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चमचे और चमचों की गाथा

लघु कथा

अंग्रेज जब भारत में आए तो अपने साथ चमचा लेकर आए। उन्हे हाथ से खाना नहीं आता था।

अंग्रेजो ने चमचे के दम पर 200 साल राज किया। जमकर चमचों का इस्तेमाल किया उन्होने।

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बड़े बड़े खिताबों से नवाजा गया चमचों को, लोहे से लेकर सोने-चांदी के हीरे जड़े चमचे तैयार किए गए। साम-दाम-दंड-भेद प्रक्रिया को अपनाया।

चमचों के साथ छुरी कांटे का भी जमकर इस्तेमाल किया और सोने की चिड़िया को खोखला कर दिया। इस दुष्कृत्य में चमचों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अंग्रेज चले गए लेकिन चमचा छोड़ गए। चमचा संस्कृति आजाद भारत की उर्वरा भूमि में बड़ी तीव्रता से पुष्पित पल्लवित हूई।

चमचों ने मालिक बदल दिए, अंग्रेजों के द्वारा इस्तेमाल किए गए चमचों की मांग ज्यादा थी क्योंकि उन्हे राज काज का सारा गुर मालूम था। इसलिए चमचों ने अपनी उपयोगिता को बनाए रखा।

चमचे सर्वव्यापक हैं और सर्वव्याप्त हैं। आप सत्ता के गलियारों में कहीं भी जाएं,हर जगह चमचे तैनात मिलेंगे। अगर आपको कोई सही काम भी करवाना है तो चमचों से ही सम्पर्क साधना पड़ेगा।

कभी भी आपने बिना चमचे की स्वीकृति से काम कराने की कोशिश की तो वे आपका बना बनाया रायता फ़ैला देंगे। कोई काम नहीं हो पाएगा। इसलिए पहले चमचे को साधना जरुरी है।

आजकल विदेश जाने वाले कलमघीसूओं द्वारा चमचे चोरी करने का मामला भी मस्त बिंदास चमचमा रहा है।

साभार– सोशल मीडिया

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