एप्पल न्यूज, ब्यूरो श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम के पास बैसरन घास के मैदान में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद बुधवार को पूरी कश्मीर घाटी में अभूतपूर्व पूर्ण बंद देखा गया।
इस हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई, जिससे स्थानीय लोगों और समूचे देश में गहरा शोक और आक्रोश फैल गया है।
यह हमला हाल के वर्षों में नागरिकों पर हुए सबसे घातक हमलों में से एक है, और इसका सीधा प्रभाव कश्मीर की पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर पड़ा है।

इस दर्दनाक घटना के विरोध में हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में मुताहिदा मजलिस-ए-उलेमा (MMU) ने बंद का आह्वान किया, जिसे घाटी के प्रमुख व्यापारिक संघों, ट्रांसपोर्ट यूनियनों और नागरिक समाज संगठनों का भी व्यापक समर्थन मिला।
बंद को मिला व्यापक समर्थन
इस बंद को मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने भी समर्थन दिया, जो इस त्रासदी की गंभीरता और व्यापक सामाजिक एकजुटता को दर्शाता है।
बंद के चलते श्रीनगर, बारामुला, अनंतनाग, पुलवामा समेत घाटी के सभी प्रमुख शहरों में दुकानें, शैक्षणिक संस्थान और व्यावसायिक प्रतिष्ठान पूरी तरह बंद रहे। सार्वजनिक परिवहन सड़कों से नदारद रहा, और सामान्य जनजीवन ठहर सा गया।
हालांकि, सुरक्षा व्यवस्था सख्त रही और राजधानी श्रीनगर के संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती की गई, फिर भी घाटी में बंद के दौरान कहीं से भी हिंसा की कोई खबर नहीं आई।
हमले की पृष्ठभूमि और जांच
बताया जा रहा है कि यह हमला शाम के वक्त हुआ, जब पर्यटक बैसरन घास के मैदान में थे। हमलावर घने जंगलों से निकले और अचानक अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। कुछ पर्यटकों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि अन्य ने अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ा।
हमले के बाद सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और पैरा कमांडो की संयुक्त टीमें घटनास्थल और आसपास के जंगलों में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चला रही हैं। इलाके को पूरी तरह घेर लिया गया है और ड्रोन व स्निफर डॉग्स की सहायता ली जा रही है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस हमले को “मानवता पर कलंक” बताया और शोक व्यक्त किया। मेहबूबा मुफ्ती ने कहा कि “यह हमला केवल पर्यटकों पर नहीं, कश्मीर की आत्मा पर है।”
हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक ने भी हिंसा की निंदा करते हुए बंद का आह्वान किया, जो यह दिखाता है कि अब कश्मीर में आतंक के विरुद्ध व्यापक जन समर्थन तैयार हो रहा है।
सवाल जो उठ रहे हैं
इस हमले ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
- क्या पर्यटकों को निशाना बनाकर कश्मीर की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल करने की कोशिश की गई?
- क्या यह हमला घाटी में धीरे-धीरे लौटती सामान्य स्थिति को पटरी से उतारने का प्रयास है?
- सुरक्षा व्यवस्था में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?
उम्मीद की किरण
घाटी में हुए इस पूर्ण बंद से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि अब स्थानीय लोग आतंक और हिंसा के खिलाफ एकजुट हैं। जहां पहले ऐसे बंद अलगाववादी संगठनों द्वारा प्रायोजित होते थे, वहीं इस बार यह बंद नैतिक और मानवीय आधार पर स्वयं समाज द्वारा खड़ा किया गया प्रतीत होता है।
यह घटना जितनी दर्दनाक है, उतनी ही महत्वपूर्ण भी – क्योंकि इसने घाटी को एक नई सोच की ओर मोड़ा है, जिसमें आतंक के खिलाफ एकजुटता, पीड़ितों के प्रति संवेदना, और शांति की पुनः स्थापना का स्पष्ट संदेश छुपा है।