एनटीटी भर्ती पर संकट: मान्यता प्राप्त डिप्लोमा न होने से पूरी प्रक्रिया ठप
शिक्षा नीति पर सवाल: हिमाचल में नर्सरी टीचर बनने का सपना क्यों अधूरा रह गया?
एप्पल न्यूज़, शिमला
हिमाचल प्रदेश में नर्सरी टीचर भर्ती प्रक्रिया अब विवाद और विचार दोनों का विषय बन गई है। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा प्रशिक्षक (एनटीटी) के 6,297 पदों के लिए करीब 10 हजार उम्मीदवारों ने आवेदन किया था, लेकिन पात्रता जांच के बाद योग्य पाए गए सिर्फ 14 अभ्यर्थी।
यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह प्रदेश की शिक्षक प्रशिक्षण व्यवस्था और शिक्षा नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
भर्ती का उद्देश्य सरकारी स्कूलों में नर्सरी और केजी कक्षाएं शुरू करना था। परंतु पात्रता शर्तों की कठोरता ने पूरी प्रक्रिया को लगभग रोक दिया।
एनसीटीई (National Council for Teacher Education) के दिशा-निर्देशों के अनुसार केवल मान्यता प्राप्त दो वर्षीय एनटीटी डिप्लोमा धारक ही योग्य माने जाते हैं।
अधिकांश अभ्यर्थियों के पास या तो एक वर्षीय कोर्स, निजी संस्थानों से मान्यता-रहित प्रमाणपत्र, या फिर ऑनलाइन सर्टिफिकेट थे, जो इन मानकों के अनुरूप नहीं थे।

भर्ती प्रक्रिया की पृष्ठभूमि
यह प्रक्रिया पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सरकार के दौरान शुरू हुई थी, जिसे बाद में सुक्खू सरकार ने आगे बढ़ाया। सरकार ने एनसीटीई नियमों का पालन अनिवार्य किया, जिससे स्थानीय स्तर पर योग्य उम्मीदवारों की संख्या बेहद सीमित रह गई।
दस्तावेज जांच में खुली हकीकत
इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन के माध्यम से निजी एजेंसियों ने प्रदेशभर में साक्षात्कार पूरे किए। लेकिन दस्तावेज सत्यापन के दौरान सामने आया कि अधिकतर प्रमाणपत्र अमान्य या अनधिकृत संस्थानों से प्राप्त थे।
कई उम्मीदवारों के पास ऐसे प्रशिक्षण प्रमाणपत्र थे जिनकी किसी वैधानिक निकाय से स्वीकृति नहीं थी। परिणामस्वरूप, चयन प्रक्रिया को रोकना प्रशासन की मजबूरी बन गया।
सरकार के सामने अब क्या विकल्प?
शिक्षा विभाग इस जटिल स्थिति से निपटने के लिए नए विकल्पों पर विचार कर रहा है। प्रस्ताव है कि राज्य अपने प्रशिक्षण केंद्रों में एनटीटी कोर्स शुरू करे, ताकि भविष्य में हिमाचल के युवाओं को वैध प्रशिक्षण अवसर मिल सकें।
शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर के अनुसार, “केंद्र सरकार ने भर्ती को एनसीटीई मानकों के अनुसार पूरा करने के निर्देश दिए हैं। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार चल रहा है और जल्द ठोस निर्णय लिया जाएगा।”
नीति बनाम वास्तविकता
यह पूरा प्रकरण एक बड़ी सीख छोड़ता है — नीतियाँ तभी कारगर होती हैं जब उनकी ज़मीन पर तैयारी मजबूत हो। यदि राज्य अपने युवाओं को पात्र बनाने के लिए प्रशिक्षण का ढांचा नहीं देगा, तो ऐसे पद केवल कागज़ों में ही रह जाएंगे।
अब फैसला सरकार के हाथ में है — या तो नियमों को व्यवहारिक बनाया जाए, या व्यवस्था को नए सिरे से गढ़ा जाए, ताकि भविष्य में योग्य उम्मीदवारों की कमी किसी नीति की कमजोरी न बने।







