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हिमाचल में पटवारी-कानूनगो की हड़ताल जारी, कामकाज ठप, “स्टेट कैडर” का विरोध क्यों…?

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एप्पल न्यूज, शिमला

हिमाचल प्रदेश में पटवारी और कानूनगो संघ स्टेट कैडर प्रणाली लागू करने के सरकार के फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं। इस फैसले के खिलाफ वे हड़ताल पर चले गए हैं, जिससे राजस्व विभाग का कामकाज ठप हो गया है और जनता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

क्या है मामला?

राजस्व विभाग के अंतर्गत आने वाले पटवारी और कानूनगो फिलहाल जिला स्तर पर तैनात होते हैं और उनकी पदोन्नति और तबादले भी जिला प्रशासन के अधीन होते हैं। लेकिन स्टेट कैडर लागू होने पर ये सभी कर्मचारी पूरे प्रदेश के अधीन आ जाएंगे, जिससे उनकी पदोन्नति, तबादले और अन्य प्रक्रियाओं में बदलाव होगा।

सरकार का कहना है कि स्टेट कैडर से प्रशासनिक कार्यों में सुधार होगा, ट्रांसफर-पोस्टिंग पारदर्शी होगी और पदोन्नति की प्रक्रिया सुव्यवस्थित होगी। लेकिन पटवारी-कानूनगो महासंघ का कहना है कि यह फैसला उनके करियर ग्रोथ के लिए नुकसानदायक है, इसलिए वे इसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करेंगे।


पटवारियों और कानूनगो की आपत्तियां

1. पदोन्नति पर असर पड़ेगा

पटवारी और कानूनगो संघ का कहना है कि स्टेट कैडर लागू होने से उनकी पदोन्नति की प्रक्रिया प्रभावित होगी। अभी जिला स्तर पर ही प्रमोशन और सीनियरिटी का निर्धारण होता है, लेकिन स्टेट कैडर लागू होने से पूरी प्रक्रिया राज्य स्तर पर चली जाएगी, जिससे सीनियर कर्मचारियों की पदोन्नति में देरी हो सकती है।

2. तबादला नीति में बदलाव

फिलहाल पटवारी और कानूनगो अपने जिले में ही कार्यरत रहते हैं, लेकिन स्टेट कैडर लागू होने पर सरकार उन्हें पूरे प्रदेश में कहीं भी ट्रांसफर कर सकती है। इससे स्थानीय प्रशासन से उनका तालमेल प्रभावित हो सकता है और उन्हें परिवार से दूर दूसरे जिलों में जाना पड़ सकता है।

3. बुनियादी सुविधाओं की कमी

पटवारी और कानूनगो का कहना है कि सरकार स्टेट कैडर लागू कर रही है, लेकिन पटवारखानों की हालत बहुत खराब है।

  • इंटरनेट और वाईफाई की सुविधा नहीं है।
  • पुराने और खराब लैपटॉप/कंप्यूटर कार्य में बाधा डालते हैं।
  • पटवारखाने किराए की जगहों पर चल रहे हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं (जैसे बिजली, शौचालय आदि)।

4. सरकार ने उनकी सहमति नहीं ली

संयुक्त पटवारी-कानूनगो महासंघ का कहना है कि उन्होंने कभी स्टेट कैडर को स्वीकार नहीं किया। सरकार दावा कर रही है कि यह फैसला कई बैठकों के बाद लिया गया, लेकिन महासंघ के महासचिव चंद्र मोहन का कहना है कि उन्होंने कभी भी स्टेट कैडर के लिए हामी नहीं भरी थी।

5. पहले ही सरकार को कर चुके थे आगाह

संघ का कहना है कि 16 अगस्त 2024 को सरकार को पत्र लिखकर चेतावनी दी गई थी कि यदि स्टेट कैडर लागू किया जाता है, तो वे हड़ताल पर चले जाएंगे। बावजूद इसके सरकार ने यह फैसला लिया, जिससे वे अब मजबूरन हड़ताल कर रहे हैं।


सरकार का पक्ष: स्टेट कैडर क्यों जरूरी?

1. जनहित में लिया गया फैसला

राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि पटवारी और कानूनगो को स्टेट कैडर में लाने का फैसला पूरी तरह जनहित में लिया गया है। सरकार का मानना है कि इससे प्रशासनिक व्यवस्था ज्यादा सुचारू होगी और कर्मचारियों की तैनाती और प्रमोशन की प्रक्रिया पारदर्शी हो जाएगी।

2. समस्याओं के समाधान की कोशिश

मंत्री ने कहा कि पटवारी-कानूनगो संघ की कई मांगों को पहले ही पूरा किया जा चुका है, और बाकी समस्याओं को हल करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

  • खराब कंप्यूटर और लैपटॉप को दुरुस्त करने के आदेश दिए जा चुके हैं।
  • जहां कंप्यूटर-लैपटॉप नहीं हैं, वहां नई खरीद प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।
  • पटवारखानों की बुनियादी समस्याओं पर विचार किया जा रहा है।

3. हड़ताल से जनता को नुकसान

सरकार का कहना है कि हड़ताल की वजह से राजस्व कार्य ठप पड़ गया है, जिससे आम जनता को काफी परेशानी हो रही है।

  • खरीद-फरोख्त के दस्तावेजों पर रोक लग गई है।
  • भूमि रिकॉर्ड और अन्य प्रशासनिक कार्य अटक गए हैं।
  • गांवों में लोगों को प्रमाणपत्र और सरकारी सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं।

मंत्री ने साफ कहा कि यदि पटवारी-कानूनगो हड़ताल खत्म नहीं करते हैं, तो सरकार उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी।


आगे क्या हो सकता है?

  • सरकार और पटवारी-कानूनगो संघ के बीच बातचीत की संभावना है।
  • सरकार कुछ मांगें मान सकती है, लेकिन स्टेट कैडर वापस लेने के लिए तैयार नहीं दिख रही।
  • यदि हड़ताल लंबी चली, तो सरकार वैकल्पिक व्यवस्थाएं लागू कर सकती है या हड़ताल करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है।

यह विवाद सरकार की नीतियों और कर्मचारियों के हितों के टकराव का उदाहरण है। जहां सरकार इसे प्रशासनिक सुधार का हिस्सा बता रही है, वहीं पटवारी और कानूनगो इसे अपने करियर पर खतरा मान रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार हड़ताल को कैसे समाप्त करवाती है और क्या कोई बीच का रास्ता निकलता है या नहीं।

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