हिमाचल प्रदेश के पत्रकारों के लिए वेब मीडिया पॉलिसी बनाये सरकार, सीएम जयराम ठाकुर को सौंपा ज्ञापन
एप्पल न्यूज़ शिमला
वेब पोर्टल के लिए कार्य कर रहे पत्रकार कई सालों से लगातार वेब पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे है। मगर अब तक कोई सकारात्मक नतीजा न आने व भेदभाव पूर्ण रवैये से नाराज़ पत्रकारों ने एक बार फिर वेब मीडिया पॉलिसी बनाने का मामला सरकार से उठाया है। ताकि पत्रकारिता के गिरते स्तर को बचाया जा सके।
वेब पोर्टल जर्नलिस्ट्स का एक प्रतिनिधिमंडल आज शिमला में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला। इन्होंने इस अवसर पर प्रदेश में वेब पोर्टल पॉलिसी की मांग रखी।
क्या बोले सीएम जयराम ठाकुर
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस विषय पर सकारात्मक आश्वासन देते हुए कहा कि प्रदेश में जल्द ही वेब मीडिया पॉलिसी लाई जाएगी। उन्होंने सूचना एवं जन संपर्क विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि इस मामले में जल्द उचित कार्रवाई करें और अन्य राज्यों की तर्ज पर हिमाचल में भी पॉलिसी बनाने की ओर ठोस कदम उठाए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भी वेब मीडिया पॉलिसी ला रही है उसके आधार पर भी विभाग स्टडी करेगा।
संवाद करते हुए वेब मीडिया के पत्रकारों ने मुख्यमंत्री को इस मामले में अधिकारियों द्वारा अपनाई जा लचर कार्यप्रणाली से अवगत करवाया। जिसे मुख्यमंत्री ने बड़े सहज भाव से सुना और आगामी कार्रवाई के निर्देश दिए।
आखिर क्या है मामला और क्या है मांग….
ऐसा नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में कार्यरत वेब मीडिया पत्रकार पहली मर्तबा मुख्यमंत्री से मिलने गए, सरकार बनने के ठीक 6 महीने बाद 5 जून, 2018 को भी मुख्यमंत्री को पॉलिसी बनाने के बावत ज्ञापन सौंपा था। जिस पर निदेशक सूचना एवं जन सम्पर्क को तुरंत बैठक करने के आदेश दिए और आश्वासन दिया कि ‘दीवाली’ तक पॉलिसी बना ली जाएगी। लेकिन विडम्बना यह कि आज तक वो दिवाली नहीं आई।
इसके दो सप्ताह बाद निदेशालय के अधिकारियों और वेब न्यूज़ पोर्टल के एडिटर्स के साथ बैठक कर पॉलिसी ड्राफ्ट तैयार किया, आला अधिकारियों को भेजा लेकिन उसके बाद उस ड्राफ्ट का क्या हुआ किसी को कोई जानकारी नहीं।
इसके बाद दीवाली के समीप फिर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया फिर आश्वासन मिला। 2019 में तीसरी बार ज्ञापन सौंपा लेकिन कोरे आश्वासनों के सिवाय कुछ न मिला।
जानकारी के अनुसार 2020 में फिर पॉलिसी बनाने हेतु प्रक्रिया शुरू की गई। आलाधिकारियों ने सैद्धान्तिक मंजूरी दी गई और वित्त विभाग से भी ड्राफ्ट को
अप्रूव कर दिया गया। न मालूम क्यों सरकार फिर हाथ पीछे खींचे और पॉलिसी को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जयराम सरकार में ही विभाग की इस लचर व्यवस्था से प्रदेश में काम कर रहे वेब मीडिया पत्रकार ख़ासे निराश हैं।
