एप्पल न्यूज, शिमला
कुछ महीने पहले, शिमला की गलियों में चलते हुए मैंने देखा — सड़कों के किनारे बिखरे पड़े थे पेड़ों के टूटे तने और सूखी शाखाएँ।
ये वही टुकड़े थे जो प्राकृतिक आपदाओं के दौरान गिर जाते हैं — और फिर बेकार समझकर छोड़ दिए जाते हैं।
फिर एक दिन, बच्चों को इन्हीं लकड़ियों के पास खेलते देखा। वही पल था जब यह ख्याल आया:
क्या वाक़ई ये टुकड़े बेकार हैं? या हमें सिर्फ़ उन्हें देखने का नज़रिया बदलने की ज़रूरत है?
यहीं से शुरू हुआ एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण बदलाव — “अनचाहे को अनमोल” बनाने की यात्रा।

आज मुझे गर्व है कि शिमला में मॉल रोड, लेडीज पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर पुरानी लकड़ी से बनी सुंदर व उपयोगी सीटें लोगों के लिए बैठने का सहारा बनी हैं।
ये सिर्फ़ बेंच नहीं हैं — ये एक सोच है:
1) कचरा प्रबंधन:
हर बेंच, एक ऐसे लकड़ी के टुकड़े से बनी है जो लैंडफिल में जाता — अब वह प्रकृति का हिस्सा बना है।
2) संसाधन बचत:
नई लकड़ी काटने की बजाय हमने पुरानी को नया जीवन दिया — यही सच्चा सतत विकास है।
3) जिम्मेदार पर्यटन:
जो सैलानी शिमला आते हैं, उन्हें अब ऐसी जगह बैठने को मिलती है जो पर्यावरण के साथ समझदारी का प्रतीक है।
4) स्थानीय हुनर को प्रोत्साहन:
इन सभी बेंचों को शिमला के ही कारीगरों ने अपने हाथों से गढ़ा है — यह हमारी लोककला और श्रम को सम्मान देने की कोशिश है।
हर बार जब आप उन बेंचों पर बैठते हैं — एक कप कॉफी के साथ, किसी मित्र के साथ — आप अनजाने में एक बहुत बड़ी सोच का हिस्सा बनते हैं।
शिमला को “हरा-भरा मुकुट” पहनाए रखना हम सब की जिम्मेदारी है।
यह पहल उसी दिशा में उठाया गया एक छोटा लेकिन ठोस क़दम है — जहाँ वेस्ट सचमुच वेल्थ बनता है।

अगर आपके पास भी पुरानी, टूटी लकड़ी है — हमें बताइए।
हम उसे शिमला की खूबसूरत यादों में बदल देंगे।
आइए, मिलकर गढ़ें एक हरित, संवेदनशील और आत्मनिर्भर शिमला।
प्रकृति में कुछ भी बेकार नहीं होता — बस नज़र चाहिए, विचार चाहिए।
मेयर शिमला सुरेन्द्र चौहान कहते हैं “कुछ महीने पहले, मैंने देखा कि शिमला की कई सड़कों के किनारे पड़ी लकड़ी के टुकड़े —जो कभी पेड़ों की शाखाएँ या तने थे, ये तने मुख्यतया आपदा के दौरान, गिरे पेड़ों के थे, और उसमें भी वह लकड़ी जो कहीं इस्तेमाल में नहीं आती— इन्हें बेकार समझकर छोड़ दिए जाता है।”
एक दिन, बच्चों को उन्हीं लकड़ियों के पास खेलते देखा, तो लगा: क्यों न इन ‘अनचाहे’ टुकड़ों को ‘अनमोल’ बनाया जाए?
आज, मुझे गर्व है कि हमने यही किया! मेरे परिवार जनों, मॉल रोड और शिमला के विभिन्न पार्कों में अब पुरानी लकड़ी को नया जीवन देकर बैठने की जगहें बनाई गई हैं। ये सीटें सिर्फ़ आराम नहीं देतीं—बल्कि कचरा प्रबंधन, संसाधनों का नैतिक उपयोग, और जिम्मेदार पर्यटन का संदेश भी देती हैं। ♻️
जब हम एक पुराने देवदार के तने को सैंकड़ों पर्यटकों और शिमला वासियों की मुस्कान का साथी बनाते हैं, तो समझ आता है कि “प्रकृति का कोई भी हिस्सा बेकार नहीं होता—बस उसे सही नज़रिए से देखने की ज़रूरत है।” यह पहल न सिर्फ़ कचरे को कम करती है, बल्कि शिमला की हरित पहचान को और मजबूत करती है।
अगली बार जब आप मॉल रोड पर बैठें या लेडीज पार्क में चाय या कॉफी की चुस्की लें, तो याद रखिए—यह सीट कभी किसी पेड़ की टूटी हुई डाल थी, जिसे हमने समुदाय और पर्यावरण के लिए फिर से जीवित किया।
आइए, हम सब मिलकर शिमला को उसका “हरा-भरा मुकुट” पहनाए रखें! यह छोटा कदम हमें उस दिशा में ले जाएगा, जहाँ वेस्ट शब्द ही वेल्थ में बदल जाए। 🙌
- मेयर, नगर निगम शिमला
“अगर आपके पास भी कोई पुरानी लकड़ी है, तो हमें बताएँ—हम उसे शिमला की यादों में बदल देंगे!”