एप्पल न्यूज़, शिमला
नए भारत के निर्माण में आगामी 3 अक्तुबर का दिन एतिहासिक बनने जा रहा है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल प्रदेश में समुद्र तल से 10 हजार फीट से अधिक उंचाई पर बनी विश्व की सबसे लम्बी 9.02 किलोमीटर अटल टनल रोहतांग को देशवासियों को समर्पित करेंगे। तब अटल टनल रोहतांग एक अटल सत्य बनेगी। इस टनल की कहानी देश की सुरक्षा, एकता और भौगोलिक जटिलता को वश में करके स्वाभिमान स्थापना के उत्कर्ष की है। इस टनल के खुलने के बाद यहां के लोगों को वास्तविक आजादी महसूस होगी। पहले रोहतांग मार्ग पर बर्फबारी के कारण आवागमन के सारे रास्ते बंद हो जाते थे और यहां के लोग 6 महीने के लिए शेष दुनिया से कट जाते थे। यह टनल भारत के उभरते, विकसित होते और समावेशी विकास की कहानी भी है। इस टनल के अटल टनल बनने तक की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है।
सामरिक महत्व
सन् 1954 से ही चीन युद्ध की तैयारी कर रहा था। उसने अपने नक्शों मे भारतीय सीमा का काफी भाग अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाया था। भारत की सीमा तक चीन ने पक्की सड़कों का निर्माण कर लिया था। अतः उसे सैन्य सामान तथा रसद पहुँचाने मे कोई कठिनाई नही हुई। भारत की सीमा पर उसके सैनिकों का जबर्दस्त जमाव था। युद्ध की दृष्टि से चीन की स्थिति सुदृढ़ थी। चीन पहाड़ी पर था, वह पहाड़ की ऊँचाईयों से नीचे मौजूद भारतीय सेना पर प्रहार कर सकता था। भारत सरकार द्वारा 1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान मिली हार के कारणों को जानने की कोशिश की गई तो पता लगा कि हार का कारण चीनी सीमा पर जवानों को रसद तथा समय पर सहायता हेतु और सैनिकों का न पहुंच पाना था। इसके बाद ऐसे मार्ग की कल्पना की गयी थी जो समय पर रसद और सेना की पहुंच मनाली से लेह तक करवा सके। इसके बाद 1999के कारगिल युद्ध के दौरान भी कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के जवानों द्वारा श्रीनगर-लेह मार्ग पर गुजर रही सेना के वाहनों और जवानों को भारी नुकसान पहुंचाया गया। उस समय मनाली-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग-3 से सेना और रसद को कारगिल पहुंचाया गया। उस समय मनाली से लेह तक पहुंचने के लिए करीब 45 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी, जिससे न केवल अतिरिक्त समय गंवाना पड़ता था बल्कि शुन्य के नीचे तापमान होने के चलते सेना को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इन सभी कठिनाईयों को देखते हुए मनाली और लाहौल के बीच रोहतांग में टनल बनाने का प्रारूप तैयार हुआ। अब अटल टनल रोहतांग के निर्माण से उन सभी परेशानियों का अंत हुआ है। कारगिल युद्ध के बाद सीमाओं की सुरक्षा और सैन्य रणनीति की दृष्टि से इसका निर्माण आवश्यक हो गया था।
मूर्तरूप देने की प्रक्रिया
अटल टनल रोहतांग के निर्माण की प्रक्रिया पर जब हम नजर दौड़ाते हैं तो हम पाते हैं कि रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्व की सुरंग बनाए जाने का ऐतिहासिक फैसला 3 जून, 2000 को लिया गया, जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। टनल के दक्षिणी हिस्से को जोड़ने वाली सड़क की आधारशिला 26 मई 2002 को रखी गई थी। मई 1990में प्रोजेक्ट के लिए अध्ययन शुरू किया गया। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के अधिकारियों के मुताबिक, प्रोजेक्ट को 2003 में अंतिम तकनीकी स्वीकृति मिली। जून 2004 में परियोजना को लेकर भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट पेश की गई। 