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निजीकरण की ओर सरकार- कहाँ तक सही…?

एप्पल न्यूज़, कांगड़ा

सारी नौकरी गली सड़ी फ़ाइल को संभालने में गुजर गई अंग्रेजो के समय से चली आ रही नौकरशाही को बदलने की किसी भी पार्टी ने कोशिश नही की अब भी सरकारों को लगता है कि सिस्टम को नही बदला जाए और सीधा हर जगह निजीकरण ही करके इसका हल हो सकता है तो यह भी करके देख लें बह भी ,उसके लिए भी तैयार हैं हम पर निजीकरण कहाँ कहाँ होगा क्या बॉर्डर की सुरक्षा भी निजी हाथों में दे दी जाएगी  क्या सरकारी कर्मचारी की जगह निजी कंपनी बालो की जवाबदेही सरकार के प्रति होगी मुझे नही लगता ऐसा होगा, क्या जन कल्याण योजनाएं निजी कंपनी चला सकती है निजी कंपनी सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए  आगे आती है क्या हिमाचल जैसे राज्यो में पानी या बिजली की सप्लाई से कोई कंपनी मुनाफा कमा सकती है मुझे नही लगता ऐसी जगह पर कोई निजी कंपनी जिम्मेबारी उठाएगी यह सिर्फ रेलवे जैसे विभागों में प्रॉफिट कमाने बाले विभागों में आगे आ सकती है घाटे बाला सौदा करने में निजी कंपनी कभी आगे नही आ सकती आज भी सरकारी कार्यालयों में सुविधाओं का अभाब है केन्ही स्टाफ है तो फर्नीचर नही फर्नीचर है तो स्टाफ नही एक फार्म जारी करना हो तो 4 जगह एंट्री करनी पड़ती है जिससे उपभोगता को परेशानी तो होगी ही और चिढ़ भी होगी उसे यह लगता है हम जानबूझ कर उसे परेशान कर रहे हैं परंतु उसे शायद यह नही पता यह सिस्टम अंग्रेजो के समय से चला आ रहा है जिन्होंने यह सिस्टम बनाया था इसे इंग्लैंड में बदल दिया गया परन्तु भारत मे अभी भी बह सिस्टम ही है  और अब उस सिस्टम को ना  बदल कर सरकार सीधा इसे निजी कंपनी के हाथों में देना चाहती है क्योंकि चमड़ी तो उधड़ेगी आम जनता की इन्हें क्या फर्क पड़ता है पर इस निजीकरण की चक्की में पिसेगा आम आदमी ही।

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लेखक  राजिन्दर मन्हास

नई पेंशन स्कीम कर्मचारी एसोसिएशन के कांगड़ा जिला प्रधान

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