एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के सरकारी स्कूलों में आउटसोर्स आधार पर नियुक्त कंप्यूटर शिक्षकों को बड़ी राहत प्रदान की है। अदालत ने इन्हें वर्ष 2016 से नियमित करने के आदेश दिए हैं।
यह फैसला उन शिक्षकों के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है, जो पिछले दो दशकों से अस्थायी तौर पर सेवाएं दे रहे थे।
न्यायमूर्ति सत्येन वैध की खंडपीठ ने मनोज कुमार शर्मा एवं अन्य शिक्षकों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिए कि 12 सप्ताह के भीतर पूरी नियमितीकरण प्रक्रिया पूरी की जाए। साथ ही, अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता नियमित कर्मचारियों के सभी लाभों के पात्र होंगे।
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में वर्तमान में करीब 1,300 कंप्यूटर शिक्षक आउटसोर्स के माध्यम से कार्यरत हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता लंबे समय से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और सरकार की निष्क्रियता के चलते न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।

दो दशक से जारी लड़ाई
प्रदेश में वर्ष 2001-02 से आईटी शिक्षा की शुरुआत आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से हुई थी। इन शिक्षकों ने लगभग 20–25 वर्षों तक लगातार सेवाएं दीं, लेकिन इन्हें कभी नियमित नहीं किया गया। पीटीए, जीवीयू और पीएटी शिक्षकों को नियमित करने के बावजूद कंप्यूटर शिक्षक उपेक्षित रहे।
वर्ष 2016 में सरकार ने पीजीटी (आईपी) का संवर्ग बनाया और भर्ती नियमों में पांच वर्ष का अनुभव शामिल किया। भर्ती प्रक्रिया शुरू भी हुई, लेकिन बाद में रद्द कर दी गई।
इसके बाद 2024 में प्रवक्ता (कंप्यूटर विज्ञान) के 769 पदों के लिए अधियाचन भेजा गया, जिसमें अधिक आयु सीमा वाले याचिकाकर्ताओं को शामिल नहीं किया गया।
बड़ी राहत, भविष्य के लिए उम्मीद
हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल कंप्यूटर शिक्षकों के लिए आर्थिक और सामाजिक स्थायित्व लेकर आएगा, बल्कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में भी स्थिरता सुनिश्चित करेगा।
लंबे समय से असुरक्षा और असमानता झेल रहे इन शिक्षकों को अब अपने भविष्य को लेकर नई उम्मीदें मिली हैं।