2005 में सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी की स्वीकृति मिलने के बाद 2007 में निविदा आमंत्रित की गई। दिसंबर 2006 में परियोजना के डिजाइन और विशेष विवरण की रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया। जून 2010 में यह सुरंग बनाने का काम शुरू कर दिया गया। इस परियोजना को फरवरी 2015 में ही पूरा होना था, लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें देरी होती रही। मौसम की जटिलता और पानी के कारण कई बार निर्माण कार्य बीच में ही रोकना पड़ा। टनल को बनाने के लिए खुदाई का काम 2011 में ही शुरू हो गया बीआरओ को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पहले 2015 में इस प्रोजेक्ट की समय सीमा थी। बाधाओं और चुनौतियों के कारण यह समय सीमा आगे खिसकती रही, लेकिन बीआरओ ने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया। इन चुनौतियों में निर्माण के दौरान सेरी नाला फॉल्ट जोन, जो तकरीबन 600 मीटर क्षेत्र का सबसे कठिन स्ट्रेच शामिल था। यहां एक सैकेंड में 140 लीटर पानी निकलता था और साथ में जहरीले मकड़े भी, ऐसे में निर्माण बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण था। यह टनल पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के रोहतांग दर्रा में निर्मित है जहां करीब ही ब्यास नदी बहती है और दो-तीन नाले और भी हैं इससे भी पानी बहुत आ जाता था। टनल के दोनों सिरों का मिलान 15 अक्तूबर, 2017 में हुआ। शुरुआत में टनल की लंबाई 8.8 किलोमीटर नापी गई थी, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अब इसकी पूरी लंबाई 9.02 किलोमीटर है। इसे बनाने में लगभग 3,000 संविदा कर्मचारियों और 650 नियमित कर्मचारियों ने 24 घंटे कई पारियों में काम किया।
अनुमानित लागत से 800 करोड़ कम खर्च में निर्माण
अटल सुरंग के निर्माण पर करीब 4 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत व्यय होने थी, लेकिन इसमें 800 करोड़ रूपयों की बचत करके ये टनल 3200 करोड़ रूपए में ही पूरी हो गयी जो कि अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। शुरुआती चरण में टनल की निर्माण लागत लगभग 1400 करोड़ रुपये आंकी गई थी। अटल सुरंग के ठीक ऊपर स्थित सेरी नदी के पानी के रिसाव के कारण टनल के निर्माण में लगभग 5 साल की देरी हुई है। पिछले 10 साल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर पीरपंजाल पर्वत श्रृंखला में बीआरओ की देखरेख में एफकॉन स्ट्रॉबेग व समेक कंपनी 12 महीने 24 घंटे इस महत्वपूर्ण टनल को पूरा करने में जुटे रहे। चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा-एलओसी तक समय और दूरी कम करने के साथ-साथ साल में 6 महीने देश व दुनिया से कटी रहने वाली घाटी लाहौल अब सालभर जुड़ी रहेगी। सर्दियों में यहां तापमान माइनस 30डिग्री तक चला जाता है तो आप समझ लीजिये कि बीआरओ के जांबाज इंजीनियरों और कर्मचारियों को इसे बनाने में कितनी कठिनाई हुई होगी। इस टनल को बनाने में 8 लाख क्यूबिक मीटर पत्थर और मिट्टी निकाली गई थी। जहाँ गर्मियों में यहां पर पांच मीटर प्रति दिन खुदाई हो जाती थी वहीं सर्दियों में यह घटकर आधा मीटर ही हो पाती थी।
टनल के नीचे बनी है एक और टनल
