल के विभिन्न हिस्सों में उगने वाली फसलों के साथ उत्तराखंड की भी अलग-अलग प्रचलित फसलें अपने यहां लगा रहे हैं। मनोज बताते हैं कि प्राकृतिक विधि की शुरूआत के बाद से खेत-बागीचे की मिट्टी मुलायम हुई है और उर्वरकता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 

पद्मश्री सुभाष पालेकर जी से प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षण मिलने के बाद कृषि विभाग ने मनोज को मास्टर ट्रेनर बनाया है। अभी तक वह अपनी आस-पास की पंचायतों में 13-14 कैंप लगाकर किसान-बागवानों को इस विधि के बारे में जागरूक कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि किसान-बागवान इस विधि को लेकर खासे उत्साहित हैं और लोग थोड़ी जमीन में ही सही इस विधि का प्रयोग कर रहे हैं। 

प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल का कहना है कि प्राकृतिक खेती विधि से सेब बागवानी में बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। बागवानी पर किए गए एक सर्वेक्षण के दौरा यह पाया गया कि इस विधि से बीमारियां कम हुई हैं वही बागवानी लागत में 68 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। इन दर्शनीय तथ्यों को देखते हुए किसान- बागवान बड़ी तेजी से इसे अपना रहे है।

Share from A4appleNews:

Next Post

शिमला आईजीएमसी में मंगलवार को 3 कोरोना संक्रमितों की मौत, 60 पहुंचा मृतकों का आंकड़ा

Tue Sep 8 , 2020
एप्पल न्यूज़, शिमला हिमाचल प्रदेश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे है। वहीं, मौत का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ रहा है। मंगलवार सुबह कोरोना से 3 संक्रमितों की मौत हो गई है। बिलासपुर की 57 वर्षीय महिला ने आईजीएमसी में दम तोड़ दिया है। वहीं, एक सरकाघाट […]

You May Like

Breaking News