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“पहाड़ से प्रशासनिक सेवा तक का सफर, किन्नौर कामरू के 23 वर्षीय प्रथम याम्बुर बने IAS”

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एप्पल न्यूज, किन्नौर
जिला किन्नौर के सुदूरवर्ती गाँव कामरू से निकलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) तक का सफर तय करने वाले 23 वर्षीय प्रथम याम्बुर आज हिमाचल प्रदेश के हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं।

उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की प्रतिष्ठित परीक्षा पास करते हुए देशभर में 841वीं रैंक हासिल की है।

साधारण पृष्ठभूमि, असाधारण उपलब्धि

प्रथम एक कृषक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता व्यास सुन्दर खेती और बागवानी से जुड़े हैं, वहीं माता राजदेवी एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं।

सीमित संसाधनों के बावजूद परिवार ने शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, जिसका परिणाम आज पूरे प्रदेश के सामने है।

शिक्षा यात्रा: पहाड़ों से दिल्ली तक

प्रथम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सांगला स्थित शिवालिक पब्लिक स्कूल से ग्रहण की, और इसके बाद जवाहर नवोदय विद्यालय, रिकॉन्ग पियो से 10+2 (नॉन-मेडिकल) उत्तीर्ण किया। विज्ञान विषय लेकर पढ़ाई करने के बावजूद उन्होंने आगे चलकर दिल्ली विश्वविद्यालय से कला संकाय में स्नातक किया और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए।

संकल्प और संघर्ष

स्नातक के बाद उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की। पहले प्रयास में ही वर्ष 2024 में UPSC परीक्षा पास कर CISF (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) में कमांडेंट के पद के लिए चयनित हुए। लेकिन उनका लक्ष्य स्पष्ट था—IAS अधिकारी बनना। उन्होंने कमांडेंट पद को स्वीकार नहीं किया और एक बार फिर से पूरी निष्ठा के साथ परीक्षा की तैयारी में जुट गए।

सफलता की ऊँचाई

2024 की दूसरी परीक्षा में उन्होंने पूरे भारत में 841वीं रैंक प्राप्त करते हुए IAS में चयन सुनिश्चित किया। इस सफलता ने न केवल उनके परिवार, गाँव और जिले को गौरवान्वित किया, बल्कि पूरे हिमाचल को भी प्रेरणा दी।

बहुआयामी प्रतिभा के धनी

प्रथम केवल पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सह-अकादमिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहे हैं। यही संतुलन उन्हें एक परिपक्व और समर्पित अधिकारी बनने की ओर ले जाता है।

युवाओं के लिए संदेश

अपनी सफलता का श्रेय उन्होंने अपने माता-पिता और अध्यापकों को दिया। साथ ही हिमाचल प्रदेश के युवाओं को संदेश दिया:

“कड़ी मेहनत, लगन, निष्ठा और समर्पण से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। नशे और भटकाव से दूर रहकर यदि कोई विद्यार्थी पूरी सच्चाई से तैयारी करे, तो कोई भी ऊँचाई पाई जा सकती है।”

समाज के लिए प्रेरणा

प्रथम याम्बुर की यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार की जीत है, बल्कि यह उस विचारधारा की भी जीत है जिसमें सपने देखना और उन्हें सच करने का हौसला होता है।

यह साबित करता है कि पहाड़ी इलाकों से भी देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचा जा सकता है, बशर्ते मेहनत और लक्ष्य के प्रति ईमानदारी हो।

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