एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन निगम (HPTDC) के 14 होटलों को निजी हाथों में सौंपने के कैबिनेट निर्णय ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस और विवाद को जन्म दे दिया है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में लिए गए इस निर्णय से जहां भाजपा ने सरकार पर तीखा प्रहार किया है, वहीं निगम के चेयरमैन रघुबीर सिंह बाली का मुखर विरोध सरकार के भीतर ही मतभेदों की आहट दे रहा है।
बिना बोर्ड मंजूरी के फैसला, बाली ने उठाए सवाल
रघुबीर सिंह बाली ने शिमला में आयोजित एक प्रेस वार्ता में स्पष्ट रूप से कहा कि इन होटलों को निजी हाथों में देने का कोई प्रस्ताव न तो पर्यटन निगम के बोर्ड में आया, और न ही सरकार को भेजा गया।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह फैसला बिना बोर्ड की जानकारी और अनुमोदन के लिया गया, जो निर्णय प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
बाली ने यह भी दावा किया कि HPTDC ने बीते ढाई वर्षों में अपने संसाधनों से सभी देनदारियां निपटाई हैं, और यदि सरकार ने सहयोग किया होता, तो निगम का टर्नओवर ₹100 करोड़ से बढ़कर ₹200 करोड़ तक पहुंच सकता था।
उन्होंने कहा कि होटलों के जीर्णोद्धार हेतु उन्होंने बार-बार मुख्यमंत्री को पत्र, ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से अनुरोध किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
सियासी गलियारों में गहराते सवाल
इस घटनाक्रम ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के भीतर चल रहे सत्ता संतुलन पर नई बहस छेड़ दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री द्वारा बाली को इस निर्णय प्रक्रिया से दूर रखना केवल प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश भी हो सकता है।
चर्चाएं हैं कि क्या बाली को दरकिनार करना मुख्यमंत्री के विवेक का परिणाम था, या उनके सचिव विवेक भाटिया की सलाह का असर — यह अब राजनीतिक अटकलों का विषय बन गया है।
भाजपा का हमला, कर्मचारी भी मैदान में
विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने इस निर्णय को “हिमाचल ऑन सेल” करार दिया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि राज्य सरकार पर्यटन परिसंपत्तियों को बेचकर राज्य की सांस्कृतिक विरासत और आमजन के हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है।
वहीं, HPTDC कर्मचारी भी अब खुलकर विरोध में उतर आए हैं। उनका कहना है कि न सिर्फ होटलों के निजीकरण का फैसला वापस लिया जाए, बल्कि निगम के मुख्यालय को धर्मशाला स्थानांतरित करने की योजना पर भी पुनर्विचार होना चाहिए।
आगे की राह
रघुबीर सिंह बाली ने सुझाव दिया है कि सरकार को होटलों की वित्तीय व्यवहार्यता का स्वतंत्र अध्ययन कराना चाहिए और उसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय लिया जाए।
उन्होंने कहा कि यदि पारदर्शिता और संवाद को प्राथमिकता नहीं दी गई, तो यह निर्णय राज्य सरकार के लिए नीतिगत और राजनीतिक रूप से महंगा साबित हो सकता है।









