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हिमाचल के इस गांव की अद्भुत परंपराएं, खुद को मानते है सिकंदर का वंशज-पूजते है सम्राट अकबर

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अपनी सुप्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था एवं संस्कृति के कारण हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जनपद का मलाणा गांव विश्व विख्यात है। यहां आज भी शासन व्यवस्था स्थानीय परिषद द्वारा चलाई जाती है। कुल्लू जिले के अति दुर्गम इलाके में स्थित है मलाणा गाँव को हम भारत का सबसे रहस्यमयी गाँव भी कह सकते हैं। इस गांव के निवासी खुद को सिकंदर के सैनिकों का वंशज मानते हैं। मलाणा भारत का एकमात्र गांंव है जहाँ मुग़ल सम्राट अकबर की पूजा की जाती है। महज 4700 जनसंख्या वाला यह गांव भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए गए कानूनों को नहीं मानता है। यहां गांव की स्वतंत्र संसद है जिसमें ऊपरी तथा निम्न दो सदन हैं ऊपरी सदन जेष्टांग और निम्न सदन कनिष्टांग के नाम से जाने जाते हैं। संसद द्वारा ही स्थानीय देवता की आज्ञा से नए कानून बनाए जाते हैं। माना जाता है कि पुरातन में कुछ समय तक महर्षि जमलू (जमदग्नि) इस गांव में रहे थे उन्होंने ही इस गांव के लोगों के लिए नियम बनाए थे, जो आज तक चल रहे हैं। प्रशासनिक व्यवस्था परिषद के सदस्यों द्वारा देखी जाती है। परिषद में सदस्यों की संख्या 11 रहती है। इन सदस्यों को महर्षि जमलू के प्रतिनिधि माना जाता है। www.a4applenews.com माना जाता है कि इस गांव के एक व्यक्ति में महर्षि जमलू की आत्मा प्रवेश कर जाती है। उस व्यक्ति को गांव का प्रमुख गुर या गुरु माना जाता है वही व्यक्ति देवता के फरमान लोगों तक पहुंच जाता है।

इस गांव की सामाजिक संरचना पूर्ण रूप से ऋषि जमलू देवता के ऊपर अविचलित श्रद्धा व विश्वास पर टिकी हुई है। ऋषि जमरू के द्वारा दिए गए नियमों पर आधारित 11 सदस्यीय परिषद के फैसलों को प्रत्येक ग्रामीण को मानना पड़ता है। परिषद के द्वारा बनाए गए नियम बाहरी लोगों पर लागू नहीं होते। कुल मिलाकर यहां की प्रशासनिक तथा सामाजिक व्यवस्था प्राचीन ग्रीस की राजनीतिक व्यवस्था से मिलती है इसी कारण मलाणा गांव को हिमालय का एथेंस कहकर भी पुकारा जाता है।

मलाणा गांव चरस तथा अफीम के व्यापार के कारण भी सुर्खियों में रहता है। यहां पर पैदा की जाने वाली चरस की अंतरराष्ट्रीय बाजा़र में खासी डिमांड है। इसी कारण ग्रामीण लोग चरस की खेती करते हैं, www.a4applenews.com यह इनका पुश्तैनी व्यवसाय भी है। चरस के शौकीन विदेशी यहां काफी संख्या में आते हैं। मलाणा गांव में चरस बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं किंतु गांव के बाहर चरस बेचना भारतीय कानून के अन्तर्गत प्रतिबंधित है। यहां की चरस उत्तम गुणवत्ता वाली मानी जाती है तथा मलाणा क्रीम के नाम से प्रसिद्ध है। इसी कारण बाजार में इसकी कीमत भी अधिक है।

