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नैतिकता का लोकतंत्र की राजनीति में बहुत महत्व

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एप्पल न्यूज़

लोकतंत्र की राजनीति मे यदि नैतिकता का विचार भी जिन्दा है तो समझो सब कुछ जिन्दा है। पिछले कुछ दशकों मे समाज मे नैतिक मूल्यों का जबरदस्त ह्रास हुआ है और राजनैतिक क्षेत्र मे भी वह ह्रास देखने को मिल रहा है। खबर है हिमाचल की राजनीति मे एक त्याग पत्र नैतिकता के आधार पर दिया गया है। मै अपनी ओर से कोई टिप्पणी करने की स्थिति मे नही हूँ, परन्तु नैतिकता के विचार को जिंदा रखने वाले सज्जन को हार्दिक बधाई देता हूँ ।

धीरे-धीरे यह विचार समाज से लुप्त हो रहा है और राजनैतिक लोगों की समाज मे प्रतिष्ठा खत्म हो रही है। लेकिन मेरा मानना है कि अगर नैतिकता का विचार जिन्दा है फिर हमने कुछ नही खोया। एक न एक दिन यह विचार नैतिकता को पुनर्जीवित करने मे सफल हो सकता है । इतिहास मे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का नाम अमर है जिन्होंने एक रेल दुर्घटना के चलते रेल मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया था।

आडवाणी जी का जब हवाला केस मे नाम आया तो उन्होंने अध्यक्ष पद और संसद से त्याग पत्र दे दिया था और जब तक उन्होनेे अदालत से क्लीन चिट हासिल नही कर ली तब तक उन्होंने कोई पद सवीकार नही किया। अटल जी को जब दलबदल कर सरकार बचाने की किसी ने सलाह दी तो उनका कहना था-

\”ऐसे अनैतिक तरीके से बनी सरकार को मै चिमटे से छूना भी पंसद नही करूँगा\”

परन्तु जब समाज मे गिरावट आई तो राजनीति मे गिरावट का दौर आना भी स्वाभाविक था।

1982 मे हिमाचल प्रदेश मे भाजपा की 29 सीटें और कांग्रेस की 31 सीटें आई थी। कुछ निर्दलीय विधायक भी जीत कर आए थे। कुछ लोगों ने तोड़ फोड़ से सरकार बनाने की सलाह दी थी। परन्तु शांता कुमार जी ने नैतिकता का हवाला देते हुए उनकी सलाह मानने से इंन्कार कर दिया था। इससे पहले भी नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र देने वाले लोगों मे कांग्रेस के श्री पवन बंसल, श्री सुरेश कलमाड़ी, श्री बंगारू लक्ष्मण और श्री ए राजा शामिल है। राजनीति मे नैतिकता पुनर्जीवित हो इसके लिये बहुत शुभकामनायें।

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(भ्रष्टाचार के फन को कुचलना होगा मुख्यमंत्री जी)

हिमाचल के स्वास्थ्य विभाग के पूर्व निदेशक को आज 5 दिन के पुलिस रिमांड पर भेजने का समाचार है। अभी दोनों वार्ता करने वालो के रोल और आॅडियो वायरल मे किसका हाथ है इसकी कोई आधिकारिक पुष्टी नही हुई। निदेशक की पत्नी ने अपने पति को मोहरा बनाये जाने का आरोप जरूर लगाया है। पृथ्वी सिंह का एक बयान भी सोशल मीडिया पर पर वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास किया है।

कौन सच्चा है, कौन नहीं इसका निर्णय मिडिया या सोशल मिडिया पर नही हो सकता है। इसके लिए तो निष्पक्ष जांच ही एक विकल्प है। जांच एजेंसी की कार्य पद्धति सन्देह के दायरे से बाहर होनी चाहिए। कानून सम्मत जांच अगर होगी तो उसमे बड़ा और छोटा एक समान होगा। विवेचना और जांच की प्रगति की सबको इतंजार भी करनी होगी और नजर भी रखनी होगी। मुख्यमंत्री जी ने केस सतर्कता विभाग को सौंप जो त्वरित कार्यवाही की है वह अति प्रशंसनीय है।

मै पिछले 40 वर्षों से सार्वजिनक जीवन मे हूँ तथा सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र मे सक्रिय हूँ। प्रधानमंत्री कार्यालय ने जिस प्रकार इस घटना का संज्ञान लिया है वह भी आश्चर्यचकित कर देने वाला है। मिडिया और सोशल मिडिया से मिली जानकारी के अनुसार 24 तारीख को किसी जागरूक नागरिक द्वारा एक शिकायत प्रधानमंत्री जी के शिकायत पोर्टल पर दर्ज की जाती है और पी एम ओ तुरंत संज्ञान लेते हुए उसकी जानकारियां जुटाने और जांच पर नजर रखने के लिए अम्बुज शर्मा को तैनात कर दिया जाता है।

1983 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शर्मा जी एक योग्य अधिकारी के तौर पर जाने जाते है। वह बहुत से अवार्ड अपने नाम शिक्षा प्राप्ति और सेवा के दौरान कर चुके हैं। वह तमिलनाडु कैडर के अधिकारी है। आजकल आपको रिटायरमैंट के बाद पी एम ओ मे तैनाती दी गई है। मेरे विचार मे सतर्कता विभाग जहां कानूनी दृष्टिकोण से आपराधिक मामले की जांच करेगा वंही पी एम ओ अधिकारी एक निष्पक्ष जांच को सुनिश्चित करने के अतिरिक्त इस केस के राजनैतिक नतीजे की भी समीक्षा कर प्रधानमंत्री जी को रिपोर्ट सौंप सकते है।

जब भी किसी मामले मे किसी राजनेता का नाम जुड़ता है जैसा मिडिया इस मामले मे जोड़ रहा है तो उस मामले को जहां कानूनी तौर पर परखना जरूरी है वंही उसे नैतिक तौर पर परखना भी अति आवश्यक है। पी एम ओ के प्रतिनिधि सारे मामले को नैतिकता की कसौटी पर भी परखेगें ऐसी उनसे अपेक्षा है।

लेखक

महेंद्र नाथ सोफत

पूर्व मंत्री व वरिष्ठ राजनेता

सोलन

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