एप्पल न्यूज़, शिमला
हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने मौजूदा धर्मांतरण रोधी कानून में संशोधन वाले एक विधेयक को शनिवार को ध्वनिमत से पारित किया। जिसमें मौजूदा कानून में सजा बढ़ाने और जबरन या लालच देकर ‘सामूहिक धर्मांतरण’ कराए जाने को रोकने का प्रावधान है.
विधेयक में कारावास की सजा को बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रावधान है. हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 शनिवार को ध्वनिमत से पारित हुआ।
विधेयक में सामूहिक धर्मांतरण का उल्लेख है, जिसे एक ही समय में दो या दो से अधिक लोगों के धर्म परिवर्तन करने के रूप में वर्णित किया गया है।
सीएम जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने शुक्रवार को विधेयक पेश किया था. संशोधन विधेयक में हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को और कठोर किया गया है, जो बमुश्किल 18 महीने पहले लागू हुआ था।
हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 को 21 दिसंबर 2020 को ही अधिसूचित किया गया था। इस संबंध में विधेयक 15 महीने पहले ही विधानसभा में पारित हो चुका था।
साल 2019 के विधेयक को भी 2006 के एक कानून की जगह लेने के लिए लाया गया था, जिसमें कम सजा का प्रावधान था।
अधिनियम धोखाधड़ी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन, शादी या किसी भी कपटपूर्ण तरीके से धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है।
हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 में और अधिक कड़े प्रावधान शामिल किए गए हैं। अब पांच साल की जगह सजा का दस साल का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने कहा की धर्मांतरण प्रदेश में बड़ी समस्या बनता जा रहा है। जिससे आने वाले सालों में हिंदुओ की संख्या कम हो सकती है इसमें अब ये भी प्रावधान किया गया है की जो धर्मांतरण करेगा उसको सरकारी सुविधाएं नही मिलेगी।
साथ ही गैर जमानती धाराओं का प्रावधान भी किया गया है ताकि इस तरह की घटनाओं में रोक लग सके। इससे किसी भी जाति वर्ग के अधिकारों का हनन न हो इसका ध्यान रखा गया है।
वहीं विपक्ष ने कहा कि सरकार ने जल्दबाजी में राजनीतिक लाभ के लिए बिल में संशोधन को सदन में पारित किया है जबकि संशोधन को लेकर सदन के अंदर चर्चा के लिए समय दिया जाना चाहिए था।
वीरभद्र सरकार ने इस धर्मांतरण विधेयक को 2006 में सदन में पारित किया था और आज मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर श्रेय लेने के लिए जल्दबाजी में संशोधन कर रहे हैं।