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हिमाचल में लागत मूल्य से नीचे बिक रही हैं सब्ज़ियां, सरकार उदासीन, कोविड से लड़ने के लिए कमज़ोर हैं सरकार की तैयारियां-सिंघा

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अपने ही उत्पाद पर लागत मूल्य से भी 5-7 रुपये का घाटा झेल रहे हैं सब्ज़ी उत्पाद, हमारी लड़ाई वक्त के साथ, न संभले तो परिणाम होंगे गंभीर – सिंघा

एप्पल न्यूज़, शिमला
कोविड के समय में जब आम आदमी को दो जून रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है वहीं किसान अपने उत्पाद को पशुओं को खिलाने और गोबर में मिलाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इसका कारण मण्डी में दाम न मिलना है। इस सीज़न में फूलगोभी के दाम 2 रुपये से 7 रुपये तक मिले जबकि इसका लागत मूल्य 10 से 12 रुपये आती है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कोविड महामारी से गुज़रते हुए किसान कितनी परेशानियों व मानसिक तनाव से गुज़र रहा है। दूसरी तरफ से आम उपभोक्ता को बाज़ार में फूलगोभी के 20-25 रुपये प्रति किलोग्राम तक दाम चुकाने पड़ रहे हैं।


फूलगोभी की दुर्दशा के मद्देनज़र हिमाचल किसान सभा ने आने वाली सब्ज़ियों के लिए किसानों को सुरक्षा प्रदान करने और सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। संयुक्त प्रैस वार्ता में हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर, किसान सभा के पूर्व राज्य सचिव एवं विधायक राकेश सिंघा और राज्य कोषाध्यक्ष सत्यवान पुण्डीर ने मांग की है कि कि तुरंत प्रभाव से फुलगोभी तथा कुछ ही समय में तैयार होने वाली अन्य सब्ज़ियों (टमाटर, बंदगोभी मटर, फ्रांसबीन) आदि के लिए न्युनतम समर्थन मूल्य की दर पर खरीद को सुनिश्चित किया जाए। किसान सभा प्रदेश सरकार से अपील करती है कि महीनों की किसानों की मेहनत से खिलवाड़ न किया जाए तथा वाजिब दाम पर खरीद सुनिश्चित की जाए। इस बाबात किसान सभा ने सरकार को ई. ज्ञापन भी प्रेषित किया।
किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ.  कुलदीप सिंह तँवर कहा कि इस महामारी के दौर में जहां एक ओर सरकार को किसानों पर प्रकृति की मार, ओलावृष्टि से हुए नुकसान, मण्डियों तक सही प्रकार से माल न ला पाने से हो रहे नुकसान, बेमौसमी बारिश से खराब हुई फसलों के नुकसान की भरपाई करनी चाहिए थी वहीं सरकार किसानों के प्रति उदासीन और असंवेदनशील बनी हुई है। किसानों की खून-पसीने की मेहनत खेत में सड़ रही है या गोबर में मिली जा रही है मगर सरकार का तन्त्र फसलों के न्युनतम दाम भी किसानों को नहीं दे पा रहा है। 
डॉ. तँवर ने कहा कि यह साफ हो गया है कि किसानी के प्रति असंवेदनशील सरकारी नीतियों का खामियाज़ा प्रदेश के किसानों को लम्बे अर्से से झेलना पड़ रहा है जिसके कारण आज की युवा पीढ़ी इस व्यवसाय को अपनाने के लिए तैयार नहीं है। सरकार कृषि क्षेत्र में लगातार सरकारी निवेश में कटौती करती जा रही है वहीं कृषि उपकरण, बीज, खाद, स्प्रे, कीटनाशक, फफूंदनाशक मंहगे होते जा रहे हैं। डीज़ल के दाम बढ़ने से ट्रांस्पोटेशन का खर्च बढ़ गया है जिससे लगात मूल्य में भी वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप आज किसानों को देशभर में अपने कृषि उत्पाद के लिए न्युनतम समर्थन मूल्य के लिए ज़बरदस्त संघर्ष करना पड़ रहा है।
हिमाचल किसान सभा का मानना है कि सरकार को इस परिस्थिति में वैकल्पिक उपायों को भी बढ़ावा देना चाहिए। सब्ज़ियों की स्थानीय खपत के मद्देनज़र प्रदेश के 50 से अधिक शहरी इकाइयों के स्तर पर विभाग, विपणन बोर्ड व एपीएमसी के माध्यम से बाज़ार की व्यवस्था मुहैया करवाई जाए ताकि गांव के किसान मिलकर अपने उत्पाद को बेच सकें। हिमाचल किसान सभा प्रदेश सरकार से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप की मांग करती है
वहीं राकेश सिंघा ने कहा कि किसान आज भंकर पीड़ा में है। प्रदेश का कोई क्षेत्र नहीं बचा जहां आलावृष्टि ने फसलों को नुकसान न पहुंचाया हो। 23 अप्रैल को हुई बर्फबारी ने भी बागवानों के पौधों को नुकसान पहुंचाया। प्रशासन की ओर से सर्वे भी किया गया मगर राहत के तौर पर एक नया पैसा किसानों को नहीं मिला।
वहीं सिंघा ने कोविड से निपटने के लिए सरकार की तैयारियों पर भी चिंता ज़ाहिर की। सिंघा ने कहा कि सरकार ने समय रहते आपातकाल से निपटने के लिए ढांचा तैयार नहीं किया। वहीं नये प्रोटोकाल में ड्यूटी के बाद क्वारंटीन करने की बाध्यता हटा कर सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों के बोझ को बढ़ाया है। उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके क्षेत्र में स्टाफ नर्स द्रोपता का मंगलवार को निधन हो गया। द्रोपता लगातार 16 दिनों तक कोविड में अपनी ड्यूटी देती रही। संक्रमण से उबरने के लिए उसे क्वारंटीन का समय मिलता तो शायद उसकी जान बच जाती। मगर सरकार का नया प्रोटोकाल यह मौका नहीं देता। स्टाफ की गंभीर कमी है। स्टाफ भाग-भाग कर काम कर रहा है। आक्सीज़न सिलेंडर बदलने तक में देरी होती है।
राकेश सिंघा ने कहा कि सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम को वापिस लेकर कालाबाज़ारी करने वालों को बढ़ावा दिया है। इस एक्ट के अभाव में कोविड से बचाव के लिए ज़रूरी वस्तुओं और दवाओं की कालाबाज़ारी हो रही है। सिंघा ने सरकार को आगाह किया कि हम वक्त के साथ लड़ाई लड़ रहे हैं अगर चूक हो गई या वक्त पर न संभले तो परिणाम गंभीर हो सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि 4-5 पंचायतों के कलस्टर बनाकर इस महामारी से निपटने के लिए खाका तैयार किया जाना चाहिए
वहीं वित्त सचिव सत्यवान पुण्डीर ने जानकारी दी कि किसान सभा 26 मई को किसान आन्दोलन के 6 महीने पूरे होने पर किसानों और आम जनता के सवालों को उठाएगी। इसका क्या तरीका होगा इस पर बात में योजना बनाई जाएगी।

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