एप्पल न्यूज, शिमला
अक्सर संस्कारों को सफलता से जोड़ कर देखा जाता है. यानी कि जो व्यक्ति संपन्न परिवार से है ; सफल है ; उस से समाज द्वारा संस्कारी होने की अपेक्षा की जाती है … परन्तु क्या सफलता और संस्कारों का वाकई में कुछ लेना देना है?
आज के युग में तो ऐसा प्रतीत नही होता … cut throught यानी गला काट कर आगे बढ़ने वाली प्रतिस्पर्धा .. मतलब आगे वही जाएगा जो किसी का गला काटने का जज्बा रखता हो …जिस सफलता की सीढ़ी ही गला काटने से शुरू होती हो उस में संस्कारों की जगह कहां रह जाती है ?
हम अक्सर सुनतें है अच्छे घर का लड़का /लड़की परन्तु हम अच्छा घर कहतें किसे हैं ? डॉक्टर / इंजीनियर/ अफसर / ठेकेदार …यानी की आर्थिक रूप से संपन्न …यहां संस्कारी शब्द नही है आर्थिक है … कहीं न कहीं आर्थिक समपंन्नता को संस्कार से जोड़ा जाता रहा है ।
क्या सच में आर्थिक समपन्न लोग ही संस्कारी होतें है ? तो जवाब है न …कदापि नही …हम आज जिनकी आर्थिक संपन्नता देख कर उनके संस्कारी होने के आंकलन कर रहें होतें है उनके परिवार का बिता कल कैसे रहा है इस पर गौर नही करते ।
एक थ्यूरी के अनुसार काल चक्र में पूरे ब्रह्मांड में उठा पटक चली रहती है । निर्धनता से समपंन्नता और समपंन्नता से निर्धनता का चक्र चला रहता है । जिसे आप आज निर्धन देख रहें है पूर्व में वह परिवार सम्पन्न था और जो आज समपन्न है वह कभी निर्धनता में रहा था।
यही कालचक्र है , परन्तु बात जब संस्कारी होने या न होने की हो रही हो तो ये जानना भी अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि आज हम जिसे समपन्न देख कर उनसे संस्कारों की अपेक्षा रख रहें है वह सम्पन्न कैसे हुआ ?
संपन्न होना कहीं से भी संस्कारी होने का पर्याय नही है , और अब जबकि बात कलयुग में संपन्न होने की की हो तो , ये बात भी साफ है किस विधि से संपत्ति अर्जित की गई है, सम्पन्न होने से संस्कार का कोई दूर-दूर तक संबंध नही है।
कलयुग में संस्कारी संपन्न होने से रहा और सम्पन्न संस्कारी होनें से रहा .. इस लिए अच्छे घर का कॉन्सेप्ट बदलें और जिए और जीनें दें।
लेखक- दीपक सुंद्रियाल