आज मंगलवार को चौथी बार फिर इस उम्मीद से की स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री मीडिया के बदलते स्वरूप में वेब मीडिया पॉलिसी को शीघ्र बनाकर वोकल फ़ॉर लोकल थीम के तहत कई वर्षों से काम कर रहे युवा और वरिष्ठ पत्रकारों को उनका हक दिलाएंगे और लोकतंत्र की इस नए स्तंभ को और मजबूत करेंगे।
कांग्रेस की वीरभद्र सरकार में भी नहीं बनी पॉलिसी
यूं भले ही इस सरकार में चार बार ज्ञापन सौंप दिया गया हो पूर्व की वीरभद्र सरकार में भी 2013 से लेकर 2017 तक लंबी लड़ाई लड़ी गई। वह भी बेनतीजा रही। अब सभी को उम्मीद यही कि वर्तमान के युवा मुख्यमंत्री युवाओं की नई भाषा को समझेंगे और पॉलिसी बनाएंगे। इसी उम्मीद के साथ यह मुहिम जारी है।
अब तक विभाग ने क्या किया
मुख्यमंत्री के अधीन काम कर रहे सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग को वेब मीडिया के पत्रकारों ने देश के 5 पड़ोसी राज्यों में बनी पॉलिसी के पहले पीडीएफ और फिर प्रिंट कर सारे दस्तावेज जमा करवाए और जून 2018 में विभागीय अधिकारियों के साथ एक संयुक्त बैठक में पॉलिसी ड्राफ्ट के एजेंडे पर मैराथन बैठक की। अधिकारियों की करनी देखिए इस बैठक को ही अनौपचारिक घोषित कर दिया।
यही नहीं पूर्व सरकार के समय भी विभाग के अधिकारियों का एक दल पॉलिसी ड्राफ्ट बनाने के मकसद से 5 राज्यों की यात्रा कर आया लेकिन उसका नतीजा क्या निकला उसकी किसी को जानकारी नहीं।
क्यों है पॉलिसी की जरूरत
हिमाचल प्रदेश में जयराम सरकार के सत्ता में आने के समय कुल 15 न्यूज वेबसाइट विभाग में इम्पैनल थी। देखते ही देखते जैसे ही विभाग में पॉलिसी बनाने की कवायद शुरू हुई एक साल के भीतर ही ये आंकड़ा 100 के पार चला गया। कोरोना काल आया तो वोकल फ़ॉर लोकल के तहत युवा पत्रकारों और कोविड काल मे रोजगार से हाथ धोने वाले पत्रकारों ने भी पत्रकारिता के आधुनिक माध्यम डिजिटल मीडिया को अपनाया।
धड़ाधड़ वेबसाइट बनने लगी। यही नहीं पारम्परिक मीडिया के पत्रकारों ने भी भविष्य की चिंता से अपनी वेबसाइट खोल दी। सभी का स्वागत लेकिन परेशानी तब हुई जब फेसबुक पर पेज चलाने वाले भी माइक आई डी बनाकर बिना शिक्षा और प्रशिक्षण के ही हर कोई पत्रकार बन गया। इससे मेन स्ट्रीम में काम करने वाले पत्रकार हताश और निराश हो गए।
यही नहीं चुनावों के समय भी फेसबुकिया पत्रकारों ने नेताओं और सरकार के नुमाइंदों को खूब गुमराह किया। आलम ये है कि सरकार के अधिकारी और प्रतिनिधि भी सोशल मीडिया और वेब मीडिया का भेद नहीं समझ रहे हैं जिसका खामियाजा ईमानदारी से पत्रकारिता करने वालों को भुगतना पड़ रहा है। अब यदि पॉलिसी आती है तो कईयों को बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा। लेकिन सरकार इस बात को क्यों नजरअंदाज कर रही है, ये समझ से परे है।
फिर भी एक उम्मीद है कि देर सवेर ही सही सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएगी और निराश हो चुके पत्रकारों को निर्भीक रूप से लोकतंत्र के इस पर्व में अपना महती योगदान देने के लिए प्रेरित करेगी, ये तभी हो सकेगा जब निष्पक्ष पॉलिसी लाई जाएगी।