यहां के निवासी जिस रहस्यमई बोली का प्रयोग करते हैं उसे रक्ष के नाम से जाना जाता है। कुछ लोग इसे राक्षसी बोली भी मानते हैं। यह बोली संस्कृत तथा तिब्बती भाषाओं का मिश्रण लगती है। यह आसपास के किसी भी क्षेत्र की बोली से यह मेल नहीं खाती है।
मलाणा गांव अपने अजीबोगरीब नियमों के कारण विश्व के मानचित्र पर चर्चा में रहा है। यहां के निवासी अपने आप को सबसे श्रेष्ठ मानते हैं तथा बाहरी लोगों को निम्न दर्जे का मानते हैं। बाहरी लोग गांव में बने घरों, पूजा स्थलों, स्मारकों, कलाकृतियों तथा दीवारों को नहीं छू सकते हैं। यदि वे ऐसा करते हुए पकड़े जाते हैं तो यहां के लोग उनसे कम से कम दो हजार रुपए तक जुर्माना वसूलते हैं। यहां की विचित्र परंपराओं को जानने तथा देखने के लिए यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। पर्यटकों के रुकने की गांव में किसी भी प्रकार की व्यवस्था नहीं है। इन्हें गांव से बाहर बने टेंट तथा सरायों में ही रहना पड़ता है। गांव में प्रवेश करने से पहले पर्यटकों को सभी नियम समझा दिए जाते हैं। यह नियम सार्वजनिक स्थलों पर हिंदी तथा अंग्रेजी में लिखे गए भी होते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को वीडियोग्राफी करने की इजाजत नहीं है। उन्हें यहां के निवासियों से दूर रहने की हिदायत दी जाती है। साथ ही किसी भी सामान को टच नहीं कर सकते हैं। यदि आपको कुछ भी खरीदना है तो दुकानदार को दूर से ही पैसा दिया जाता है। दुकानदार भी सामान को काउंटर पर रख देता है। अगर आपने किसी ग्रामीण को टच कर दिया तो वो फौरन जाकर स्नान करता है। यहां के लोग बाहरी लोगों द्वारा बनाए गए भोजन को भी नहीं खाते हैं।www.a4applenews.com

मलाणा गांव के निवासी संगीत प्रेमी भी हैं। यहां पर विभिन्न त्योहारों के अवसर पर लोग गांव के प्रांगण में इकट्ठा होकर पारंपरिक धुनों पर नृत्य करते हैं। लेकिन गांव की महिलाएं पुरुषों के साथ सामूहिक नृत्य नहीं कर सकती यदि महिलाएं पुरुषों के साथ नृत्य करती हुई पाई जाए तो उन पर भी दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान है। यहां के कानून के अनुसार शादीशुदा महिला पुरुष के साथ नृत्य नहीं कर सकती। कुछ समय पहले ऐसा हुआ था परिणाम स्वरूप देव संसद ने 70 महिलाओं को दोषी पाते हुए इन पर भारी-भरकम जुर्माना लगा दिया। यहां दिलचस्प बात यह है कि देव दोष या दंड के भय के कारण यहां के ग्रामीण इस तरह के फरमानों का विरोध नहीं कर पाते ।

शिक्षा के अभाव, अपनी प्राचीन व्यवस्था को जीवित रखने तथा आधुनिकता से अपने आपको अलग रखने के कारण मलाणा प्रदेश के अन्य गांव की अपेक्षा पिछड़ा क्षेत्र है। यहां के लोग अभी भी पारंपरिक व्यवसाय कर रहे हैं तथा गांव के बाहर नहीं निकल पाए हैं। युवा भी शिक्षा से दूर हैं। हालांकि सरकार द्वारा अब वहां स्कूल तथा अस्पताल भी खोले गए हैं। पक्के मकानों का निर्माण भी किया जा रहा है। बावजूद इसके अभी भी यह गांव आधारभूत आवश्यकताओं से पूरी तरह नहीं जुड़ पाया है। सड़क आज भी गांव से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। सरकार इस गांव को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयासरत है किंतु यहां के लोग अपनी पुरातन परम्पराओं से आगे बढ़ते प्रतीत नहीं हो रहे हैं। सरकार चरस की खेती की जगह अन्य फसलों की खेती करने को प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए उन्हें निशुल्क बीज तथा अनाज भी मुहैया करवाया जा रहा है लेकिन मलाणा के लोग अभी भी अपने पारम्परिक व्यवसाय को ही ज्यादा तवज्जो देते हैं। संक्षिप्त में यही कहा जा सकता है कि आधुनिकता के इस दौर में भले ही मलाणा गांव देश के अन्य गांवों या शहरों की भान्ति विकसित/विकासशील नहीं है, आधारभूत आवश्यकताओं से दूर है, विभिन्न अंधविश्वासों से घिरा हुआ, दुनिया से अलग-थलग है बावजूद इसके प्राकृतिक सुंदरता से अलंकृत यह गांव अपनी सुप्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था के कारण पूरे विश्व का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रहा है।

पहाड़ों की गोद में बसा एवं अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था से विख्यात पुरातन गांव मलाणा की ओल्ड डेमोक्रेसी पर अब यूएसए तक डाक्यूमेंट्री बनाने जा रहा है।

लेखक

डॉ राजेश कुमार चौहान, शिक्षाविद्व

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