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बलदेव सांख्यायन बने बिलासपुर के पहले ए-ग्रेड लोक कलाकार

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एप्पल न्यूज, बिलासपुर

जिला बिलासपुर के लिए गर्व की बात है कि घुमारवीं उपमंडल के मैहरी काथला (खसरी) गांव के रहने वाले बलदेव सांख्यायन को ‘ऑल इंडिया रेडियो’ द्वारा लोकसंगीत में ए-ग्रेड का दर्जा प्राप्त हुआ है। इस उपलब्धि के साथ ये बिलासपुर जिले के पहले कलाकार बन गए हैं जिन्हें यह ग्रेड प्राप्त हुआ है।
बलदेव सांख्यायन 1994 से आकाशवाणी शिमला से लोकगीतों की प्रस्तुतियां देते आ रहे हैं। इनके कई गीत लोगों में काफी लोकप्रिय रहे हैं, जिनमें— मिंजो टपरू पवाई दे बखरा, बिलासपुरी गंगी, मोहणा सहित कई बिलासपुरी और पहाड़ी लोकगीत शामिल हैं। इनकी दो पहाड़ी ऑडियो एलबम्स “मेरा प्यारा बलमा” और “झाँझरां ता तेरियां” रहीं।

इनकी गायकी की ख़ासियत सरल अंदाज़ और लोकधुनों की मिठास है, जिसे श्रोता बहुत पसंद करते हैं। इन्होंने कई गीतों की रचना कर उन्हें स्वरबद्ध भी किया है।

ग़ौरतलब है कि बलदेव सांख्यायन ने अपने करियर में भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में ‘वैज्ञानिक’ के पद पर सेवाएँ दीं।

बचपन से ही उन्हें संगीत का शौक था। घर में संगीत का माहौल न होने के बावजूद भी उन्होंने नौकरी करते समय सोलन और शिमला में अलग-अलग गुरुओं से संगीत सीखना जारी रखा।

पण्डित रमेश दत्त शर्मा जी, पण्डित बाल किशन शायर जी व पण्डित सेवाराम शर्मा जी के सानिध्य में उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन, भाव संगीत और लोक संगीत सीखा।

वैज्ञानिक होने के बावजूद इन्होंने संगीत की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और संगीत प्रभाकर एवं भाव संगीत का सीनियर डिप्लोमा भी प्राप्त किया।

बलदेव सांख्यायन हिमाचल सहित अनेक राज्यों के प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी गायकी की प्रस्तुतियां दे चुके हैं। एक कवि के रुप में भी ये ज़िला स्तरीय, राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर की कविगोष्ठियों में भी भाग ले चुके हैं।

सरकारी सेवा अवधि के दौरान कई वर्षों तक दिल्ली में रहते हुए भी इन्होंने हिमाचली लोकगीतों को वहां के कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया।

दिल्ली में रहने वाले हिमाचली समुदाय ने इनकी प्रस्तुतियों को अनेक बार खूब सराहा है। दिल्ली में बहुत सी गायन प्रतियोगिताओं में वे निर्णायक की भूमिका निभा चुके हैं।

लोकगीतों के संरक्षण और लगातार बेहतरीन प्रस्तुतियों के लिए बलदेव सांख्यायन को कई संस्थाओं ने सम्मानित किया है। सेवानिवृत्त होने के बाद वे अपने गांव में रहकर ही संगीत की सेवा कर रहे हैं।

ये युवाओं को लोकगीतों की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मार्गदर्शन दे रहे हैं। इनकी उपलब्धि पर मैहरी काथला (खसरी) गांव, घुमारवीं क्षेत्र और पूरे बिलासपुर में खुशी का माहौल है।

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