अटल रोहतांग टनल निर्माण में प्रयुक्त ऑस्ट्रेलियन तकनीक का इस्तेमाल कर सही वेंटिलेशन बनाया गया है। यहां सेंसर्स और हर 60 मीटर पर सीसीटीवी कैमरा भी लगाए गए हैं। पॉल्यूशन को कंट्रोल करने के लिए भी सेंसर्स का इस्तेमाल किया गया है। अगर सुरंग में ज्यादा वायु प्रदूषण हो जाता है तो इसे 90 सेकंड के भीतर ही कंट्रोल किया जा सके ऐसा सिस्टम लगाया गया है। अटल टनल रोहतांग अति आधुनिक तकनीक से तैयार हुई है। इस टनल के ऊपर धुआं निकालने के लिए भी व्यवस्था की गई है। वहीं टनल के नीचे भूमिगत आपातकालीन टनल तैयार की गई है जिसे हर 500 मीटर के बाद मुख्य टनल से जोड़ा गया है। अटल टनल के अंदर अगर किसी गाड़ी में आग लग जाती है तो लोगों को आपातकालीन टनल से रेस्क्यू किया जा सकता है। घटना वाली जगह को दोनों ओर से कंट्रोल किया जाएगा और आग के धुएं को सबसे ऊपर वाली टनल से बाहर निकाला जाएगा। सबसे नीचे वाले भाग में पानी के लिए टनल उससे ऊपर आपातकालीन रास्ता फिर यातायात टनल और सबसे ऊपर धुआं बाहर निकालने के लिए व्यवस्था की गई है। इसके अलावा टनल के भीतर बी.एस.एन.एल. द्वारा बेहतरीन 4जी नेटवर्क सुविधा उपलब्ध करवाई गई है।
लेह-लद्दाख पहुंचने के अब होंगे दो रास्ते
समुद्रतल से 10 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित अटल टनल रोहतांग से मनाली की लेह से दूरी करीब 45 किलोमीटर तक कम होगी। इसके साथ ही जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के लोग सर्दी के मौसम में 12 महीने शेष दुनिया से जुड़ें रहेंगे। मनाली-लेह मार्ग में रोहतांग दर्रे के नीचे बनकर तैयार होने वाली इस अटल रोहतांग टनल से आवाजाही से सेना को सीमा तक पहुंचने में आसानी होगी। इससे बडे वाहन चार घंटे के बजाए मात्र 45 मिनट में कोकसर पहुंचने लगेंगे। वहीं सेना के वाहन एक दिन में ही लेह पहुंच जाएंगे। टनल जम्मू और कश्मीर में रणनीतिक सीमाओं तक सेना की गतिशीलता में तेजी लाएगा। इसका बड़ा फायदा सैन्य बलों को होगा। अब तक सर्दियों के दिनों में संपर्क और उन तक राशन पहुंचाना एक बड़ी चुनौती रहती थी। टनल के खुल जाने से सेना की पूर्वी लद्दाख को जाने वाली सप्लाई लाइन अब साल भर खुली रहेगी।
लेह मार्ग पर चार प्रस्तावित टनलों के निर्माण से आसान होगी राह
रोहतांग के बाद अब बारालाचा दर्रा के नीचे 11.25, ला चुगला में 14.77 व तंगलंगला में 7.32 किलोमीटर लंबी सुरंगे बन रही है। इससे रोहतांग सुरंग से करीब 45 किलोमीटर, बारालाचा से 19, लाचुंगला से 31 और तंगलंगला से 24 किलोमीटर दूरी कम होगी। सभी सुरंगे बनने के बाद मनाली-लेह मार्ग की दूरी करीब 120 किलोमीटर कम हो जाएगी। इस समय मनाली से लेह पहुंचने के लिए 14 घंटे का समय लगता है। रोहतांग टनल दो घंटे का सफर कम करेगी, जबकि प्रस्तावित टनलों के बन जाने से लेह का सफर 10 घंटे का ही रह जाएगा। पूर्वी लद्दाख पहुंचने के लिए अब दो रास्ते होंगे। पहला रास्ता कुल्लू मनाली से लेह-लद्दाख के लिए होगा जो इस टनल से जुड़ेगा और दूसरा श्रीनगर होकर जोजिला पास से जाने वाली सड़क के लिए होगा। जोजिला पास से जाने वाली सड़क नवंबर से मई तक पूरी तरह बंद हो जाती है जिससे सैनिकों के लिए जरूरत का अन्य सामान सर्दियों से पहले ही उन तक पहुंचाना पड़ता है। इस टनल के जरिए हथियार, टैंक और तोप भी आसानी से सैनिकों तक पहुंचाए जा सकते हैं।
खराब मौसम में भी नहीं रूकेगा यातायात
अटल टनल रोहतांग में एवलांच कंट्रोल स्ट्रक्चर बनाया गया है जो खराब मौसम में भी काम करेगा और लोगों को सुरक्षित रखेगा। रोहतांग पास में एवलांच और लैंडस्लाइड का खतरा बना रहता है और ऐसे में ये सुरंग कई प्राकृतिक आपदाओं को झेलने के लिए डिजाइन की गई है।
आर्थिक गतिविधियों का होगा विस्तार, पर्यटन गतिविधियों को लगेंगे पंख
