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भारत की पहचान है राष्ट्रभाषा हिन्दी: राज्यपाल

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एप्पल न्यूज़, सोलन

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि हिन्दी हमारे देश व समाज की आत्मा है और भारत की पहचान राष्ट्र भाषा हिन्दी से ही है। बंडारू दत्तात्रेय यहां हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 72वें अधिवेशन एवं परिसंवाद के समापन समारोह में उपस्थित साहित्यकारों एवं विद्वानजनों को संबोधित कर रहे थे।

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उन्होंने कहा कि विश्व का प्रत्येक देश मातृभाषा को अपनी पहचान के रूप में परिभाषित करता है। भारत के लिए भी यह आवश्यक है क्योंकि पहचान के बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता। उन्होंने कहा कि राष्ट्र भाषा के रूप में हिन्दी को देश में अभी अपना स्थान बनाना है और इसके लिए सभी को सामूहिक प्रयास करने होंगे। अपनी मातृभाषा और राष्ट्र भाषा को बढ़ावा देना हम सभी का कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी सीखना भी आवश्यक है लेकिन अंग्रेजी के लिए हमें अपनी राजभाषा को नहीं भूलना चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि वर्तमान में हिन्दी का विश्वभर में व्यापक प्रचार-प्रसार हो रहा है। विश्व के 132 से भी अधिक देशों में हिन्दी भाषा विद्यमान है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में हिन्दी सिनेमा का महत्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी की शब्द सम्पदा 10 हजार शब्दों से भी अधिक है। इंटरनेट, ब्लाॅग तथा सोशल मीडिया पर भी हिन्दी एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में उपस्थित है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व में हिन्दी के दूत बनकर उभरे हैं। उन्होंने आग्रह किया कि विश्व की विभिन्न तकनीकों को हिन्दी के माध्यम से देश के जन-जन तक पहुंचाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज भारत के दक्षिणी राज्यों में भी हिन्दी का प्रभाव बढ़ रहा है। उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पदाधिकारियों से आग्रह किया कि वे इस तीन दिवसीय सम्मेलन में हिन्दी भाषा के विषय में प्राप्त सुझावों एवं निर्णयों की लिखित जानकारी उन्हें दें, वे इसे केन्द्र सरकार तक पहुंचाएंगे।

वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा वरिष्ठ साहित्यकार शांता कुमार ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है और हिन्दी को दैनिक क्रियाकलापों में अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिन्दी ही हमारा सम्मान है और इस सम्मान की रक्षा करना हम सभी का कर्तव्य है।

उन्होंने कहा कि आज हम सभी को यह प्रण लेना होगा कि मातृभाषा एवं राजभाषा हिन्दी को जीवन का अभिन्न अंग बनाएंगे और हिमाचल जैसे हिन्दी भाषी राज्य में कम से कम विवाह के निमन्त्रण पत्र हिन्दी में मुद्रित करेंगे। उन्होंने कहा कि यही इस तीन दिवसीय सम्मेलन की सफलता होगी।

शांता कुमार ने कहा कि वे प्रधानमंत्री से आग्रह करेंगे कि संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को उसका उच्च स्थान मिले और हिन्दी वास्तविक अर्थों में देश की राजभाषा बने।

उन्होंने इस अवसर पर अपनी साहित्यिक यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लिखने की पीड़ा साहित्य सृजन के साथ ही शांत होती है। उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण में साथ देने के लिए अपनी जीवन संगिनी संतोष शैलजा का आभार भी व्यक्त किया।

राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार शांता कुमार, सोम ठाकुर, माधव कौशिक, जय प्रकाश तथा योगेन्द्र नाथ शर्मा को हिन्दी साहित्य सम्मेलन की सर्वोच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति सम्मान से सम्मानित किया।

उन्होंने शांता कुमार की धर्मपत्नी संतोष शैलजा, भाषा कला एवं संस्कृति विभाग के पूर्व निदेशक डाॅ. प्रेम शर्मा सहित अन्य विभूतियों को सम्मेलन सम्मान से सम्मानित किया।

इस अवसर पर डाॅ. गरिमा सिंह के उपन्यास ‘ख्वाहिशें अपनी-अपनी’ तथा कृष्ण मुरारी अग्रवाल की पुस्तक ‘भाषा प्रवाह’ का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के आज के सभापति डाॅ. बद्री नारायण ने धन्यावाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

सोलन के विधायक डाॅ. कर्नल धनीराम शांडिल, प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री डाॅ. राधा रमण शास्त्री, प्रदेश के पूर्व परिवहन मंत्री महेंद्र नाथ सोफत, पूर्व सांसद प्रो. वीरेंद्र कश्यप, वरिष्ठ भाजपा नेत्री रितु सेठी, पदम विभूषण एवं पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र, हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रमुख विभूति मिश्र, महामंत्री श्याम कृष्ण पांडेय, अन्य पदाधिकारी, देशभर से आए हिन्दी के विद्वान तथा प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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