IMG_20220716_192620
IMG_20220716_192620
previous arrow
next arrow

विशेष- मकर संक्रांति पर सूर्य व शनि का साथ “सत्ता के बड़े नेताओं” पर भारी, राजनीतिक क्षेत्र में मचेगी उथल-पुथल, पंडित डोगरा से जानें मकर संक्रांति का मुहूर्त

मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को : पंडित डोगरा

एप्पल न्यूज़, शिमला

मकर संक्रांति पर इस साल लोग दो तिथियों को लेकर असमंजस में हैं।अपने संशय को दूर करने के लिए यह जान लें कि मकर संक्रांति तब शुरू होती है जब सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में पहुंचते हैं। इस बार सूर्य देव 14 जनवरी की दोपहर 2:27 बजे पर गोचर कर रहें हैं‌।
वशिष्ठ ज्योतिष सदन के अध्यक्ष पंडित शशिपाल डोगरा के अनुसार इस मकर संक्राति पिता (सूर्य) का पुत्र (शनि) के घर में आना राजनीतिक क्षेत्र में काफी उथल-पुथल मचाएगा। सूर्य और शनि एक साथ जब भी आए हैं देश की राजनीतिक हलचल ही बढ़ाया है।

सूर्य देव का शनि देव के साथ होना देश के राजनेताओं के लिए भारी पड़ता दिख रहा है। इन दो ग्रहों का एक साथ आना राष्ट्रीय स्तर पर फेरबदल के योग बना रहा है। इसके साथ साथ किसी बड़े नेता के लिए श्मशान योग भी बना रहा है।

पंडित डोगरा ने बताया कि सूर्य अस्त से पहले यदि मकर राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं, तो इसी दिन पुण्यकाल रहेगा। 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल विशेष महत्व रखता है।

मकर संक्रांति मुहूर्त-:

पंडित डोगरा के अनुसार मकर संक्रांति का पुण्यकाल मुहूर्त सूर्य के संक्रांति समय से 16 घटी पहले और 16 घटी बाद का पुण्यकाल होता है। इस बार पुण्यकाल 14 जनवरी को सुबह 7:15 बजे से शुरू हो जाएगा, जो शाम को 5:44 बजे तक रहेगा।

ऐसे में मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाया जाएगा। इस दिन स्नान, दान, जाप कर सकते हैं। वहीं स्थिर लग्न यानि महापुण्य काल मुहूर्त की बता करें तो यह मुहूर्त 9:00 बजे से 10:30 बजे तक रहेगा।

पंडित डोगरा ने बताया कि शुक्रवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति है। सूर्य के उत्तरायण का दिन। शुभ कार्यों की शुरुआत। इस दिन नदियों में स्नान और दान का बहुत महत्व बताया गया है।

इस दिन से देश में दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है। मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी खूब है।

मान्यता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी।


जानिए इस त्योहार पर खिचड़ी की महत्ता के बारे में…
इस दिन गुड़, घी, नमक और तिल के अलावा काली उड़द की दाल और चावल को दान करने का विशेष महत्व है। घर में भी भोजन के दौरान उड़द की दाल की खिचड़ी बनाकर खायी जाती है।

तमाम लोग खिचड़ी के स्टॉल लगाकर उसका वितरण करके पुण्य कमाते हैं। इस कारण तमाम जगहों पर इस त्योहार को भी खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इससे सूर्यदेव और शनिदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है।


ये कथा है प्रचलित

कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी। बताया जाता है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे।

उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी। ये झटपट तैयार हो जाती थी। इससे योगियों का पेट भी भर जाता था और ये काफी पौष्टिक भी होती थी। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा।

खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रान्ति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और उस दिन खिचड़ी का वितरण किया। तब से ​मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा की शुरुआत हो गई।

मकर संक्रान्ति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है। इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और लोगों में इसे प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।

Share from A4appleNews:

Next Post

ब्रेकिंग- हिमाचल में भारी प्रशासनिक फेरबदल, 3 IAS और 30 HAS अधिकारियों के तबादले, SDM भी बदले, देखें पूरी सूची

Thu Jan 13 , 2022
एप्पल न्यूज़, शिमला

You May Like

Breaking News