देव परंपरा के अनुसार हुआ ‘पत्थर भेड़ मेला’, जमोगी और कटेड़ू टोलियों के बीच जमकर बरसे पत्थर
एप्पल न्यूज, धामी शिमला
शिमला ग्रामीण के हलोग धामी में दीवाली के दूसरे दिन मंगलवार को सदियों पुरानी पौराणिक परंपरा ‘पत्थर भेड़ मेला’ पूरे उत्साह के साथ आयोजित किया गया।
परंपरा के अनुसार, यह खेल ‘खेल का चौरा’ नामक मैदान में खेला जाता है, जहाँ दो टीमें — जमोगी और कटेड़ू टोली — घाटी के विपरीत दिशाओं से एक-दूसरे पर पत्थर बरसाती हैं।
दोपहर करीब चार बजे से 4:40 बजे तक चले इस खेल के दौरान कटेड़ू टोली के सुभाष को एक पत्थर लगा, जिससे उसके हाथ में चोट आई और खून निकला।
देव परंपरा के अनुसार, इसी खून से मां भद्रकाली के मंदिर में तिलक किया गया, जिसके बाद खेल को समाप्त घोषित किया गया। जैसे ही खेल पूरा हुआ, ढोल-नगाड़ों की थाप पर सैकड़ों लोग नाचते-झूमते नजर आए।

पूजा-अर्चना और शोभायात्रा के साथ शुरू हुआ आयोजन
शामिल लोगों के अनुसार, दोपहर तीन बजे राज परिवार के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह, पुजारी तनुज शर्मा और राकेश शर्मा ने मां भद्रकाली की पूजा-अर्चना की।
इसके बाद ढोल-नगाड़ों के साथ शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें पुष्पेंद्र सिंह, दुर्गेश सिंह, रणजीत सिंह, चेतराम, लेख राम, बाबू राम, प्रकाश, हेत राम, प्रकाश नील सहित कई ग्रामीण शामिल रहे।
करीब 3:40 बजे यह यात्रा सती का शारड़ा स्मारक पर पहुंची। वहां माथा टेकने के बाद आयोजकों के इशारे पर घाटी के दोनों ओर एकत्रित जमोगी और कटेड़ू टोलियों ने पत्थर बरसाने की शुरुआत की।

नरबलि के विकल्प के रूप में शुरू हुई परंपरा
राज परिवार के उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने बताया कि यह प्रथा मानव बलि (नरबलि) के विकल्प के रूप में शुरू हुई थी। सैकड़ों वर्ष पहले क्षेत्र की राजमाता ने यह व्यवस्था की थी कि देवी भद्रकाली की कृपा प्राप्त करने के लिए किसी मानव की बलि न दी जाए, बल्कि पत्थर के खेल में किसी व्यक्ति को हल्की चोट लगे और उसके निकले हुए खून से देवी का तिलक किया जाए।
यह परंपरा तभी से निरंतर चली आ रही है।
यहां तक कि कोविड काल में जब सार्वजनिक आयोजन बंद थे, तब भी जगदीप सिंह ने स्वयं अपने खून से भद्रकाली का तिलक कर परंपरा को टूटने नहीं दिया।

जमोगी और कटेड़ू टोलियों का परिचय
जमोगी टोली में शामिल गांव: जनिया, जमोगी, प्लानिया, कोठी, चईंयां और ओखरू।
कटेड़ू टोली में शामिल गांव: तुनड़ू, धगोई, बठमाणा और आसपास के क्षेत्र।
जमोगी टोली खूंदों की ओर से होती है जबकि कटेड़ू टोली राज परिवार की ओर का प्रतिनिधित्व करती है।

सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
यह आयोजन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि स्थानीय विश्वास, साहस और एकता का प्रतीक है। खेल में दोनों ओर से भाग लेने वाले युवाओं को विशेष रूप से देवी की कृपा प्राप्त करने वाला योद्धा माना जाता है।
हालांकि अब सुरक्षा कारणों से पत्थरों के आकार और समय सीमा को नियंत्रित किया जाता है, फिर भी यह आयोजन धामी की







