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हिमाचल में वाहनों के “पॉल्यूशन सर्टिफिकेट” के लिए नए नियम, अनिवार्य वीडियोग्राफी और सख्त निगरानी

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एप्पल न्यूज, शिमला

देशभर में बढ़ते वायु प्रदूषण और फर्जी पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (PUC) सर्टिफिकेट जारी करने की शिकायतों को देखते हुए केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय ने वाहनों के पॉल्यूशन सर्टिफिकेट जारी करने की प्रक्रिया में सख्ती बढ़ा दी है।

इन नए नियमों को अब हिमाचल प्रदेश सहित पूरे देश में लागू कर दिया गया है। नए दिशा-निर्देशों के तहत, अब वाहन के मालिक को अपनी गाड़ी मौके पर लानी होगी और जांच के दौरान उसकी वीडियोग्राफी की जाएगी।

नए नियमों से प्रदूषण नियंत्रण की प्रक्रिया अधिक प्रभावी होगी और सड़क पर केवल उन वाहनों को चलने की अनुमति होगी जो पर्यावरण मानकों का पालन करते हैं। यह कदम हिमाचल प्रदेश सहित पूरे देश में वायु गुणवत्ता सुधारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

नए नियमों के प्रमुख बिंदु:

  1. वाहन की अनिवार्य उपस्थिति – अब वाहन मालिक को अपनी गाड़ी उस PUC सेंटर पर ले जाना होगा, जहां सर्टिफिकेट बनवाना है। बिना गाड़ी के सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाएगा।
  2. वीडियोग्राफी अनिवार्य – सर्टिफिकेट जारी करने से पहले वाहन की जांच की जाएगी और पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होगी। इससे प्रमाणिकता बनी रहेगी और फर्जीवाड़े की संभावनाएं कम होंगी।
  3. PUC रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण – हर वाहन की पॉल्यूशन जांच का डेटा और उसकी वीडियोग्राफी रिकॉर्ड में रखी जाएगी। इससे किसी भी गड़बड़ी की जांच कभी भी की जा सकेगी।
  4. फर्जी सर्टिफिकेट पर रोक – कई मामलों में देखा गया था कि वाहन मालिक गाड़ी लाए बिना ही जान-पहचान से पॉल्यूशन सर्टिफिकेट बनवा लेते थे। अब यह संभव नहीं होगा।
  5. सख्त निगरानी और दंड – अगर कोई PUC सेंटर नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

हिमाचल प्रदेश में वाहनों की संख्या और PUC की अनिवार्यता

हिमाचल प्रदेश में कुल 22,43,524 पंजीकृत वाहन हैं, जिनमें 19,25,593 निजी वाहन और 3,17,931 व्यावसायिक वाहन शामिल हैं। इसके अलावा, प्रदेश में 2,811 ई-वाहन भी पंजीकृत हैं। नए नियमों के तहत, हर छह महीने में सभी वाहनों के लिए पॉल्यूशन सर्टिफिकेट बनवाना अनिवार्य होगा।

इस कदम के लाभ:

  • पर्यावरण संरक्षण – बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।
  • भ्रष्टाचार पर लगाम – फर्जी सर्टिफिकेट जारी करने की प्रथा खत्म होगी।
  • वाहन मालिकों में जागरूकता – लोग अपने वाहनों के प्रदूषण स्तर को गंभीरता से लेंगे।
  • पारदर्शिता में वृद्धि – पूरी प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग से किसी भी गड़बड़ी की पहचान आसानी से हो सकेगी।

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