अटल टनल बनने के बाद लाहौल-स्पिति जिला के आर्थिक, सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आने वाला है। पहले लाहौल घाटी में 6 महीने के लिए आवाजाही बंद हो जाती थी परन्तु अब वर्षभर आवागमन की सुविधाओं से आर्थिक गतिविधियों का विस्तार होगा। कृषि और बागवानी के लिए यहां विशेष योजनायें बनायी जा रही हैं। आवाजाही से उत्पादित माल के क्रय-विक्रय की गतिविधियां शुरू होंगी जिससे यहां के लोगों की आर्थिकी मजबूत होगी। लाहौल-स्पिति में करीब 5हजार बीघा भूमि पर आलू, मटर, गोभी और लिली के फूलों की खेती की जा रही है। जौ का उत्पादन किन्नौर और लाहुल-स्पीति में अधिक होता है। हिमाचल में जौ के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत लाहुल-स्पीति तथा किन्नौर जिला में उत्पादित होता है। अगर लाहौल के सेबों की बात की जाये तो यहां पर 2 हजार बीघा में सेब के बागीचे लगे हुए हैं जो यहां के जनजातीय समाज की आर्थिकी के साधन हैं। यह घाटी अपने आप में अपार सौन्दर्य समेटे हुए है ऐसे में हर मौसम में कनैक्टिविटी में यह सुरंग मद्द प्रदान करेगी। यह सुरंग बन जाने से यहां से वाहनों और पर्यटकों का आवागमन सालभर सामान्य रहेगा। इससे यहां के पर्यटन कारोबार को खूब पंख लगने की उम्मीद जताई जा रही है। इस टनल का फायदा सिर्फ मनाली और लेह वालों को ही नहीं होगा, बल्कि हिमाचल प्रदेश का जनजातीय क्षेत्र लाहौल-स्पीति को भी इससे कई अवसर मिलेंगे। मनाली से लेह लद्दाख का रास्ता इस टनल से आसान हो गया है। अब कृषि, पर्यटन और बागवानी के क्षेत्र में विकास की नयी गाथा लिखी जाएगी। कुल्लू जिले के मनाली में पर्यटक खूब आते हैं। पर्यटक अक्सर वहां से लाहौल-स्पीति के केलंग की घाटियों में भी जाते हैं जहां धार्मिक स्थल है। वहां जाने में 5-6 घंटे लगते थे। पर्यटक अब कम समय में वहां पहुंच सकते हैं। विशेष रूप से फल और सब्जी विक्रेताओं को बहुत फायदा होगा। लाहौल-स्पीति में उत्तम किस्म की सब्जियों की खेती होती है जिसकी हिमाचल प्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्य पंजाब व हरियाणा में अच्छी खासी मांग रहती है। इसके अलावा यहां कई प्रकार की जड़ी-बुटियां भी पैदा होती है। अब यहां के किसानों और बागवानों को उम्मीद है कि वे अपने उत्पाद जल्द ही देषभर के बाजार तक आसानी से पहुंचा सकेंगे और यहां के किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिला करेगा। जबकि पहले सब्जियां समय पर मार्केट नहीं पहुंच पाती थीं और किसानों को मेहनताना भी ठीक नहीं मिल पाता था। यह टनल लाहौल वासियों की जिंदगी में उम्मीदों की किरणें लेकर नए सफर पर निकलने वाला है। रोहतांग के बाद अब शिंकुला और बारालाचा दर्रे पर भी ऐसी ही टनल का निर्माण करने की तैयारी हो रही है।
अब प्रतिदिन लाहौल पहुंचेगा 30 से 40 हजार पर्यटक
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय पर्यटन विभाग के विभागाध्यक्ष चंद्र मोहन परशीरा के अनुसार अटल टनल रोहतांग के निर्माण से प्रतिदिन 30 से 40 हजार पर्यटक पहुंचने की उम्मीद है। गौरतलब है कि 6 फरवरी 2014 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल-एनजीटी ने रोहतांग में आने वाले पर्यटकों की सीमा को नियंत्रित किया था। जिसका आधार वर्ष 2013 में रोहतांग पहंुचने वाले पर्यटकों के 5 से 6 हजार वाहन थे, जिसमें से अधिकतर उन पर्यटकों के वाहन थे जो रोहतांग दर्रा की खूबसूरती को देखने पहुंचते थे। अब इन पर्यटकों के पास इंजीनियरिंग का नायाब नमुना अटल टनल रोहतांग भी बड़े आकर्षण का केंद्र रहेगा। इस तरह प्रतिदिन 70 से 80 हजार पर्यटक टनल से आना-जाना कर सकते है। जो निश्चित रूप से मनाली और लाहौल में पर्यटन की संभावनाओं को बहुत अधिक बढ़ाने वाला है।